Friday, September 30, 2011

असली उत्तराधिकारी

एक व्यापारी था। वह चाहता था कि उसका पुत्र अशोक उच्च शिक्षा प्राप्त करे। उसने अपने पुत्र को पढ़ने के लिए दूर किसी शहर में भेजा। कुछ दिनों बाद व्यापारी की पत्नी की मृत्यु हो गई। पत्नी की मृत्यु का गहरा झटका व्यापारी को लगा। वह बीमार रहने लगा। उसे इस बात का आभास हो गया कि वह ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाएगा। उसने अपनी सारी संपत्ति अशोक के नाम कर दी और उसके पास समाचार भेज दिया। उसने संपत्ति संबंधी तात्कालिक व्यवस्था अपने शहर के एक पुजारी को सौंप दी। उसके कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई। इधर समाचार प्राप्त होते ही अशोक व्याकुल होकर घर चला। रास्ते में उसे एक अन्य बालक मिला जिसने सहानुभूति दिखाते हुए उसके उत्तराधिकारी होने तथा परिवार में अकेला होने का सारा भेद मालूम कर लिया और उसके साथ हो लिया।

दोनों में गाढ़ी मित्रता हो गई , किंतु घर पहुंचते ही अशोक के साथ वह भी रोने लगा और अपने को व्यापारी का उत्तराधिकारी कहने लगा। पुजारी चकराया। फिर उसने एक युक्ति निकाली। उसने व्यापारी का एक चित्र मंगवाकर , उसकी छाती की ओर इशारा करते हुए एक - एक तीर कमान उनके हाथ में देकर निशाना लगाने को कहा। यह भी कहा कि जो ठीक निशाना लगाएगा , वही उत्तराधिकारी माना जाएगा। अशोक के साथी ने तो तीर ठीक निशाने पर छोड़ दिया , परंतु अशोक उन्हें फेंक कर चित्र से लिपट गया। उसने पुजारी से कहा कि उसे अपने पिता की संपत्ति नहीं चाहिए। वे सारी संपत्ति उसके मित्र को दे दें। पुजारी मुस्कराया। उसने कहा , ' अशोक , मैं समझ गया कि तुम ही असली उत्तराधिकारी हो। तुम्हारे लिए पिता के प्रति स्नेह और श्रद्धा महत्वपूर्ण है , संपत्ति नहीं। यह लड़का ठग है। यह तुम्हारी संपत्ति पर कब्जा जमाना चाहता है। इस लालची को तो सजा मिलनी चाहिए। ' पुजारी ने अशोक को उसके पिता की सारी संपत्ति सौंप दी। और उस लड़के को बंदी बना लिया गया।

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