Thursday, September 29, 2011

मन में विरोध भावना पैदा करनेवाला कोई काम न करें

अरबिंदो घोष का जन्म कोलकाता में 15 अगस्त 1872 को हुआ था। वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी, दार्शनिक, योगी और गुरु थे। उनके पिता कृष्णा धान घोष एक बड़े डॉक्टर थे। उन्होंने अरबिंदो समेत अपने तीनों बच्चों को बहुत कम उम्र में पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया, ताकि वे भारतीय संस्कृति से दूर रहें। लेकिन अरबिंदो ने इंडियन सिविल सर्विस जैसा मुश्किल एग्जाम पास करने के बावजूद वह नौकरी नहीं की क्योंकि वह अंग्रेजों की सेवा नहीं करना चाहते थे। बाद में उनका झुकाव भारतीय संस्कृति की तरफ हो गया और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। अरबिंद ने वेदों, उपनिषदों और गीता आदि का अनुवाद किया। उनकी मुख्य कृतियां द मदर, लेटर्स ऑन योगा, सावित्री (अ लेजेंड एण्ड अ सिंबल), योगा समन्वय, दिव्य जीवन और फ्यूचर पोएट्री हैं। 5 दिसंबर 1950 को पुदुचेरी में उनकी मृत्यु हो हुई।

उनकी कही कुछ बातें...

- ईश्वर प्रकृति में है।

- एक सच्चे और तपस्वी इंसान की पुकार ईश्वर गंभीरता से सुनता है।

- बुराई में से अच्छाई निकलती है और अच्छाई भी अक्सर बुराई जैसी लगने लग जाती है।

- अनुशासन का अर्थ यह नहीं कि आप किसी और के द्वारा तय किए गए मापदंडों और नियमों का पालन करें, बल्कि खुद के लिए तैयार किए गए संकल्प और सबसे ऊंचे सिद्धांतों के अनुरूप काम करना है।

- कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे मन में विरोध भावना पैदा हो।

- यह हमेशा ज्यादा अच्छा होता है कि आदमी अपना चेहरा भूतकाल की बजाय भविष्य की ओर मोड़कर रखे।

- जब भी हम हिंदू धर्म की बात करते हैं तो चर्चा ऐसे धर्म की होती है, जिसने सभी धर्मों को गले लगाया।

- गीता एक ऐसा पूर्ण आध्यात्मिक सत्य है, जो हमेशा हमें सच की राह दिखाएगा।

- दुनिया कभी नहीं खत्म होती और न ही इसका कोई आखिरी शब्द होता है, यह हमेशा रहती है और मानव जाति के लिए कुछ-न-कुछ करती रहती है।

- दमन कुछ नहीं, परमात्मा का एक शक्तिशाली हथौड़ा है। हम उसकी तिपाई पर रखे लोहे की तरह हैं और उसकी चोटें हमें नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि फिर से तैयार करने के लिए पड़ रही हैं। इसका मतलब है कि बिना कष्ट उठाए विकास नहीं हो सकता।

- जिस मनुष्य में जीवन और उसकी कठिनाइयों का मुकाबला धैर्य और दृढ़ता के साथ करने का साहस नहीं होता, वह जिंदगी के किसी भी पड़ाव को पार नहीं कर सकता।

- अगर जीवन की शक्ति के लिए विभिन्नता जरूरी है तो एकता भी जीवन की व्यवस्था और क्रमबद्धता के लिए जरूरी है।

- प्रकृति सदा ही सब प्रकार की भूल-चूक के बीच से आगे बढ़ती है। इंसान के उसके विकास में बाधा पैदा करने पर भी न सिर्फ वह फलती-फूलती रहती है, बल्कि इंसान की सहायता भी करती है।

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