नॉर्वे की महान लेखिका सिग्रिड अन्डसेट को 1928 का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा हुई। उस जमाने में आज की तरह व्यापक संचार साधन नहीं थे, इसलिए उन तक खबर देर शाम को पहुंची। पहली बार किसी महिला साहित्यकार को यह पुरस्कार हासिल हुआ था, इसलिए यह समाचार और भी मायने रखता था। देश-विदेश के कई पत्रकार सिग्रिड से बात करने को आतुर थे।
आखिरकार एक समाचार एजेंसी से जुड़े दो पत्रकार ओस्लो स्थित सिग्रिड के आवास पर उनसे बात करने जा पहुंचे। उस समय रात के नौ बजे थे। पत्रकारों ने काफी देर तक दरवाजा खटखटाया। आखिर सिग्रिड घर से बाहर आईं। पत्रकारों को देखकर वह बोलीं, 'मैं आपके आने का कारण समझ सकती हूं, लेकिन मुझे माफ कीजिए, मैं अभी आपसे बात नहीं कर सकती।' यह सुनकर पत्रकारों को बेहद आश्चर्य हुआ। कहां तो उन्हें यह लग रहा था कि सिग्रिड साक्षात्कार देने के लिए उत्सुक होंगी, पर वह तो दो बात करने तक के लिए तैयार नहीं थीं।
पत्रकारों ने उनसे पूछा, 'लेकिन आप अभी बात क्यों नहीं करना चाहतीं?' सिग्रिड ने कहा, 'क्षमा करें, यह समय मेरे बच्चों के सोने का है। अभी मैं उनके साथ ही समय बिताना पसंद करती हूं। पुरस्कार तो मुझे मिल ही चुका है और इससे मैं काफी खुश हूं, लेकिन यह उस खुशी के सामने फीकी है जो बच्चों के लिए निर्धारित समय में मुझे उनके साथ रहने में मिलती है।' पत्रकार खुशी की उनकी इस परिभाषा और सहजता से बेहद प्रभावित हुए। सुबह सिग्रिड ने उन पत्रकारों को ही सबसे पहले साक्षात्कार दिया।
Friday, September 30, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment