बाबा अनंतराम परोपकारी और सेवाभावी संत थे। लोग उन्हें श्रद्धापूर्वक चढ़ावा चढ़ाया करते थे। हालांकि उन्होंने श्रद्धालुओं को मना भी किया पर वे नहीं माने। बाबा उस चढ़ावे का समाजसेवा के लिए प्रयोग करने लगे। एक दिन एक सेठ असंख्य हीरे - मोती उनके चरणों में रखते हुए बोला , ' बाबा , यह भेंट मेरी ओर से स्वीकार करें। ' बाबा ने उन हीरे - मोतियों की ओर देखा तक नहीं और श्रद्धालुओं की समस्या का निवारण करते रहे। यह देखकर सेठ को क्रोध आ गया।
वह बड़बड़ाते हुए बोला , ' यह बाबा तो ढोंगी किस्म का मालूम होता है। हीरे - मोतियों को देखा तक नहीं लेकिन मेरे जाते ही उन पर ऐसे टूटेगा जैसे कुछ देखा ही नहीं। ' बाबा ने सेठ की बात सुन ली। उन्होंने बस इतना ही कहा , ' सेठ जी , आप कल आइएगा , कल आपको जवाब मिल जाएगा। ' अगले दिन सेठ फल व मिठाइयां लेकर वहां पहुंचा तो बाबा अनंतराम हर पल उसकी लाई मिठाइयों एवं फल को ही देखते रहे। यह देखकर सेठ के आश्चर्य का ठिकाना न रहा।
वह धीरे से बोला , ' अजीब बात है , कल मैं महंगे हीरे - मोती लाया तो उन्हें देखा तक नहीं और मिठाइयों व फल पर बाबा की ऐसे नजर है जैसे आज तक कुछ देखा ही नहीं । ' बाबा बोले , ' सेठ जी , लोभी मनुष्य दूसरों को भी अपने जैसा ही समझता है। कल मैंने आपके हीरे - मोती नहीं देखे तब भी आपने मुझे लोभी ठहराया और आज मामूली मिठाई व फल देखने पर भी लालची कहा। मैं तो एक मामूली संत हूं। हीरे - मोती , फल , मिठाई से मुझे कुछ लेना - देना नहीं है। मैं तो बस समाज का दुख दूर करने में ही अपना जीवन सार्थक समझता हूं। आप जैसे लोगों के लाए धन से ही विद्यालय , आश्रम चल रहे हैं। असंख्य निर्धन कन्याओं के विवाह में भी आप ही लोगों का धन लगा है। मैं तो बस इन स्थानों पर आपका धन पहुंचाने का एक माध्यम मात्र हूं। ' यह सुनकर सेठ की आंखें शर्म से झुक गईं।
Friday, October 14, 2011
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