Friday, September 30, 2011

इंसानों को कुचलने से नष्ट नहीं हो सकते विचार

आजादी के सिपाही भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के गांव खतकर कलां में हुआ था। सिख परिवार में जन्मे भगत सिंह ने छोटी उम्र से ही अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा दिया था। उन्होंने तमाम यूरोपीय क्रांतियों के बारे में पढ़ा और किशोरावस्था से ही साम्यवाद की ओर आकर्षित हो गए। अंग्रेजों का विरोध करने पर उन्हें जेल में डाल दिया गया। वहां भी उन्होंने भारतीय कैदियों के प्रति नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाई और 64 दिन की भूख हड़ताल रखी। अंगेज पुलिस अफसर जॉन सान्डर्स के कत्ल के जुर्म में भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।

कोट्स
अगर बहरों के कानों में आवाज पहुंचानी है, तो आवाज का ऊंचा होना बहुत जरूरी है।
हमारे लिए समझौता करने का मतलब कभी भी समर्पण करना नहीं है, बल्कि एक कदम आगे बढ़कर फिर थोड़ा आराम फरमाने का है।
इंसानों को कुचलने से विचारों को नष्ट नहीं किया जा सकता।
क्रांति से हमारा मतलब अन्याय के खात्मे का दम रखने से है।
कठोर आलोचना और स्वतंत्र विचारधारा ही वे दो जरूरी खूबियां हैं, जो हर क्रांतिकारियों के जहन में होनी चाहिए।
हमारे पास ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जोकि शाम का थोड़ा-बहुत समय जनता को भाषण देने के लिए निकाल ही लेते हैं। वे सब बेकार हैं। हमें लेनिन जैसे जांबाज क्रांतिकारी से कुछ सीखना चाहिए, जिनकी क्रांति पाने की चाहत के अलावा कोई दूसरी महत्वाकांक्षा नहीं थी।
प्यार इंसान को नीचे नहीं झुकाता, बल्कि हमेशा उसके चरित्र को ऊपर उठाता है, इसलिए प्यार दो और प्यार लो।
अगर आप आक्रामकता से ताकत का इस्तेमाल करते हैं तो वह हिंसा कहलाती है और यह नैतिकता की दृष्टि से गलत कहलाएगी, मगर जब यही काम किसी न्यायसंगत सबब को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है तो उसका एक नैतिक औचित्य होता है।
आप सभी का मानना है कि इस धरती और इस सौरमंडल को चलाने वाला सर्वशक्तिमान कहीं मौजूद है। मैं जानना चाहता हूं कि आखिर वह कहां है? मैं उससे यह पूछना चाहता हूं कि आखिर उसने यह दुनिया क्यों बनाई, जोकि पूरी तरह से दुखों और परेशानियों से भरी है, जहां पर एक भी इंसान चैन की जिंदगी नहीं जी सकता?
समाज को भगवान के अस्तित्व पर वैसे ही सवाल उठाने चाहिए जैसे उसने मूर्ति पूजा और इसी तरह की सीमित अवधारणाओं पर उठाए थे। अगर ऐसा होगा तो इंसान कम-से-कम अपने पैरों पर खडे़ होने की कोशिश तो करेगा। यथार्थवादी हो जाने के बाद वह अपनी श्रद्धा व भक्ति को दरकिनार कर विरोधियों का वीरता के साथ मुकाबला कर सकेगा।
पुरानी मान्यताओं के सिद्धांतों की आलोचना करना हर उस शख्स के लिए जरूरी है, जो प्रगति के मकसद के लिए खड़ा हुआ है।

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