Friday, September 30, 2011

धर्म और चमत्कार

बात उस समय की है जब गौतम बुद्ध राजगृह में थे। वहां एक दिन किसी व्यक्ति ने बहुमूल्य चंदन के एक रत्नजडि़त प्याले में शराब भरकर उसे ऊंचे खंभे पर टांग दिया और उसके नीचे लिख दिया- 'जो कोई साधक, सिद्ध या योगी इस शराब को बिना किसी सीढ़ी या अंकुश के चमत्कारिक यंत्र या यौगिक शक्ति से उतार लेगा, मैं उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण करूंगा।' कुछ दिनों के बाद उस स्थान पर कश्यप नामक एक बौद्ध भिक्षु पहुंचा और उसने किसी युक्ति से प्याला उतार लिया।

यह चमत्कार देख वहां भीड़ एकत्रित हो गई। कुछ देर बाद यह भीड़ बुद्ध के पास पहुंची। सभी एकत्रित लोगों ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा- 'आप निस्संदेह महान है क्योंकि आपके एक शिष्य ने मात्र एक हाथ उठाकर ऊंचे खंभे पर टंगा शराब का प्याला उतार दिया।' बुद्ध यह सुनते ही तत्काल उठे और विहार में कश्यप के पास पहुंचे। उन्होंने उस रत्नजडि़त प्याले को तोड़ दिया और शिष्यों को संबोधित कर बोले, 'मैं तुम लोगों को इन चमत्कारों के प्रदर्शन के लिए बार-बार मना करता हूं। यदि तुम्हें इस तरह के चमत्कार ही आकषिर्त करते हैं तो मैं तुम्हें धर्म की कोई जानकारी नहीं दूंगा। इस तरह के करतब दिखाकर लोगों को कोई भी चमत्कृत कर सकता है पर धर्म का यह उद्देश्य नहीं है।

धर्म का मकसद मनुष्य की सेवा है, उसे दुखों से मुक्त कराना है, उसका उत्थान करना है। इतने बड़े लक्ष्य को छोड़कर तुम सब छोटे लक्ष्य के पीछे भाग रहे हो।' सभी शिष्य बुद्ध का आशय समझ गए। उन्होंने चमत्कारों से दूर रहने का वचन दिया।

No comments:

Post a Comment