गोस्वामी तुलसी दास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर में 1532 में हुआ था। शुरू में वह दुनियादारी में आसक्त थे, लेकिन पत्नी रत्नावली का ताना सुनकर रातोंरात परम रामभक्त बन गए। तुलसीदास जी की कई रचनाएं हैं, जिनमें रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, बजरंगबाण, विनयपत्रिका और रत्नावली खासी चर्चित हैं। माना जाता है कि जन्म के समय ही उनके 32 दांत थे और उन्हें रामबोला भी कहा जाता था।
तुलसी दास के विचार
- प्रीत की सुंदर रीत देखिए कि दूध में जल मिला हुआ हो तो वह भी दूध समान ही दिखता है। प्रेम का संबंध ऐसे ही कपटरहित होना चाहिए। अगर कपट रूपी खटाई उसमें डल जाए तो दूध का स्वाद खत्म हो जाता है।
- इस संसार में सभी से प्रेमपूर्वक मिलना चाहिए क्योंकि न जाने किस वेश में नारायण मिल जाएं।
- अच्छी संगत के बिना विवेक नहीं जागता और विवेक के बिना कोई काम पूरा नहीं होता। अच्छी संगत आनंद और कल्याण करने वाली है।
- जैसे पारस का साथ पाकर लोहा भी सोना बन जाता है, ऐसे ही दुष्ट लोग भी अच्छी संगत में रहकर सुधर जाते हैं। इसी तरह अगर दैवयोग से भले लोग गलत संगति में पड़ भी जाएं तो भी उनके अच्छे गुण कभी-न-कभी अपना प्रभाव दिखाते हैं।
- मित्र, स्वामी, पिता और गुरु के घर बिना बुलाए भी जा सकते हैं, लेकिन वहां अगर आपका विरोध होता हो तो ऐसे घर में जाने से कल्याण नहीं होता।
- समरथ को नहीं दोष गोसाईं यानी जो सार्मथ्यवान है, उसके दोष छुप जाते हैं। जैसे गंगा में पवित्र और अपवित्र दोनों तरह के जल बहते हैं, पर गंगा को कोई अपवित्र नहीं कहता।
- होनहार बलवान। जैसी होनी होती है, वैसा वातावरण बन जाता है। या तो होने वाली घटना आप तक आ जाती है या आप उस तक पहुंच जाते हैं।
- तेजस्वी दुश्मन को अकेला होते हुए भी कमतर नहीं आंकना चाहिए।
- तीन बुराइयां सबसे प्रबल हैं : काम, क्रोध और लोभ।
- गंगाजल से बनी मदिरा को संत जन अपवित्र मानकर पान नहीं करते, पर वही मदिरा अगर गंगाजी में मिल जाए तो वह भी पवित्र हो जाती है।
- अच्छे या संत चरित्र वाले लोग कपास जैसे होते हैं। जैसे कपास का फल स्वादरहित होते हुए भी गुणमयी होता है, उसी तरह संत का चरित्र भी गुणों का भंडार होता है।
Thursday, September 29, 2011
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