डच दार्शनिक स्पीनोजा का जन्म 24 नवंबर 1632 को हुआ। उन्हें सत्रहवीं सदी के सबसे बड़े चिंतक-दार्शनिकों में से माना जाता है। यह दीगर बात है कि जीते जी उनके विचारों को वह महत्व नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। इसकी वजह स्पीनोजा का आजाद खयाल और धामिर्क मान्यताओं के खिलाफ राय प्रकट करना था। लेकिन, अलोकप्रिय होने का खतरा उठाकर भी उन्होंने प्रचलित मान्यताओं के उलट अपनी बातें बहुत दृढ़ता के साथ रखीं। स्पीनोजा की ख्याति का आधार मृत्यु के बाद छपी उनकी पुस्तक 'एथिक्स' है। उनकी मृत्यु 21 फरवरी 1667 को हो गई।
न आंसू बहाओ, न क्रोध बढ़ाओ, चीजों को समझो।
उम्मीद है तो डर होगा ही, जैसे कि डर है तो उम्मीद होती है।
इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितना महीन काटते हो, चीजों के दो हिस्से हमेशा रहेंगे।
हमारी महत्वाकांक्षाएं अत्यधिक ताकतवर बनने की हमारी लालसाएं ही हैं।
हमारी तमाम खुशियां और गम इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम जिन चीजों से प्रेम करते हैं, उनसे हमारा जुड़ाव कैसा है।
एक चीज सिर्फ इसलिए झूठी नहीं पड़ जाती क्योंकि उसके पक्ष में कई लोग नहीं बोलते।
यह दुनिया ज्यादा सुखी होती अगर लोग अपनी बोलने की क्षमता के जितना ही चुप रहने की क्षमता का भी इस्तेमाल करना जानते।
सारी अच्छी चीजें मुश्किल होने की वजह से हमें अनूठी जान पड़ती है।
लोग सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जबान पर काबू पाने में महसूस करते हैं और अपनी इच्छाओं को अपने शब्दों से कहीं बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं।
बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है अतीत से सबक सीखना।
Friday, September 30, 2011
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