Friday, September 30, 2011

गांधीजी की आस्था

गांधीजी सुबह उठ कर कभी - कभी कुरान का पाठ किया करते थे। सूरा - ए - फ़ातेहा उनको जुबानी याद था। इसको याद रखने के कारण तो एक बार उनकी जान भी बच गई थी। हुआ यूं कि जब बंगाल में सांप्रदायिक दंगों की भड़कती आग को ठंडा करने के लिए गांधीजी सड़कों पर लोगों से शांति का आग्रह कर रहे थे तो नोआखाली के बाबू बाजार में एक कट्टर मुसलमान ने गांधीजी को ' काफि़र ' पुकार कर उन पर हमला किया। गांधीजी , जो वैसे ही काफी दुबले - पतले थे और आए दिन व्रत - उपवास आदि भी रखते रहे थे , जमीन पर गिर गए और गिरते हुए उन्होंने सूरा - ए - फ़ातेहा को शुद्ध उच्चारण के साथ पढ़ा जिसमें सभी के लिए शांति व सलामती का संदेश है।

एक हिंदू को कुरान की आयत पढ़ते देख वह मुसलमान तुरंत उनके पांवों में पड़ गया और तब से उनका शिष्य बन गया। मौलाना आजाद के एक लेख से जो दैनिक ' वकील ' में प्रकाशित हुआ था , एक वाकया मिलता है कि नोआखाली में ही दंगा पर उतारू मुसलमानों के एक गुट से गांधी ने कहा , ' तुम कैसे मुसलमान हो ? क्या तुमने हजरत मुहम्मद से कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की ? आज अगर हजरत मुहम्मद यहां आएं तो तुममें से बहुत से मुसलमानों को वे अपनाने से इनकार कर देंगे। तुम से तो अच्छा मुसलमान मैं हूं कि मारकाट नहीं कर रहा। वे अवश्य मुझे अपनाएंगे क्योंकि मैं उनके बताए रास्ते पर चल रहा हूं। '

जिस प्रकार से मौलाना आजाद की धर्म में अटूट आस्था थी , उसी प्रकार गांधीजी की भी थी। गांधीजी ने अपने पत्रों में मौलाना साहब को लिखा कि अपने छात्र जीवन से ही उन्हें गीता पाठ से आत्मिक व मानसिक शांति की प्राप्ति होती थी। हजरत मुहम्मद का चरित्र उन्हें बहुत पसंद था। अपने जीवन में भी वे उनका अनुसरण करते थे। गांधीजी हजरत मुहम्मद के चरित्र से कितना प्रभावित थे यह उनके लेखन से जाहिर है। गांधीजी ने अपने लेखन में हजरत मुहम्मद के विचारों को प्रमुखता से व्यक्त किया।

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