Tuesday, October 18, 2011

अध्ययन का तरीका

महर्षि रैक्य ने अपने पुत्र यवकीर्ति को ज्ञान की गरिमा का महत्व समझाया। वह इस वचन से पूर्ण आश्वस्त भी हो गया कि सद्ज्ञान से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। फिर भी उसके मन में यह भ्रम बना रहा कि मनोयोगपूर्वक अध्ययन से ही ज्ञान की उपलब्धि संभव है। वह चाहता था कि इसका कोई सरल मार्ग मिल जाए। उसने सोचा कि तप करने से जब बहुत सिद्धियां मिल सकती हैं, तो साधना द्वारा ही उसे क्यों न प्राप्त कर लिया जाए।

लंबे समय तक पढ़ते रहने का झंझट क्यों उठाया जाए। वह तपस्या करने लगा। पिता ने उसे समझाया कि ज्ञानार्जन भी तप ही है, लेकिन पिता का वचन पुत्र की समझ में नहीं आया। यवकीर्ति स्नान के लिए नदी के जिस घाट पर जाया करता था, उस पर एक वृद्ध ब्राह्मण भी आने लगे। वह मुट्ठी भर-भर कर पानी में रेत डालते रहे।

यवकीर्ति ने कई दिनों तक तो ध्यान नहीं दिया, पर आखिरकार उससे रहा न गया और उसने ऐसा करने का कारण पूछ ही लिया। वृद्ध ने कहा, 'नदी पार जाने में समय लगता है, इसलिए सोचा, क्यों न नदी में रेत डालकर पार जाने के लिए बांध बना लूं।' यवकीर्ति हंसने लगा। उसने कहा, 'भगवन, हर काम का एक तरीका होता है। उसकी निश्चित प्रक्रिया होती है। आप पार जाने के लिए दूसरे संभव तरीके अपनाएं और इस बाल क्रीड़ा को छोड़ दें।' इस पर ब्राह्मण ने कहा, 'ठीक कहा आपने। इसी तरह ज्ञान प्राप्त करने की भी निश्चित प्रक्रिया होती है।' यवकीर्ति को बात समझ में आ गई।

No comments:

Post a Comment