एक सेठ के पास लाखों की संपत्ति थी और भरा-पूरा परिवार था, फिर भी उसका मन अशांत रहता था। जब उसकी परेशानी बहुत बढ़ गई तो वह एक साधु के पास गया और अपना कष्ट बताकर प्रार्थना की, 'महाराज, जैसे भी हो, मेरी अशांति दूर कीजिए।'
साधु ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा, 'तुम्हारे कष्ट का एकमात्र कारण यह है कि तुम जिंदगी को सहजता से नहीं लेते। अगर सुख या दुख को समान भाव से लेने लगोगे तो कोई कष्ट नहीं होगा।' सेठ को यह बात समझ में नहीं आई। साधु इस चीज को भांप गए। उन्होंने कुछ सोचकर कहा, 'यहां से थोड़ी दूर पर तुम्हारी तरह ही एक अमीर कारोबारी रहता है, उसके पास जाओ वह तुम्हें रास्ता बता देगा।'
सेठ ने सोचा कि साधु उसे बहका रहे है। उसने साधु से कहा, 'स्वामीजी, मैं तो आपके पास बड़ी आशा लेकर आया हूं। आप ही मेरा उद्धार कीजिए। मैंने सोचा था कि आप मुझे कोई मंत्र वगैरह बताएंगे।' साधु ने हंसकर कहा, 'जाओ उसी कारोबारी के पास तुम्हें प्रसन्नता का मंत्र मिल जाएगा।' लाचार होकर सेठ उस कारोबारी के पास पहुंचा। पहुंचते ही वह समझ गया कि उस कारोबारी का लाखों का व्यापार है।
सेठ एक ओर बैठ गया। इतने में एक आदमी आ गया। उसका मुंह उतरा हुआ था। वह कारोबारी से बोला, 'मालिक हमारा जहाज समुद्र में डूब गया। लाखों का नुकसान हो गया।' कारोबारी ने मुस्कराकर कहा, ' इसमें परेशान होने की क्या बात है? व्यापार में ऐसा होता ही रहता है।' इतना कहकर वह अपने साथी से बात करने लगा। थोड़ी देर में दूसरा आदमी आया और बोला, 'सरकार रूई का दाम चढ़ गया है। हमें लाखों का फायदा हो गया।' कारोबारी ने कहा, 'मुनीमजी, इसमें ज्यादा खुश होने की क्या बात है? व्यापार में तो ऐसा होता ही रहता है।' सेठ सब कुछ समझ गया। उसे प्रसन्नता का मंत्र मिल गया।
Friday, September 30, 2011
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