इटली के विख्यात संत फ्रांसिस संपन्न पिता के पुत्र थे। लेकिन उन्हें अपनी संपत्ति पर जरा भी अभिमान न था। व्यापार में लगे होने के बाद भी वह ईश्वरोपासना के लिए समय निकाल ही लेते थे।
समाज के वंचित वर्ग की मदद का कोई मौका वह नहीं छोड़ते थे। एक दिन वह एक व्यापारी के साथ बड़े सौदे की चर्चा कर रहे थे। उसी समय एक भिखारी उनकी दुकान पर आया। उसने भिक्षा के लिए आवाज लगाई पर फ्रांसिस का उस भिखारी की तरफ ध्यान नहीं गया। वह बिना कुछ लिए ही वहां से लौट गया।
बाद में उन्हें एक कर्मचारी ने बताया कि एक भिखारी आया था। यह सुनते ही फ्रांसिस बेचैन हो गए। यह बात उन्हें परेशान करने लगी कि एक जरूरतमंद व्यक्ति उनकी दुकान से खाली हाथ लौट गया। उनका काम में मन नहीं लग रहा था। आखिरकार वह उठे और बाजार में उस भिखारी को ढूंढने लगे।
जो मिलता वह उसी से भिखारी के बारे में पूछते। लोगों ने समझा कि हो सकता है, वह भिखारी दुकान से कुछ चुराकर ले गया होगा, इसलिए वह उसे पकड़ने के लिए ढूंढ रहे हैं। कुछ देर बाद फ्रांसिस को भिखारी मिल गया। उन्होंने उससे विनम्रतापूर्वक कहा, 'भाई, भूल हुई, माफ करना। मैं एक सौदे में व्यस्त था। पैसों की बात मनुष्य को अंधा बना देती है।'
इतना कहकर फ्रांसिस ने अपनी जेब से सारा धन निकालकर भिखारी को दे दिया। भिखारी तो खुश था ही, उससे कहीं अधिक प्रसन्न संत फ्रांसिस हुए। जिसने यह प्रसंग सुना वह फ्रांसिस के प्रति श्रद्धा से भर उठा।
Tuesday, October 18, 2011
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