पैरिस के एक प्रसिद्ध होटेल में एक दिन एक व्यक्ति आया और उसने भरपेट भोजन किया। खाने के बाद वह कुछ देर दुविधा में खड़ा सोचता रहा, फिर उसने बैरे को इशारे से बुलाया और कोने में ले जाकर विनम्रतापूर्वक कहा, 'भाई, मेरे साथ एक समस्या है। मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है। मैं एक राजनीतिक कार्यकर्ता हूं और इन दिनों राजनीतिक निर्वासन भोग रहा हूं। न खाने का कोई ठिकाना है न रहने का। बहुत ज्यादा भूख लग गई थी, इसलिए अपने को रोक न सका। तुम मुझे बिल अदा करने के लिए कुछ पैसे दे दो। मैं तुम्हें वापस कर दूंगा। मुझे तुम भले आदमी आदमी नजर आते हो। उम्मीद है तुम इनकार नहीं करोगे।'
बैरा सचमुच दयालु स्वभाव का था। उसे उस व्यक्ति की बातों में सचाई नजर आई। पहले तो उसने कुछ सोचा फिर उसे कुछ पैसे दिए और वह व्यक्ति बिल चुकाकर होटल से चला गया। दरअसल वह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि रूसी क्रांति के जनक लेनिन थे। रूसी क्रांति के बाद जारशाही का अंत होने पर वह अपने देश के शासनाध्यक्ष बने। अपने मुल्क का सर्वोच्च पद हासिल करने के बाद भी उन्हें पैरिस के उस बैरे से लिया कर्ज याद था। उन्होंने बैरे के पास न सिर्फ कर्ज भिजवाया, बल्कि उसके साथ कई उपहार भी भिजवाए। लेकिन उस बैरे ने रकम व उपहार लौटाते हुए कहा, 'यह कर्ज मैंने एक भूखे-प्यासे और बेहाल व्यक्ति को दिया था, न कि एक शक्तिशाली राष्ट्र के महान शासक को।' यह जानकर लेनिन उस बैरे के प्रति मन ही मन नतमस्तक हो गए।
Friday, October 14, 2011
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