बल्ख के शासक इब्राहीम अपना ज्यादातर वक्त ईश्वरोपासना में बिताते थे। एक रात जब वह अपने महल में सो रहे थे, तो उनकी नींद छत पर किसी के चलने-फिरने की आहट से टूट गई। उत्सुकतावश वह बाहर आए। उन्होंने देखा कि छत पर कोई व्यक्ति कुछ खोज रहा था।
उन्होंने आवाज लगाई, 'तुम कौन हो और यहां इस वक्त राजमहल की छत पर क्यों घूम रहे हो?' लेकिन वह व्यक्ति अपने काम में तल्लीन रहा। इब्राहिम गुस्से से आग बबूला हो गए और बोले, 'मूर्ख, तुम नहीं जानते कि तुम कितना जघन्य अपराध कर रहे हो? हो सकता है कि तुम्हें सजा-ए-मौत दी जाए।' इस बार उस व्यक्ति के कानों में आवाज पड़ी, वह बोला, 'हुजूर, शायद आप यह तो नहीं पूछ रहे कि इस अंधेरी रात में मैं यहां क्या कर रहा हूं? सो बतला दूं हुजूर, मैं यहां छत पर अपना ऊंट खोज रहा हूं।'
इब्राहिम ने अपना माथा पीट लिया। सोचने लगे कि शायद दुनिया में इससे बड़ा मूर्ख कोई न होगा। यह सोचते हुए इब्राहिम बोले, 'ऊंट, वह भी छत पर। तुम्हारा दिमाग तो नहीं फिर गया।' इस पर वह शख्स बोला, 'इसमें दिमाग फिरने वाली क्या बात है? आप भी तो ऐशोआराम भरे महल में खुदा को खोजने की कोशिश कर रहे हैं।'
यह कहकर वह व्यक्ति वहां से खिसक गया। इब्राहिम सन्न खड़े रहे। वह उसकी बात पर सोचने लगे। उन्हें महसूस हुआ कि न तो वह व्यक्ति साधारण था और न उसकी बात। वाकई विलासिता भरी जिंदगी में ईश्वरोपासना का क्या अर्थ है? राजमहल में खुदा की खोज क्या वैसी ही नहीं, जैसे छत पर ऊंट की तलाश? यह अहसास होते ही इब्राहीम उस व्यक्ति को खोजने दौड़े।
आखिरकार वह सड़क पर मिला। इब्राहिम उसके चरणों में लोट गए और कहने लगे, 'मुझे अपनी शरण में ले लो।' इब्राहीम उस व्यक्ति के शिष्य हो गए। वह व्यक्ति थे संत खिज्र।
Thursday, October 13, 2011
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