Thursday, September 29, 2011

मन की चंचलता रोकना ही योग है

महर्षि पतंजलि को पहला ऐसा शख्स माना जाता है, जिसने योग को गुफाओं और कंदराओं से निकालकर आम आदमी के लायक बना दिया। वेदों और उपनिषदों के बाद योग की पहली किताब पतंजलि ने ही लिखी। उनके मुताबिक योग सिर्फ आसन और प्राणायाम तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके कई और भी अंग हैं। उन्होंने योग दर्शन को चार भागों में बांटा - समाधिपाद, साधनापाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद। पतंजलि योगसूत्र में योग के 196 ऐसे सिद्धांत हैं जिनसे जिंदगी के हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल की जा सकती है।

- चित्तवृतियों का निरोध करना यानी चित्त की चंचलता को रोके रखना ही योग है।
- योग के आठ अंग हैं -यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
- अगर किसी शख्स को ज्ञान मिल जाए तो वह अपना मन नियंत्रित कर सकता है।
- शोक, मोह, ईर्ष्या, द्वेष से परे रहने वाला शख्स ही असली योगी कहलाता है। ऐसा शख्स ही अपने मन को स्थिर कर पाने में सफल हो सकता है।
- तप, स्वाध्याय और ईश्वर की शरण लेना ही वास्तविक क्रिया योग कहलाता है।

- समाधि हासिल करने के लिए मानसिक क्लेशों को दूर करना जरूरी है।
- योग को अपनाने से अशुद्धि का नाश होता है और उससे ज्ञान और विवेक की प्राप्ति होती है।
- साक्षी भाव से जीवन जीना ही योग का असली लक्ष्य है।
- सत्य को मन, वचन और कर्म से अपनाने पर वास्तविक धर्म की प्राप्ति होती है।
- दूसरों की वस्तु चोरी न करने के स्वभाव से सभी रत्नों की प्राप्ति होती है।

- संयम रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- बर्फ और पानी एक ही चीज हैं, बस उनमें अवस्थाओं का अंतर हैं। ठीक इसी तरह प्रकृति भी तमाम रूपों में पसरी हुई है।
- कष्ट, निराशा, नर्वसनेस और सांस का तेज चलना इस बात के संकेत हैं कि आपका मन शांत नहीं है।
-योग अच्छे-बुरे और जन्म-मृत्यु़ के पार जाने की कला है।
-मौत पर जीवन खत्म नहीं होता, बल्कि तब संभावना का एक और दरवाजा खुलता है।

-चेतन और अचेतन एक ही अस्तित्व के दो छोर हैं। चेतन अचेतन हो सकता है और अचेतन चेतन होता रहता है।
-जो अणु में है, वह विराट में भी है। जो बूंद में है, वही विराट सागर में भी है।
-देना ही पाना है। जब बूंद सागर में मिलती है तो वह खुद सागर हो जाती है।
-मनुष्य का व्यक्तित्व सात चक्रों में बंटा हुआ है। इन चक्रों में अनंत ऊर्जा सोई हुई है। हर चक्र खोला जा सकता है।
-ध्यान करने से चक्र सक्रिय हो जाते हैं।
-खुद के प्रति होश से भरना साधना है और आखिरकार होश न रह जाए, खुद खो जाए, यह सिद्धि है।
-जैसे ही मैं खो जाता है, सब मिल जाता है।

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