एक बार एक डाकू एक संत के पास आया और बोला, 'महाराज! मैं अपने जीवन से परेशान हो गया हूं। जाने कितनों को मैंने लूटकर दुखी किया है, उनके घरों को तबाह किया है। मुझे कोई रास्ता बताइए, जिससे मैं इस बुराई से बच सकूं।'
संत ने बड़े प्रेम से कहा, 'बुराई करना छोड़ दो, उससे बच जाओगे।' डाकू ने कहा, 'अच्छी बात है। मैं कोशिश करूंगा।' डाकू चला गया। कुछ दिनों के बाद वह फिर लौटकर आया और संत से बोला, ' मैंने बुराई को छोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन छोड़ नहीं पाया। अपनी आदत से मैं लाचार हूं। मुझे कोई दूसरा उपाय बताइए।'
संत ने थोड़ी देर सोचा, फिर बोले, 'अच्छा, ऐसा करो कि तुम्हारे मन में जो भी बात उठे, उसे कर डालो, लेकिन प्रतिदिन उसे दूसरे लोगों से कह दो।' संत की बात सुनकर डाकू को बहुत खुशी हुई। उसने सोचा कि इतने बड़े संत ने जो मन में आए, सो कर डालने की आज्ञा दे दी है। अव वह बेधड़क डाका डालेगा और दूसरों से कह देगा। यह बहुत ही आसान है। वह उनके चरण छूकर लौट गया।
कुछ दिनों के बाद वह फिर संत के पास आया और बोला, 'महाराज! आपने मुझे जो उपाय बताया था, उसे मैंने बहुत आसान समझा था, लेकिन वह निकला बड़ा कठिन। बुरा काम करना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक मुश्किल है दूसरों के सामने अपनी बुराइयों को कहना।' फिर थोड़ा ठहरकर वह बोला, 'दोनों में से अब मैंने आसान रास्ता चुना है। डाका डालना ही छोड़ दिया है।'
Friday, September 30, 2011
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