सिसली के सिराक्यूज नगर के राजा डायोनीसियस ने किसी सामान्य अपराध के लिए डेमन नाम के एक युवक को प्राणदंड की सजा सुना दी। डेमन ने सिर झुकाकर सजा स्वीकार की, लेकिन राजा से यह प्रार्थना भी की कि उसे एक वर्ष का समय दिया जाए। वह ग्रीस जाकर अपनी संपत्ति व परिवार के लिए जरूरी व्यवस्था करके ठीक समय पर लौट आएगा। राजा ने शर्त रखी, 'यह तभी मुमकिन है जब कोई तुम्हारी जमानत दे और वचन दे कि तुम न लौटे तो तुम्हारी जगह वह फांसी चढ़ेगा।' राजा का निर्णय सुनकर डेमन का मित्र पीथियस आगे आया और उसने डेमन की जमानत ले ली। एक वर्ष पूरा होने पर भी डेमन नहीं लौटा। लोगों ने पीथियस को मूर्ख कहा, किंतु वह खुश था।
पीथियस ईश्वर से प्रार्थना कर रहा था कि किसी तरह समुद्र में तूफान आ जाए और डेमन का जहाज मार्ग से भटक जाए। आखिर जब तय समय तक डेमन नहीं पहुंचा तो पीथियस को फांसी स्थल पहुंचा दिया गया। उसे बस सजा मिलनी ही थी कि तभी दौड़ता-हांफता डेमन वहां पहुंचा और चिल्लाया, 'मेरे मित्र को फांसी मत दो।' वास्तव में डेमन का जहाज समुद्री तूफान में फंस गया था। किसी तरह किनारे पहुंचकर डेमन को जो भी सवारी मिली उसी से वह भागा। उसका घोड़ा काफी तेज दौड़ने के कारण गिरकर मर गया। डेमन भूखा था और उसके पैरों में छाले पड़ गए थे। राजा दोनों दोस्तों का प्रेम देखकर प्रभावित हुआ। उसने डेमन की सजा माफ कर दी और खुद भी उसका मित्र बन गया।
Tuesday, October 18, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment