महात्मा गांधी कांग्रेस के वर्धा अधिवेशन में भाग लेने साबरमती से वर्धा जा रहे थे। वह हमेशा की तरह रेल के तीसरे दर्जे में सफर कर रहे थे। उनके साथ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं का एक समूह मौजूद था। गांधीजी उनसे बातें कर रहे थे। सभी कांग्रेसी कार्यकर्ता उनके सामने अपनी समस्याएं रख रहे थे और गांधीजी उनके समाधान सुझा रहे थे। इसी क्रम में कांग्रेस के एक कार्यकर्ता ने उनसे पूछा, 'बापू, मैं बहुत जल्दी क्रोधित हो जाता हूं। मैं इसके लिए कई बार बहुत ग्लानि भी महसूस करता हूं, परंतु इस पर मेरा कोई वश नहीं होता। क्या करूं समझ में नहीं आता। कृपया इससे छुटकारे का कोई रास्ता बताएं।'
गांधी जी पहले मुस्कराए फिर बोले, 'यह तो विचित्र बात है, तुम जरा अभी क्रोध कर दिखाओ।' जब कार्यकर्ता ने बताया कि वह अभी ऐसा नहीं कर सकता तो गांधीजी ने पूछा, 'भला क्यों?' कार्यकर्ता ने जवाब दिया, 'क्रोध तो अचानक आता है और फिर थोड़ी ही देर में चला भी जाता है। मैं चाहकर कुछ नहीं कर पाता।' गांधीजी ने उसे समझाते हुए कहा, 'इसका मतलब है कि क्रोध तुम्हारी प्रकृति में नहीं है। यह अगर तुम्हारे स्वभाव का अंग होता तो तुम आसानी से अभी क्रोध कर के दिखा सकते थे। अब तुम बताओ कि जो चीज तुम्हारी है ही नहीं उसे तुम खुद पर हावी क्यों होने देते हो?' कार्यकर्ता की आंखें खुल गईं। उसने अब कभी क्रोध न करने का फैसला किया। उसे जब भी गुस्सा आने को होता, गांधीजी की बात याद आ जाती और वह मुस्करा देता।
Friday, September 30, 2011
तीन कठिन कार्य
एक बार यशोधन नामक राजा अपने दरबार में दरबारियों से चर्चा कर रहे थे। अचानक यशोधन ने पूछा कि दुनिया में ऐसे तीन कौन से कार्य हैं जिन्हें करना मनुष्य के लिए सबसे कठिन होता है? राजा के प्रश्न सुनकर सभी दरबारी विचारमग्न हो गए। काफी सोचने के बाद एक दरबारी बोला, 'महाराज, भारी-भरकम वजन उठाना दुनिया में सबसे कठिन कार्य है।' दूसरा दरबारी बोला, 'मेरे विचार में तो पहाड़ पर चढ़ना सबसे दुष्कर कार्य है।
यह प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं है।' यह सुनकर एक अन्य व्यक्ति बोला, 'महाराज, मेरे ख्याल से पानी पर चलना और आग में जलना सबसे मुश्किल है। अग्नि की जरा सी चिंगारी व्यक्ति की जान ले लेती है।' इस प्रकार अपने-अपने अनुसार सभी ने अनेक ऐसे कार्यों को गिना दिया, जिन्हें कठिन माना जा सकता था किंतु राजा किसी के भी जवाब से सहमत नहीं हुए। उन्होंने स्वामी गिरिनंद का बहुत नाम सुना था।
स्वामी गिरिनंद लोगों की सभी समस्याओं का समाधान करते थे। यशोधन स्वयं स्वामी गिरिनंद के आश्रम में गए और उन्हें प्रणाम कर उनके पास बैठ गए। स्वामी जी समझ गए कि राजा कुछ पूछने के लिए उनके पास आए हैं। स्वामी जी के पूछने पर राजा बोले, 'महाराज, आप मुझे तीन ऐसे कार्य बताइए जो बेहद कठिन हैं।' यह सुनकर स्वामी गिरिनंद मुस्कराते हुए बोले, 'तीन कठिन कार्य तो मैं बता दूंगा लेकिन तुमको उन कार्यों को करने का प्रयास करना पड़ेगा।'
राजा ने उन कार्यों को करने का वचन दे दिया। तब स्वामी जी बोले, 'दुनिया के तीन कठिनतम कार्य शारीरिक नहीं हैं। वे कुछ और ही हैं। उनमें पहला है-घृणा के बदले प्रेम करना। दूसरा है अपने स्वार्थ व क्रोध का त्याग और तीसरा है-यह कहना कि मैं गलती पर था।' यह सुनकर राजा ने कहा, 'आप एकदम सही कह रहे हैं। मुझे आशीर्वाद दें कि मैं ये कार्य कर सकूं।' स्वामी जी ने राजा को आशीर्वाद दिया।
यह प्रत्येक व्यक्ति के बस की बात नहीं है।' यह सुनकर एक अन्य व्यक्ति बोला, 'महाराज, मेरे ख्याल से पानी पर चलना और आग में जलना सबसे मुश्किल है। अग्नि की जरा सी चिंगारी व्यक्ति की जान ले लेती है।' इस प्रकार अपने-अपने अनुसार सभी ने अनेक ऐसे कार्यों को गिना दिया, जिन्हें कठिन माना जा सकता था किंतु राजा किसी के भी जवाब से सहमत नहीं हुए। उन्होंने स्वामी गिरिनंद का बहुत नाम सुना था।
स्वामी गिरिनंद लोगों की सभी समस्याओं का समाधान करते थे। यशोधन स्वयं स्वामी गिरिनंद के आश्रम में गए और उन्हें प्रणाम कर उनके पास बैठ गए। स्वामी जी समझ गए कि राजा कुछ पूछने के लिए उनके पास आए हैं। स्वामी जी के पूछने पर राजा बोले, 'महाराज, आप मुझे तीन ऐसे कार्य बताइए जो बेहद कठिन हैं।' यह सुनकर स्वामी गिरिनंद मुस्कराते हुए बोले, 'तीन कठिन कार्य तो मैं बता दूंगा लेकिन तुमको उन कार्यों को करने का प्रयास करना पड़ेगा।'
राजा ने उन कार्यों को करने का वचन दे दिया। तब स्वामी जी बोले, 'दुनिया के तीन कठिनतम कार्य शारीरिक नहीं हैं। वे कुछ और ही हैं। उनमें पहला है-घृणा के बदले प्रेम करना। दूसरा है अपने स्वार्थ व क्रोध का त्याग और तीसरा है-यह कहना कि मैं गलती पर था।' यह सुनकर राजा ने कहा, 'आप एकदम सही कह रहे हैं। मुझे आशीर्वाद दें कि मैं ये कार्य कर सकूं।' स्वामी जी ने राजा को आशीर्वाद दिया।
आत्मनिर्भरता का पाठ
किलेंथिस नामक बालक ग्रीस की एक पाठशाला में पढ़ता था। वह बहुत ही गरीब था। उसके शरीर पर पूरे कपड़े भी नहीं थे, पर पाठशाला में प्रतिदिन जो फीस देनी पड़ती थी, उसे वह नियम से देता था। पढ़ने में वह इतना तेज था कि दूसरे सब विद्यार्थी उससे ईर्ष्या करते थे। कुछ लोगों को संदेह था कि किलेंथिस दैनिक फीस के जो पैसे देता है, वह जरूर कहीं से चुराकर लाता होगा।
आखिरकार उन्होंने उसे चोर बता कर पकड़वा दिया। मामला अदालत में गया। किलेंथिस ने निर्भयता के साथ जज से कहा कि मैं बिलकुल निर्दोष हूं। अपने इस बयान के समर्थन में दो गवाह पेश करना चाहता हूं। गवाह बुलाए गए। पहला गवाह था एक माली। उसने कहा, 'यह बालक प्रतिदिन मेरे बगीचे में आकर कुएं से पानी खींचता है और इसके लिए इसे कुछ पैसे मजदूरी के दिए जाते हैं। दूसरी गवाही में एक बुढ़िया आई।
उसने कहा, 'मैं अकेली हूं। यह बालक प्रतिदिन मेरे घर पर गेहूं पीस जाता है और बदले में अपनी मजदूरी के पैसे ले जाता है।' इस प्रकार शारीरिक परिश्रम करके किलेंथिस कुछ पैसे प्रतिदिन कमाता और उसी से अपना निर्वाह करता तथा पाठशाला की फीस भी भरता। किलेंथिस की इस नेक कमाई की बात सुन कर जज बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे इतनी सहायता देने की पेशकश की जिससे उसकी पढ़ाई पूरी हो सके।
परंतु उसने सहायता लेना स्वीकार नहीं किया और कहा, 'मैं परिश्रम करके अपने बलबूते पढ़ना चाहता हूं। मेरे माता पिता ने मुझे स्वावलंबी बनना सिखाया है।' यह सुनकर सब दंग रह गए।
आखिरकार उन्होंने उसे चोर बता कर पकड़वा दिया। मामला अदालत में गया। किलेंथिस ने निर्भयता के साथ जज से कहा कि मैं बिलकुल निर्दोष हूं। अपने इस बयान के समर्थन में दो गवाह पेश करना चाहता हूं। गवाह बुलाए गए। पहला गवाह था एक माली। उसने कहा, 'यह बालक प्रतिदिन मेरे बगीचे में आकर कुएं से पानी खींचता है और इसके लिए इसे कुछ पैसे मजदूरी के दिए जाते हैं। दूसरी गवाही में एक बुढ़िया आई।
उसने कहा, 'मैं अकेली हूं। यह बालक प्रतिदिन मेरे घर पर गेहूं पीस जाता है और बदले में अपनी मजदूरी के पैसे ले जाता है।' इस प्रकार शारीरिक परिश्रम करके किलेंथिस कुछ पैसे प्रतिदिन कमाता और उसी से अपना निर्वाह करता तथा पाठशाला की फीस भी भरता। किलेंथिस की इस नेक कमाई की बात सुन कर जज बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे इतनी सहायता देने की पेशकश की जिससे उसकी पढ़ाई पूरी हो सके।
परंतु उसने सहायता लेना स्वीकार नहीं किया और कहा, 'मैं परिश्रम करके अपने बलबूते पढ़ना चाहता हूं। मेरे माता पिता ने मुझे स्वावलंबी बनना सिखाया है।' यह सुनकर सब दंग रह गए।
सबसे आसान रास्ता
एक बार एक डाकू एक संत के पास आया और बोला, 'महाराज! मैं अपने जीवन से परेशान हो गया हूं। जाने कितनों को मैंने लूटकर दुखी किया है, उनके घरों को तबाह किया है। मुझे कोई रास्ता बताइए, जिससे मैं इस बुराई से बच सकूं।'
संत ने बड़े प्रेम से कहा, 'बुराई करना छोड़ दो, उससे बच जाओगे।' डाकू ने कहा, 'अच्छी बात है। मैं कोशिश करूंगा।' डाकू चला गया। कुछ दिनों के बाद वह फिर लौटकर आया और संत से बोला, ' मैंने बुराई को छोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन छोड़ नहीं पाया। अपनी आदत से मैं लाचार हूं। मुझे कोई दूसरा उपाय बताइए।'
संत ने थोड़ी देर सोचा, फिर बोले, 'अच्छा, ऐसा करो कि तुम्हारे मन में जो भी बात उठे, उसे कर डालो, लेकिन प्रतिदिन उसे दूसरे लोगों से कह दो।' संत की बात सुनकर डाकू को बहुत खुशी हुई। उसने सोचा कि इतने बड़े संत ने जो मन में आए, सो कर डालने की आज्ञा दे दी है। अव वह बेधड़क डाका डालेगा और दूसरों से कह देगा। यह बहुत ही आसान है। वह उनके चरण छूकर लौट गया।
कुछ दिनों के बाद वह फिर संत के पास आया और बोला, 'महाराज! आपने मुझे जो उपाय बताया था, उसे मैंने बहुत आसान समझा था, लेकिन वह निकला बड़ा कठिन। बुरा काम करना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक मुश्किल है दूसरों के सामने अपनी बुराइयों को कहना।' फिर थोड़ा ठहरकर वह बोला, 'दोनों में से अब मैंने आसान रास्ता चुना है। डाका डालना ही छोड़ दिया है।'
संत ने बड़े प्रेम से कहा, 'बुराई करना छोड़ दो, उससे बच जाओगे।' डाकू ने कहा, 'अच्छी बात है। मैं कोशिश करूंगा।' डाकू चला गया। कुछ दिनों के बाद वह फिर लौटकर आया और संत से बोला, ' मैंने बुराई को छोड़ने की बहुत कोशिश की, लेकिन छोड़ नहीं पाया। अपनी आदत से मैं लाचार हूं। मुझे कोई दूसरा उपाय बताइए।'
संत ने थोड़ी देर सोचा, फिर बोले, 'अच्छा, ऐसा करो कि तुम्हारे मन में जो भी बात उठे, उसे कर डालो, लेकिन प्रतिदिन उसे दूसरे लोगों से कह दो।' संत की बात सुनकर डाकू को बहुत खुशी हुई। उसने सोचा कि इतने बड़े संत ने जो मन में आए, सो कर डालने की आज्ञा दे दी है। अव वह बेधड़क डाका डालेगा और दूसरों से कह देगा। यह बहुत ही आसान है। वह उनके चरण छूकर लौट गया।
कुछ दिनों के बाद वह फिर संत के पास आया और बोला, 'महाराज! आपने मुझे जो उपाय बताया था, उसे मैंने बहुत आसान समझा था, लेकिन वह निकला बड़ा कठिन। बुरा काम करना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक मुश्किल है दूसरों के सामने अपनी बुराइयों को कहना।' फिर थोड़ा ठहरकर वह बोला, 'दोनों में से अब मैंने आसान रास्ता चुना है। डाका डालना ही छोड़ दिया है।'
प्रसनता का मंत्र
एक सेठ के पास लाखों की संपत्ति थी और भरा-पूरा परिवार था, फिर भी उसका मन अशांत रहता था। जब उसकी परेशानी बहुत बढ़ गई तो वह एक साधु के पास गया और अपना कष्ट बताकर प्रार्थना की, 'महाराज, जैसे भी हो, मेरी अशांति दूर कीजिए।'
साधु ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा, 'तुम्हारे कष्ट का एकमात्र कारण यह है कि तुम जिंदगी को सहजता से नहीं लेते। अगर सुख या दुख को समान भाव से लेने लगोगे तो कोई कष्ट नहीं होगा।' सेठ को यह बात समझ में नहीं आई। साधु इस चीज को भांप गए। उन्होंने कुछ सोचकर कहा, 'यहां से थोड़ी दूर पर तुम्हारी तरह ही एक अमीर कारोबारी रहता है, उसके पास जाओ वह तुम्हें रास्ता बता देगा।'
सेठ ने सोचा कि साधु उसे बहका रहे है। उसने साधु से कहा, 'स्वामीजी, मैं तो आपके पास बड़ी आशा लेकर आया हूं। आप ही मेरा उद्धार कीजिए। मैंने सोचा था कि आप मुझे कोई मंत्र वगैरह बताएंगे।' साधु ने हंसकर कहा, 'जाओ उसी कारोबारी के पास तुम्हें प्रसन्नता का मंत्र मिल जाएगा।' लाचार होकर सेठ उस कारोबारी के पास पहुंचा। पहुंचते ही वह समझ गया कि उस कारोबारी का लाखों का व्यापार है।
सेठ एक ओर बैठ गया। इतने में एक आदमी आ गया। उसका मुंह उतरा हुआ था। वह कारोबारी से बोला, 'मालिक हमारा जहाज समुद्र में डूब गया। लाखों का नुकसान हो गया।' कारोबारी ने मुस्कराकर कहा, ' इसमें परेशान होने की क्या बात है? व्यापार में ऐसा होता ही रहता है।' इतना कहकर वह अपने साथी से बात करने लगा। थोड़ी देर में दूसरा आदमी आया और बोला, 'सरकार रूई का दाम चढ़ गया है। हमें लाखों का फायदा हो गया।' कारोबारी ने कहा, 'मुनीमजी, इसमें ज्यादा खुश होने की क्या बात है? व्यापार में तो ऐसा होता ही रहता है।' सेठ सब कुछ समझ गया। उसे प्रसन्नता का मंत्र मिल गया।
साधु ने उसकी बात ध्यान से सुनी और कहा, 'तुम्हारे कष्ट का एकमात्र कारण यह है कि तुम जिंदगी को सहजता से नहीं लेते। अगर सुख या दुख को समान भाव से लेने लगोगे तो कोई कष्ट नहीं होगा।' सेठ को यह बात समझ में नहीं आई। साधु इस चीज को भांप गए। उन्होंने कुछ सोचकर कहा, 'यहां से थोड़ी दूर पर तुम्हारी तरह ही एक अमीर कारोबारी रहता है, उसके पास जाओ वह तुम्हें रास्ता बता देगा।'
सेठ ने सोचा कि साधु उसे बहका रहे है। उसने साधु से कहा, 'स्वामीजी, मैं तो आपके पास बड़ी आशा लेकर आया हूं। आप ही मेरा उद्धार कीजिए। मैंने सोचा था कि आप मुझे कोई मंत्र वगैरह बताएंगे।' साधु ने हंसकर कहा, 'जाओ उसी कारोबारी के पास तुम्हें प्रसन्नता का मंत्र मिल जाएगा।' लाचार होकर सेठ उस कारोबारी के पास पहुंचा। पहुंचते ही वह समझ गया कि उस कारोबारी का लाखों का व्यापार है।
सेठ एक ओर बैठ गया। इतने में एक आदमी आ गया। उसका मुंह उतरा हुआ था। वह कारोबारी से बोला, 'मालिक हमारा जहाज समुद्र में डूब गया। लाखों का नुकसान हो गया।' कारोबारी ने मुस्कराकर कहा, ' इसमें परेशान होने की क्या बात है? व्यापार में ऐसा होता ही रहता है।' इतना कहकर वह अपने साथी से बात करने लगा। थोड़ी देर में दूसरा आदमी आया और बोला, 'सरकार रूई का दाम चढ़ गया है। हमें लाखों का फायदा हो गया।' कारोबारी ने कहा, 'मुनीमजी, इसमें ज्यादा खुश होने की क्या बात है? व्यापार में तो ऐसा होता ही रहता है।' सेठ सब कुछ समझ गया। उसे प्रसन्नता का मंत्र मिल गया।
स्वर्ग और नरक
लाओत्से के पास एक युवा सैनिक, जिसने धर्मशास्त्रों का भी अध्ययन किया था, पहुंचा। उसने सुन रखा था कि लाओत्से के पास सभी समस्याओं का समाधान है। युवा सैनिक लाओत्से से जानना चाहता था कि स्वर्ग और नरक में क्या अंतर है? लाओत्से ने उसे अच्छी तरह देखा और पूछा, 'युवक तुम्हारा पेशा क्या है?' सैनिक ने अपने पेशे के बारे में बताया तो लाओत्से ने उसका उपहास करते हुए कहा, 'तुम और सैनिक! तुम्हें तो देखकर पता चलता है कि तुम बड़े डरपोक हो। तुम्हें तो बंदूक भी ठीक से उठाना नहीं आता होगा। तुमने तो शायद ही आज तक कोई वीरता का काम किया हो।' यह कहकर लाओत्से ने ठहाका लगाया।
इस पर सैनिक की भौंहें तन गई। उसका खून खौल उठा। उसने बंदूक निकाल ली और ज्यों ही घोड़ा दबाने को हुआ कि तभी लाओत्से बोल पड़े, 'बस यही है नरक का द्वार। तुम इससे आगे बढ़े नहीं कि नरक में पहुंच जाओगे।' इसके बाद लाओत्से ने विस्तार से क्रोध, उससे होने वाले नुकसान और क्रोध पर नियंत्रण की जरूरत पर चर्चा की। उन्होंने इस क्रम में उसे समझाते हुए कहा, 'स्वर्ग और नरक कहीं बाहर नहीं हैं। वे हमारे भीतर हैं। वे हमारी सोच और व्यवहार में प्रकट होते हैं।' लाओत्से की बात का मर्म समझते ही युवक की आंखें खुल गईं। वह अपने किए पर ग्लानि से भर गया और लाओत्से के चरणों में गिर पड़ा। लाओत्से ने कहा, 'लो, अब तुम्हारे लिए खुल गया स्वर्ग का द्वार। आगे बढ़ते ही तुम्हारा दुनिया की हर खुशियों से सामना होगा।'
इस पर सैनिक की भौंहें तन गई। उसका खून खौल उठा। उसने बंदूक निकाल ली और ज्यों ही घोड़ा दबाने को हुआ कि तभी लाओत्से बोल पड़े, 'बस यही है नरक का द्वार। तुम इससे आगे बढ़े नहीं कि नरक में पहुंच जाओगे।' इसके बाद लाओत्से ने विस्तार से क्रोध, उससे होने वाले नुकसान और क्रोध पर नियंत्रण की जरूरत पर चर्चा की। उन्होंने इस क्रम में उसे समझाते हुए कहा, 'स्वर्ग और नरक कहीं बाहर नहीं हैं। वे हमारे भीतर हैं। वे हमारी सोच और व्यवहार में प्रकट होते हैं।' लाओत्से की बात का मर्म समझते ही युवक की आंखें खुल गईं। वह अपने किए पर ग्लानि से भर गया और लाओत्से के चरणों में गिर पड़ा। लाओत्से ने कहा, 'लो, अब तुम्हारे लिए खुल गया स्वर्ग का द्वार। आगे बढ़ते ही तुम्हारा दुनिया की हर खुशियों से सामना होगा।'
क्रोध का जाल
चंडकौशिक ने तप तो बहुत किया , पर वे अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं कर सके। यह दुर्गुण उनमें ज्यों का त्यों बना रहा। एक दिन उनके पैर से एक मेंढक कुचल कर मर गया। उनके साथी तपस्वी ने इस ओर उनका ध्यान आकर्षित किया तो चंडकौशिक आगबबूला हो गए। वे उस साथी को मारने दौड़े। क्रोधावेश में उन्हें बीच में खड़ा खंभा भी न दिखा। दौड़ते हुए उसी से टकरा गए। यही चोट उनकी मृत्यु का कारण बन गई।
उन्होंने उसी आश्रम में फिर जन्म लिया और साधना के द्वारा उसी के संचालक बने , फिर भी उनका क्रोध गया नहीं। एक बार कुछ भक्तजन उपहार और पूजा उपकरण लेकर उपस्थित हुए। भक्तों के व्यवहार और उपहार में उन्हें कुछ दोष दिखा तो वे क्रुद्ध होकर उन्हें मारने दौड़े। भक्त भागे , वे पीछे दौड़े। काफी देर तक दौड़ चलती रही। क्रोधावेश ने चंडकौशिक को एकदम पागल बना दिया था। रास्ते के व्यवधान भी उन्हें सूझ न पड़े। एक कुएं में उनका पैर पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई। उनका जन्म तीसरी बार उसी आश्रम में हुआ।
इस बार वे भयंकर विषधर सर्प की देह लेकर जन्मे। जो कोई उधर से निकलता उसी का पीछा करते और जो पकड़ में आ जाता उसे डस कर उसका प्राण हरण कर लेते। एक बार भगवान महावीर उस आश्रम में पधारे , तो चंडकौशिक ने उन्हें भी डस लिया। दंश से भगवान का पैर क्षत - विक्षत हो गया , फिर भी करुणा की उस प्रतिमूर्ति के चेहरे पर तनिक भी क्रोध न आया।
वे मुस्कराते रहे और उस क्षुद्र प्राणी को अपनी अनंत क्षमा का पात्र बनाए रहे। आश्रमवासी उस दुष्ट जीव को मारने आए , तो उन्होंने रोक दिया। भगवान की दिव्य सत्ता को पहचानकर सर्प योनि में बैठे चंडकौशिक ने पश्चाताप व्यक्त किया। उन्हें भगवान के उपदेश सुनने के बाद मुक्ति मिली। फिर मानव देह में जन्म लेकर उन्होंने क्रोध शमन हेतु तप किया और सिद्ध पुरुष बने।
उन्होंने उसी आश्रम में फिर जन्म लिया और साधना के द्वारा उसी के संचालक बने , फिर भी उनका क्रोध गया नहीं। एक बार कुछ भक्तजन उपहार और पूजा उपकरण लेकर उपस्थित हुए। भक्तों के व्यवहार और उपहार में उन्हें कुछ दोष दिखा तो वे क्रुद्ध होकर उन्हें मारने दौड़े। भक्त भागे , वे पीछे दौड़े। काफी देर तक दौड़ चलती रही। क्रोधावेश ने चंडकौशिक को एकदम पागल बना दिया था। रास्ते के व्यवधान भी उन्हें सूझ न पड़े। एक कुएं में उनका पैर पड़ा और उनकी मृत्यु हो गई। उनका जन्म तीसरी बार उसी आश्रम में हुआ।
इस बार वे भयंकर विषधर सर्प की देह लेकर जन्मे। जो कोई उधर से निकलता उसी का पीछा करते और जो पकड़ में आ जाता उसे डस कर उसका प्राण हरण कर लेते। एक बार भगवान महावीर उस आश्रम में पधारे , तो चंडकौशिक ने उन्हें भी डस लिया। दंश से भगवान का पैर क्षत - विक्षत हो गया , फिर भी करुणा की उस प्रतिमूर्ति के चेहरे पर तनिक भी क्रोध न आया।
वे मुस्कराते रहे और उस क्षुद्र प्राणी को अपनी अनंत क्षमा का पात्र बनाए रहे। आश्रमवासी उस दुष्ट जीव को मारने आए , तो उन्होंने रोक दिया। भगवान की दिव्य सत्ता को पहचानकर सर्प योनि में बैठे चंडकौशिक ने पश्चाताप व्यक्त किया। उन्हें भगवान के उपदेश सुनने के बाद मुक्ति मिली। फिर मानव देह में जन्म लेकर उन्होंने क्रोध शमन हेतु तप किया और सिद्ध पुरुष बने।
धर्म और चमत्कार
बात उस समय की है जब गौतम बुद्ध राजगृह में थे। वहां एक दिन किसी व्यक्ति ने बहुमूल्य चंदन के एक रत्नजडि़त प्याले में शराब भरकर उसे ऊंचे खंभे पर टांग दिया और उसके नीचे लिख दिया- 'जो कोई साधक, सिद्ध या योगी इस शराब को बिना किसी सीढ़ी या अंकुश के चमत्कारिक यंत्र या यौगिक शक्ति से उतार लेगा, मैं उसकी समस्त इच्छाएं पूर्ण करूंगा।' कुछ दिनों के बाद उस स्थान पर कश्यप नामक एक बौद्ध भिक्षु पहुंचा और उसने किसी युक्ति से प्याला उतार लिया।
यह चमत्कार देख वहां भीड़ एकत्रित हो गई। कुछ देर बाद यह भीड़ बुद्ध के पास पहुंची। सभी एकत्रित लोगों ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा- 'आप निस्संदेह महान है क्योंकि आपके एक शिष्य ने मात्र एक हाथ उठाकर ऊंचे खंभे पर टंगा शराब का प्याला उतार दिया।' बुद्ध यह सुनते ही तत्काल उठे और विहार में कश्यप के पास पहुंचे। उन्होंने उस रत्नजडि़त प्याले को तोड़ दिया और शिष्यों को संबोधित कर बोले, 'मैं तुम लोगों को इन चमत्कारों के प्रदर्शन के लिए बार-बार मना करता हूं। यदि तुम्हें इस तरह के चमत्कार ही आकषिर्त करते हैं तो मैं तुम्हें धर्म की कोई जानकारी नहीं दूंगा। इस तरह के करतब दिखाकर लोगों को कोई भी चमत्कृत कर सकता है पर धर्म का यह उद्देश्य नहीं है।
धर्म का मकसद मनुष्य की सेवा है, उसे दुखों से मुक्त कराना है, उसका उत्थान करना है। इतने बड़े लक्ष्य को छोड़कर तुम सब छोटे लक्ष्य के पीछे भाग रहे हो।' सभी शिष्य बुद्ध का आशय समझ गए। उन्होंने चमत्कारों से दूर रहने का वचन दिया।
यह चमत्कार देख वहां भीड़ एकत्रित हो गई। कुछ देर बाद यह भीड़ बुद्ध के पास पहुंची। सभी एकत्रित लोगों ने उनकी प्रशंसा करते हुए कहा- 'आप निस्संदेह महान है क्योंकि आपके एक शिष्य ने मात्र एक हाथ उठाकर ऊंचे खंभे पर टंगा शराब का प्याला उतार दिया।' बुद्ध यह सुनते ही तत्काल उठे और विहार में कश्यप के पास पहुंचे। उन्होंने उस रत्नजडि़त प्याले को तोड़ दिया और शिष्यों को संबोधित कर बोले, 'मैं तुम लोगों को इन चमत्कारों के प्रदर्शन के लिए बार-बार मना करता हूं। यदि तुम्हें इस तरह के चमत्कार ही आकषिर्त करते हैं तो मैं तुम्हें धर्म की कोई जानकारी नहीं दूंगा। इस तरह के करतब दिखाकर लोगों को कोई भी चमत्कृत कर सकता है पर धर्म का यह उद्देश्य नहीं है।
धर्म का मकसद मनुष्य की सेवा है, उसे दुखों से मुक्त कराना है, उसका उत्थान करना है। इतने बड़े लक्ष्य को छोड़कर तुम सब छोटे लक्ष्य के पीछे भाग रहे हो।' सभी शिष्य बुद्ध का आशय समझ गए। उन्होंने चमत्कारों से दूर रहने का वचन दिया।
वास्तविक खुशी
नॉर्वे की महान लेखिका सिग्रिड अन्डसेट को 1928 का नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा हुई। उस जमाने में आज की तरह व्यापक संचार साधन नहीं थे, इसलिए उन तक खबर देर शाम को पहुंची। पहली बार किसी महिला साहित्यकार को यह पुरस्कार हासिल हुआ था, इसलिए यह समाचार और भी मायने रखता था। देश-विदेश के कई पत्रकार सिग्रिड से बात करने को आतुर थे।
आखिरकार एक समाचार एजेंसी से जुड़े दो पत्रकार ओस्लो स्थित सिग्रिड के आवास पर उनसे बात करने जा पहुंचे। उस समय रात के नौ बजे थे। पत्रकारों ने काफी देर तक दरवाजा खटखटाया। आखिर सिग्रिड घर से बाहर आईं। पत्रकारों को देखकर वह बोलीं, 'मैं आपके आने का कारण समझ सकती हूं, लेकिन मुझे माफ कीजिए, मैं अभी आपसे बात नहीं कर सकती।' यह सुनकर पत्रकारों को बेहद आश्चर्य हुआ। कहां तो उन्हें यह लग रहा था कि सिग्रिड साक्षात्कार देने के लिए उत्सुक होंगी, पर वह तो दो बात करने तक के लिए तैयार नहीं थीं।
पत्रकारों ने उनसे पूछा, 'लेकिन आप अभी बात क्यों नहीं करना चाहतीं?' सिग्रिड ने कहा, 'क्षमा करें, यह समय मेरे बच्चों के सोने का है। अभी मैं उनके साथ ही समय बिताना पसंद करती हूं। पुरस्कार तो मुझे मिल ही चुका है और इससे मैं काफी खुश हूं, लेकिन यह उस खुशी के सामने फीकी है जो बच्चों के लिए निर्धारित समय में मुझे उनके साथ रहने में मिलती है।' पत्रकार खुशी की उनकी इस परिभाषा और सहजता से बेहद प्रभावित हुए। सुबह सिग्रिड ने उन पत्रकारों को ही सबसे पहले साक्षात्कार दिया।
आखिरकार एक समाचार एजेंसी से जुड़े दो पत्रकार ओस्लो स्थित सिग्रिड के आवास पर उनसे बात करने जा पहुंचे। उस समय रात के नौ बजे थे। पत्रकारों ने काफी देर तक दरवाजा खटखटाया। आखिर सिग्रिड घर से बाहर आईं। पत्रकारों को देखकर वह बोलीं, 'मैं आपके आने का कारण समझ सकती हूं, लेकिन मुझे माफ कीजिए, मैं अभी आपसे बात नहीं कर सकती।' यह सुनकर पत्रकारों को बेहद आश्चर्य हुआ। कहां तो उन्हें यह लग रहा था कि सिग्रिड साक्षात्कार देने के लिए उत्सुक होंगी, पर वह तो दो बात करने तक के लिए तैयार नहीं थीं।
पत्रकारों ने उनसे पूछा, 'लेकिन आप अभी बात क्यों नहीं करना चाहतीं?' सिग्रिड ने कहा, 'क्षमा करें, यह समय मेरे बच्चों के सोने का है। अभी मैं उनके साथ ही समय बिताना पसंद करती हूं। पुरस्कार तो मुझे मिल ही चुका है और इससे मैं काफी खुश हूं, लेकिन यह उस खुशी के सामने फीकी है जो बच्चों के लिए निर्धारित समय में मुझे उनके साथ रहने में मिलती है।' पत्रकार खुशी की उनकी इस परिभाषा और सहजता से बेहद प्रभावित हुए। सुबह सिग्रिड ने उन पत्रकारों को ही सबसे पहले साक्षात्कार दिया।
चित्र का रहस्य
एक बार एक कलाकार ने अपने चित्रों की प्रदर्शनी लगाई। उसे देखने के लिए शहर के सभी वर्गों के सैकड़ों लोग पहुंचे। सब घूम-घूमकर तस्वीरें देख रहे थे। एक लड़की भी उस प्रदर्शनी को देखने आई। उसने देखा कि सब चित्रों के अंत में एक ऐसे मनुष्य का चित्र टंगा है, जिसके मुंह को बालों से ढक दिया गया है और पैरों पर पंख लगे हैं। चित्र के नीचे बड़े अक्षरों में लिखा था- 'अवसर'। चित्र कुछ भद्दा सा था, इसलिए लोग उस पर थोड़ी देर के लिए नजर डालते और आगे बढ़ जाते।
लड़की का ध्यान शुरू से ही इस चित्र की ओर था। जब वह उसके पास पहुंची तो उसने पास में बैठे कलाकार से पूछ ही लिया, 'श्रीमान! यह चित्र किसका है?' कलाकार ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, 'अवसर का।' लड़की की उत्सुकता बढ़ी। उसने पूछा, 'आपने इसका मुंह क्यों ढक दिया है?' इस बार कलाकार ने विस्तार से बताया, 'प्रदर्शनी की तरह अवसर हर मनुष्य के जीवन में आता है और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, मगर साधारण मनुष्य उसे पहचानते तक नहीं, इसलिए जो जहां थे वहीं पड़े रह जाते हैं, पर जो अवसर को पहचान लेता है, वही जीवन में कुछ खास काम कर जाता है।'
लड़की ने फिर पूछा, 'और इसके पैरों में पंखों का क्या रहस्य है?' कलाकार बोला, 'अवसर एक बार आकर चला जाता है तो फिर लौटकर कभी वापस नहीं आता।' लड़की ने इस बात का मर्म समझ लिया और उसी क्षण से वह अपनी उन्नति के लिए मेहनत करने में जुट गई।
लड़की का ध्यान शुरू से ही इस चित्र की ओर था। जब वह उसके पास पहुंची तो उसने पास में बैठे कलाकार से पूछ ही लिया, 'श्रीमान! यह चित्र किसका है?' कलाकार ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया, 'अवसर का।' लड़की की उत्सुकता बढ़ी। उसने पूछा, 'आपने इसका मुंह क्यों ढक दिया है?' इस बार कलाकार ने विस्तार से बताया, 'प्रदर्शनी की तरह अवसर हर मनुष्य के जीवन में आता है और उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, मगर साधारण मनुष्य उसे पहचानते तक नहीं, इसलिए जो जहां थे वहीं पड़े रह जाते हैं, पर जो अवसर को पहचान लेता है, वही जीवन में कुछ खास काम कर जाता है।'
लड़की ने फिर पूछा, 'और इसके पैरों में पंखों का क्या रहस्य है?' कलाकार बोला, 'अवसर एक बार आकर चला जाता है तो फिर लौटकर कभी वापस नहीं आता।' लड़की ने इस बात का मर्म समझ लिया और उसी क्षण से वह अपनी उन्नति के लिए मेहनत करने में जुट गई।
असली उत्तराधिकारी
एक व्यापारी था। वह चाहता था कि उसका पुत्र अशोक उच्च शिक्षा प्राप्त करे। उसने अपने पुत्र को पढ़ने के लिए दूर किसी शहर में भेजा। कुछ दिनों बाद व्यापारी की पत्नी की मृत्यु हो गई। पत्नी की मृत्यु का गहरा झटका व्यापारी को लगा। वह बीमार रहने लगा। उसे इस बात का आभास हो गया कि वह ज्यादा दिन जीवित नहीं रह पाएगा। उसने अपनी सारी संपत्ति अशोक के नाम कर दी और उसके पास समाचार भेज दिया। उसने संपत्ति संबंधी तात्कालिक व्यवस्था अपने शहर के एक पुजारी को सौंप दी। उसके कुछ ही दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई। इधर समाचार प्राप्त होते ही अशोक व्याकुल होकर घर चला। रास्ते में उसे एक अन्य बालक मिला जिसने सहानुभूति दिखाते हुए उसके उत्तराधिकारी होने तथा परिवार में अकेला होने का सारा भेद मालूम कर लिया और उसके साथ हो लिया।
दोनों में गाढ़ी मित्रता हो गई , किंतु घर पहुंचते ही अशोक के साथ वह भी रोने लगा और अपने को व्यापारी का उत्तराधिकारी कहने लगा। पुजारी चकराया। फिर उसने एक युक्ति निकाली। उसने व्यापारी का एक चित्र मंगवाकर , उसकी छाती की ओर इशारा करते हुए एक - एक तीर कमान उनके हाथ में देकर निशाना लगाने को कहा। यह भी कहा कि जो ठीक निशाना लगाएगा , वही उत्तराधिकारी माना जाएगा। अशोक के साथी ने तो तीर ठीक निशाने पर छोड़ दिया , परंतु अशोक उन्हें फेंक कर चित्र से लिपट गया। उसने पुजारी से कहा कि उसे अपने पिता की संपत्ति नहीं चाहिए। वे सारी संपत्ति उसके मित्र को दे दें। पुजारी मुस्कराया। उसने कहा , ' अशोक , मैं समझ गया कि तुम ही असली उत्तराधिकारी हो। तुम्हारे लिए पिता के प्रति स्नेह और श्रद्धा महत्वपूर्ण है , संपत्ति नहीं। यह लड़का ठग है। यह तुम्हारी संपत्ति पर कब्जा जमाना चाहता है। इस लालची को तो सजा मिलनी चाहिए। ' पुजारी ने अशोक को उसके पिता की सारी संपत्ति सौंप दी। और उस लड़के को बंदी बना लिया गया।
दोनों में गाढ़ी मित्रता हो गई , किंतु घर पहुंचते ही अशोक के साथ वह भी रोने लगा और अपने को व्यापारी का उत्तराधिकारी कहने लगा। पुजारी चकराया। फिर उसने एक युक्ति निकाली। उसने व्यापारी का एक चित्र मंगवाकर , उसकी छाती की ओर इशारा करते हुए एक - एक तीर कमान उनके हाथ में देकर निशाना लगाने को कहा। यह भी कहा कि जो ठीक निशाना लगाएगा , वही उत्तराधिकारी माना जाएगा। अशोक के साथी ने तो तीर ठीक निशाने पर छोड़ दिया , परंतु अशोक उन्हें फेंक कर चित्र से लिपट गया। उसने पुजारी से कहा कि उसे अपने पिता की संपत्ति नहीं चाहिए। वे सारी संपत्ति उसके मित्र को दे दें। पुजारी मुस्कराया। उसने कहा , ' अशोक , मैं समझ गया कि तुम ही असली उत्तराधिकारी हो। तुम्हारे लिए पिता के प्रति स्नेह और श्रद्धा महत्वपूर्ण है , संपत्ति नहीं। यह लड़का ठग है। यह तुम्हारी संपत्ति पर कब्जा जमाना चाहता है। इस लालची को तो सजा मिलनी चाहिए। ' पुजारी ने अशोक को उसके पिता की सारी संपत्ति सौंप दी। और उस लड़के को बंदी बना लिया गया।
गुरु की सीख
बहुत पुरानी कथा है। महर्षि रमण रोज की तरह नदी किनारे साधना में लीन थे। उनका एक शिष्य उनके पास आया, जिसने कुछ ही दिनों पहले उनका शिष्यत्व हासिल किया था। वह राज परिवार से आता था। वह चाहता था कि अपने गुरु के प्रति श्रद्धा व्यक्त करे। लेकिन इसका उचित तरीका उसे समझ में नहीं आ रहा था। तभी उसे कुछ ख्याल आया। वह दो बड़े-बड़े मोती ले आया। उसने महर्षि के चरणों पर दोनों मोती रख दिए। महर्षि रमण ने आंखें खोलीं और एक मोती उठाया, फिर उसे उलट-पुलट कर देखने लगे। अभी वे मोती को देख ही रहे थे कि वह उनके हाथों से फिसल कर नदी में जा गिरा। महर्षि रमण के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया। वे फिर से ध्यान में लीन हो गए। शिष्य एक किनारे पर चुपचाप खड़ा यह सब देख रहा था। उधर महर्षि साधना में लीन हुए इधर शिष्य नदी में कूद पड़ा। शिष्य ने देर तक नदी में कई गोते लगाए किंतु उसे मोती नहीं मिला। अंतत: वह निराश हो गया और उसने गुरुजी को ध्यान से हटाकर पूछा, 'आपने देखा था कि वह मोती कहां पर गिरा था। आप बताएं तो मैं उसे खोज कर वापस आपको लाकर दूंगा।' गुरुजी ने दूसरा मोती उठाया और नदी में फेंकते हुए बोले, 'वहां।'। शिष्य अवाक होकर उनका मुंह देखता रह गया। अब शिष्य की आंखें खुल चुकी थीं और उसे अपने मोतियों का मोल मालूम हो चुका था। वह समझ गया कि यह भी एक पाठ है जो उसने सीख लिया है।
संत की परीक्षा
एक संत का संपूर्ण जीवन परमात्मा के चरणों में समर्पित था। उनका विचार था कि ईश्वर के निरंतर चिंतन से जीवन अमृतमय हो उठता है। संसार की सभी वस्तुएं नश्वर और क्षणभंगुर हैं। इनसे अनुरक्ति हमें कष्ट पहुंचाएगी। एक दिन संत एकांत में बैठकर साधना कर रहे थे कि उनके एक मित्र आए। मित्र उस दिन सोचकर आए थे कि वह संत की परीक्षा लेंगे। उन्होंने कुछ इस तरह की भाव-भंगिमा बनाई जैसे किसी बात को लेकर बहुत चिंताग्रस्त हों।
यह देखकर संत ने पूछा, 'आप बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं। आखिर बात क्या है?' मित्र बोले, 'कुछ मत पूछो। हम लोगों के भाग्य में ऐसा बुरा दिन देखना लिखा था। क्या आप नहीं जानते कि आज रात को ही संपूर्ण संसार काल के गाल में समा जाएगा। प्रलय उपस्थित है।' मित्र की बात सुनते ही संत आनंद से झूम उठे। उन्होंने हंस कर कहा, 'मित्र यह तो आपने बहुत अच्छी बात बताई। इससे बढ़कर दूसरा सुखद समाचार और हो ही क्या सकता है। इस जीवन के विषय में कुछ भी तय करने वाले हम तो हैं नहीं। इसका रहना या नष्ट होना तो अदृश्य शक्ति के हाथ में है। फिर हम क्यों इसे लेकर चिंतित हों। मनुष्य इसलिए इतने कष्ट झेलता है क्योंकि वह अपने को ही नियंता मान बैठता है जबकि नियंता तो कोई और है। इसलिए जब तक जीवन है तब तक हम प्रसन्न होकर जीएं और सत्कर्म से दूसरों के जीवन को भी सुखी बनाने का प्रयास करें।' संत का मित्र अवाक उन्हें देखता रहा।
यह देखकर संत ने पूछा, 'आप बहुत चिंतित दिखाई दे रहे हैं। आखिर बात क्या है?' मित्र बोले, 'कुछ मत पूछो। हम लोगों के भाग्य में ऐसा बुरा दिन देखना लिखा था। क्या आप नहीं जानते कि आज रात को ही संपूर्ण संसार काल के गाल में समा जाएगा। प्रलय उपस्थित है।' मित्र की बात सुनते ही संत आनंद से झूम उठे। उन्होंने हंस कर कहा, 'मित्र यह तो आपने बहुत अच्छी बात बताई। इससे बढ़कर दूसरा सुखद समाचार और हो ही क्या सकता है। इस जीवन के विषय में कुछ भी तय करने वाले हम तो हैं नहीं। इसका रहना या नष्ट होना तो अदृश्य शक्ति के हाथ में है। फिर हम क्यों इसे लेकर चिंतित हों। मनुष्य इसलिए इतने कष्ट झेलता है क्योंकि वह अपने को ही नियंता मान बैठता है जबकि नियंता तो कोई और है। इसलिए जब तक जीवन है तब तक हम प्रसन्न होकर जीएं और सत्कर्म से दूसरों के जीवन को भी सुखी बनाने का प्रयास करें।' संत का मित्र अवाक उन्हें देखता रहा।
गांधीजी की आस्था
गांधीजी सुबह उठ कर कभी - कभी कुरान का पाठ किया करते थे। सूरा - ए - फ़ातेहा उनको जुबानी याद था। इसको याद रखने के कारण तो एक बार उनकी जान भी बच गई थी। हुआ यूं कि जब बंगाल में सांप्रदायिक दंगों की भड़कती आग को ठंडा करने के लिए गांधीजी सड़कों पर लोगों से शांति का आग्रह कर रहे थे तो नोआखाली के बाबू बाजार में एक कट्टर मुसलमान ने गांधीजी को ' काफि़र ' पुकार कर उन पर हमला किया। गांधीजी , जो वैसे ही काफी दुबले - पतले थे और आए दिन व्रत - उपवास आदि भी रखते रहे थे , जमीन पर गिर गए और गिरते हुए उन्होंने सूरा - ए - फ़ातेहा को शुद्ध उच्चारण के साथ पढ़ा जिसमें सभी के लिए शांति व सलामती का संदेश है।
एक हिंदू को कुरान की आयत पढ़ते देख वह मुसलमान तुरंत उनके पांवों में पड़ गया और तब से उनका शिष्य बन गया। मौलाना आजाद के एक लेख से जो दैनिक ' वकील ' में प्रकाशित हुआ था , एक वाकया मिलता है कि नोआखाली में ही दंगा पर उतारू मुसलमानों के एक गुट से गांधी ने कहा , ' तुम कैसे मुसलमान हो ? क्या तुमने हजरत मुहम्मद से कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की ? आज अगर हजरत मुहम्मद यहां आएं तो तुममें से बहुत से मुसलमानों को वे अपनाने से इनकार कर देंगे। तुम से तो अच्छा मुसलमान मैं हूं कि मारकाट नहीं कर रहा। वे अवश्य मुझे अपनाएंगे क्योंकि मैं उनके बताए रास्ते पर चल रहा हूं। '
जिस प्रकार से मौलाना आजाद की धर्म में अटूट आस्था थी , उसी प्रकार गांधीजी की भी थी। गांधीजी ने अपने पत्रों में मौलाना साहब को लिखा कि अपने छात्र जीवन से ही उन्हें गीता पाठ से आत्मिक व मानसिक शांति की प्राप्ति होती थी। हजरत मुहम्मद का चरित्र उन्हें बहुत पसंद था। अपने जीवन में भी वे उनका अनुसरण करते थे। गांधीजी हजरत मुहम्मद के चरित्र से कितना प्रभावित थे यह उनके लेखन से जाहिर है। गांधीजी ने अपने लेखन में हजरत मुहम्मद के विचारों को प्रमुखता से व्यक्त किया।
एक हिंदू को कुरान की आयत पढ़ते देख वह मुसलमान तुरंत उनके पांवों में पड़ गया और तब से उनका शिष्य बन गया। मौलाना आजाद के एक लेख से जो दैनिक ' वकील ' में प्रकाशित हुआ था , एक वाकया मिलता है कि नोआखाली में ही दंगा पर उतारू मुसलमानों के एक गुट से गांधी ने कहा , ' तुम कैसे मुसलमान हो ? क्या तुमने हजरत मुहम्मद से कोई शिक्षा ग्रहण नहीं की ? आज अगर हजरत मुहम्मद यहां आएं तो तुममें से बहुत से मुसलमानों को वे अपनाने से इनकार कर देंगे। तुम से तो अच्छा मुसलमान मैं हूं कि मारकाट नहीं कर रहा। वे अवश्य मुझे अपनाएंगे क्योंकि मैं उनके बताए रास्ते पर चल रहा हूं। '
जिस प्रकार से मौलाना आजाद की धर्म में अटूट आस्था थी , उसी प्रकार गांधीजी की भी थी। गांधीजी ने अपने पत्रों में मौलाना साहब को लिखा कि अपने छात्र जीवन से ही उन्हें गीता पाठ से आत्मिक व मानसिक शांति की प्राप्ति होती थी। हजरत मुहम्मद का चरित्र उन्हें बहुत पसंद था। अपने जीवन में भी वे उनका अनुसरण करते थे। गांधीजी हजरत मुहम्मद के चरित्र से कितना प्रभावित थे यह उनके लेखन से जाहिर है। गांधीजी ने अपने लेखन में हजरत मुहम्मद के विचारों को प्रमुखता से व्यक्त किया।
पश्चाताप की आग
स्टॉकहोम में पैदा हुए अल्फ्रेड नोबेल बचपन से ही अत्यंत जिज्ञासु व प्रतिभाशाली थे। उन्होंने डाइनामाइट नामक विस्फोटक का आविष्कार किया, जो चट्टानें तोड़ने और बंदूक आदि की गोलियां बनाने के काम आया। नोबेल ने इस विस्फोटक को बनाने में बहुत मेहनत की थी। अथक परिश्रम के बाद ही उन्होंने इसमें सफलता पाई थी। इस विस्फोटक के उत्पादन के लिए उन्होंने एक कारखाना लगाया था। अचानक एक दिन उस कारखाने में भयंकर विस्फोट हुआ और पूरा कारखाना उड़ गया।
इस दुर्घटना में नोबेल के भाई की मृत्यु हो गई। नोबेल को अपने भाई से गहरा लगाव था। वह उसके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। भाई की मृत्यु ने उन्हें बुरी तरह झकझोर दिया था। कई दिनों तक वह पागलों की सी स्थिति में बैठे रहते थे। धीरे-धीरे उन्होंने स्वयं को संभाला। एक दिन वह अपने एक मित्र से बोले, 'काश, मैं विध्वंस के साधन की जगह किसी रोग या महामारी से बचाने वाले जीवनरक्षक साधन का आविष्कार करता। ऐसे में मेरे भाई के साथ-साथ अनगिनत निर्दोष लोग असमय ही मौत का शिकार नहीं बनते।'
मित्र ने उन्हें समझाया और आगे बढ़ने को प्रेरित किया। किंतु वे कारखाने में हुई मौतों का जिम्मेदार स्वयं को समझने लगे थे। वे इसके लिए पश्चाताप की आग में जलने लगे। उन्होंने अपने जीवन में लगभग 90 लाख डॉलर की राशि अर्जित की थी। मृत्यु से पहले उन्होंने इस राशि से शांति के क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शुरू करने की घोषणा की। इस तरह विश्व के सबसे बड़े सम्मान नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत हुई।
इस दुर्घटना में नोबेल के भाई की मृत्यु हो गई। नोबेल को अपने भाई से गहरा लगाव था। वह उसके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे। भाई की मृत्यु ने उन्हें बुरी तरह झकझोर दिया था। कई दिनों तक वह पागलों की सी स्थिति में बैठे रहते थे। धीरे-धीरे उन्होंने स्वयं को संभाला। एक दिन वह अपने एक मित्र से बोले, 'काश, मैं विध्वंस के साधन की जगह किसी रोग या महामारी से बचाने वाले जीवनरक्षक साधन का आविष्कार करता। ऐसे में मेरे भाई के साथ-साथ अनगिनत निर्दोष लोग असमय ही मौत का शिकार नहीं बनते।'
मित्र ने उन्हें समझाया और आगे बढ़ने को प्रेरित किया। किंतु वे कारखाने में हुई मौतों का जिम्मेदार स्वयं को समझने लगे थे। वे इसके लिए पश्चाताप की आग में जलने लगे। उन्होंने अपने जीवन में लगभग 90 लाख डॉलर की राशि अर्जित की थी। मृत्यु से पहले उन्होंने इस राशि से शांति के क्षेत्र में कार्य करने वालों के लिए अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार शुरू करने की घोषणा की। इस तरह विश्व के सबसे बड़े सम्मान नोबेल पुरस्कारों की शुरुआत हुई।
इंसानों को कुचलने से नष्ट नहीं हो सकते विचार
आजादी के सिपाही भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर जिले के गांव खतकर कलां में हुआ था। सिख परिवार में जन्मे भगत सिंह ने छोटी उम्र से ही अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा दिया था। उन्होंने तमाम यूरोपीय क्रांतियों के बारे में पढ़ा और किशोरावस्था से ही साम्यवाद की ओर आकर्षित हो गए। अंग्रेजों का विरोध करने पर उन्हें जेल में डाल दिया गया। वहां भी उन्होंने भारतीय कैदियों के प्रति नाइंसाफी के खिलाफ आवाज उठाई और 64 दिन की भूख हड़ताल रखी। अंगेज पुलिस अफसर जॉन सान्डर्स के कत्ल के जुर्म में भगत सिंह को 23 मार्च 1931 को फांसी दे दी गई।
कोट्स
अगर बहरों के कानों में आवाज पहुंचानी है, तो आवाज का ऊंचा होना बहुत जरूरी है।
हमारे लिए समझौता करने का मतलब कभी भी समर्पण करना नहीं है, बल्कि एक कदम आगे बढ़कर फिर थोड़ा आराम फरमाने का है।
इंसानों को कुचलने से विचारों को नष्ट नहीं किया जा सकता।
क्रांति से हमारा मतलब अन्याय के खात्मे का दम रखने से है।
कठोर आलोचना और स्वतंत्र विचारधारा ही वे दो जरूरी खूबियां हैं, जो हर क्रांतिकारियों के जहन में होनी चाहिए।
हमारे पास ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जोकि शाम का थोड़ा-बहुत समय जनता को भाषण देने के लिए निकाल ही लेते हैं। वे सब बेकार हैं। हमें लेनिन जैसे जांबाज क्रांतिकारी से कुछ सीखना चाहिए, जिनकी क्रांति पाने की चाहत के अलावा कोई दूसरी महत्वाकांक्षा नहीं थी।
प्यार इंसान को नीचे नहीं झुकाता, बल्कि हमेशा उसके चरित्र को ऊपर उठाता है, इसलिए प्यार दो और प्यार लो।
अगर आप आक्रामकता से ताकत का इस्तेमाल करते हैं तो वह हिंसा कहलाती है और यह नैतिकता की दृष्टि से गलत कहलाएगी, मगर जब यही काम किसी न्यायसंगत सबब को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है तो उसका एक नैतिक औचित्य होता है।
आप सभी का मानना है कि इस धरती और इस सौरमंडल को चलाने वाला सर्वशक्तिमान कहीं मौजूद है। मैं जानना चाहता हूं कि आखिर वह कहां है? मैं उससे यह पूछना चाहता हूं कि आखिर उसने यह दुनिया क्यों बनाई, जोकि पूरी तरह से दुखों और परेशानियों से भरी है, जहां पर एक भी इंसान चैन की जिंदगी नहीं जी सकता?
समाज को भगवान के अस्तित्व पर वैसे ही सवाल उठाने चाहिए जैसे उसने मूर्ति पूजा और इसी तरह की सीमित अवधारणाओं पर उठाए थे। अगर ऐसा होगा तो इंसान कम-से-कम अपने पैरों पर खडे़ होने की कोशिश तो करेगा। यथार्थवादी हो जाने के बाद वह अपनी श्रद्धा व भक्ति को दरकिनार कर विरोधियों का वीरता के साथ मुकाबला कर सकेगा।
पुरानी मान्यताओं के सिद्धांतों की आलोचना करना हर उस शख्स के लिए जरूरी है, जो प्रगति के मकसद के लिए खड़ा हुआ है।
कोट्स
अगर बहरों के कानों में आवाज पहुंचानी है, तो आवाज का ऊंचा होना बहुत जरूरी है।
हमारे लिए समझौता करने का मतलब कभी भी समर्पण करना नहीं है, बल्कि एक कदम आगे बढ़कर फिर थोड़ा आराम फरमाने का है।
इंसानों को कुचलने से विचारों को नष्ट नहीं किया जा सकता।
क्रांति से हमारा मतलब अन्याय के खात्मे का दम रखने से है।
कठोर आलोचना और स्वतंत्र विचारधारा ही वे दो जरूरी खूबियां हैं, जो हर क्रांतिकारियों के जहन में होनी चाहिए।
हमारे पास ऐसे नेताओं की कमी नहीं है, जोकि शाम का थोड़ा-बहुत समय जनता को भाषण देने के लिए निकाल ही लेते हैं। वे सब बेकार हैं। हमें लेनिन जैसे जांबाज क्रांतिकारी से कुछ सीखना चाहिए, जिनकी क्रांति पाने की चाहत के अलावा कोई दूसरी महत्वाकांक्षा नहीं थी।
प्यार इंसान को नीचे नहीं झुकाता, बल्कि हमेशा उसके चरित्र को ऊपर उठाता है, इसलिए प्यार दो और प्यार लो।
अगर आप आक्रामकता से ताकत का इस्तेमाल करते हैं तो वह हिंसा कहलाती है और यह नैतिकता की दृष्टि से गलत कहलाएगी, मगर जब यही काम किसी न्यायसंगत सबब को बढ़ावा देने के लिए किया जाता है तो उसका एक नैतिक औचित्य होता है।
आप सभी का मानना है कि इस धरती और इस सौरमंडल को चलाने वाला सर्वशक्तिमान कहीं मौजूद है। मैं जानना चाहता हूं कि आखिर वह कहां है? मैं उससे यह पूछना चाहता हूं कि आखिर उसने यह दुनिया क्यों बनाई, जोकि पूरी तरह से दुखों और परेशानियों से भरी है, जहां पर एक भी इंसान चैन की जिंदगी नहीं जी सकता?
समाज को भगवान के अस्तित्व पर वैसे ही सवाल उठाने चाहिए जैसे उसने मूर्ति पूजा और इसी तरह की सीमित अवधारणाओं पर उठाए थे। अगर ऐसा होगा तो इंसान कम-से-कम अपने पैरों पर खडे़ होने की कोशिश तो करेगा। यथार्थवादी हो जाने के बाद वह अपनी श्रद्धा व भक्ति को दरकिनार कर विरोधियों का वीरता के साथ मुकाबला कर सकेगा।
पुरानी मान्यताओं के सिद्धांतों की आलोचना करना हर उस शख्स के लिए जरूरी है, जो प्रगति के मकसद के लिए खड़ा हुआ है।
बिना दुश्मन बनाए अपनी बात रखना ही कला है
महान वैज्ञानिक आइजैक न्यूटन का जन्म 25 दिसंबर 1642 को इंग्लैंड की लिंकनशर काउंटी के एक गांव में हुआ। उनके पिता एक किसान थे और उनकी मृत्यु के 3 महीने बाद न्यूटन का जन्म हुआ। उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज की और क्लासिकल मैकेनिज्म की नींव रखी। तमाम वैज्ञानिक आविष्कारों के बाद उन्होंने कई धार्मिक शोध भी लिखे। वह महान वैज्ञानिक होने के साथ-साथ ज्योतिषी और दार्शनिक भी थे। उन्हें सर की उपाधि से नवाजा गया। 31 मार्च 1727 को उनका देहांत हो गया।
मैं सौरमंडल के ग्रह-सितारों की रफ्तार का हिसाब लगा सकता हूं, लेकिन लोगों के पागलपन का कतई नहीं।
गलतियां कला में नहीं, कपटी कलाकारों में हैं।
अगर मैं अहम आविष्कार कर पाया हूं तो इसमें मेरी प्रतिभा से भी ज्यादा भूमिका सब्र से चीजों और घटनाओं को देखने की मेरी आदत की रही है।
बेलगाम कल्पना के बिना कोई भी महान आविष्कार मुमकिन नहीं होता।
मेरे हिसाब से मैं समुद्र किनारे खेल रहा महज एक बच्चा हूं, जिसे ज्ञान के विशाल समुद्र की अभी थाह लेनी है।
अगर मैं दूसरों से ज्यादा दूर तक चीजों को देख पाया हूं तो सिर्फ इसलिए कि मैं मजबूत कंधों पर खड़ा हूं।
आप जो काम करते हैं, उसका महत्व होना बहुत जरूरी है। फिजूल गिनती बढ़ाने के लिए काम करने का कोई फायदा नहीं है।
कोई दुश्मन बनाए बिना अपनी बात को रख देना ही चतुरता कहलाता है।
हर काम की उलटी और बराबर प्रतिक्रिया होती है
मेरे लिए साइंस की तरक्की से बड़ा कोई सम्मान या प्रतिष्ठा नहीं है।
हमने दीवारें बहुत खड़ी कर दीं, मगर पुल बनाने में कमी रह गई
मैं सौरमंडल के ग्रह-सितारों की रफ्तार का हिसाब लगा सकता हूं, लेकिन लोगों के पागलपन का कतई नहीं।
गलतियां कला में नहीं, कपटी कलाकारों में हैं।
अगर मैं अहम आविष्कार कर पाया हूं तो इसमें मेरी प्रतिभा से भी ज्यादा भूमिका सब्र से चीजों और घटनाओं को देखने की मेरी आदत की रही है।
बेलगाम कल्पना के बिना कोई भी महान आविष्कार मुमकिन नहीं होता।
मेरे हिसाब से मैं समुद्र किनारे खेल रहा महज एक बच्चा हूं, जिसे ज्ञान के विशाल समुद्र की अभी थाह लेनी है।
अगर मैं दूसरों से ज्यादा दूर तक चीजों को देख पाया हूं तो सिर्फ इसलिए कि मैं मजबूत कंधों पर खड़ा हूं।
आप जो काम करते हैं, उसका महत्व होना बहुत जरूरी है। फिजूल गिनती बढ़ाने के लिए काम करने का कोई फायदा नहीं है।
कोई दुश्मन बनाए बिना अपनी बात को रख देना ही चतुरता कहलाता है।
हर काम की उलटी और बराबर प्रतिक्रिया होती है
मेरे लिए साइंस की तरक्की से बड़ा कोई सम्मान या प्रतिष्ठा नहीं है।
हमने दीवारें बहुत खड़ी कर दीं, मगर पुल बनाने में कमी रह गई
सही काम के लिए हर वक्त होता है सही
मार्टिन लूथर किंग जूनियर का जन्म 15 जनवरी 1929 को अमेरिका के अटलांटा में हुआ। उन्होंेने रंगभेद और नस्लभेद के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी। वह गांधी जी से प्रेरित थे और उन्हीं के नक्शेकदम पर चलते हुए अहिंसक आंदोलन चलाया। उन्हें अमेरिका का गांधी या जूनियर गांधी भी कहा जाता है। 1964 में उन्हें शांति के लिए नोबल पुरस्कार से नवाजा गया। यह पुरस्कार पानेवाले वह सबसे कम उम्र के शख्स थे। 4 अप्रैल 1968 को गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई, लेकिन उन्हें आज भी मानवाधिकारों के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। उनके कुछ कोट्स निम्न हैं-
झूठ हमेशा जिंदा नहीं रह सकता।
आपकी पीठ पर कोई सवारी नहीं कर सकता, अगर वह झुकी हुई न हो।
अधिकार अगर देर से मिलता है, तो वह अधिकार नहीं मिलने जैसा ही है।
जो भी चीज हमें दिखती है, वह उस चीज की परछाई है, जो नजर नहीं आती है।
ऐसा इंसान, जो किसी चीज के लिए जान नहीं दे सकता, वह जीने लायक नहीं है।
हर तरक्की खतरनाक होती है और किसी भी समस्या का हल एक दूसरी समस्या से रूबरू करा देता है।
ऐसा राष्ट्र, जो हल्के विचारों वाले आदमियों को पालता-पोसता है, खुद अपनी आध्यात्मिक मौत की कहानी लिख रहा होता है।
अहिंसा के केंद्र में प्यार होता है।
अंधेरा अंधेरे को खत्म नहीं कर सकता, सिर्फ रोशनी अंधेरे को खत्म कर सकती है। नफरत नफरत को खत्म नहीं कर सकती, सिर्फ प्यार नफरत को खत्म कर सकता है।
हर इंसान को यह फैसला खुद करना होता है कि वह सृजन करनेवाले परोपकार को चुनता है या फिर तहस-नहस करनेवाले स्वार्थ को।
आपको पूरी सीढि़यां नजर नहीं आ रही हैं, तब भी आगे कदम बढ़ाना ही भरोसा कहलाता है।
दबानेवाला कभी भी अपनी मर्जी से आजादी नहीं देता, बल्कि वंचित की मांग पर ही आजादी मिलती है।
मेरा सपना है कि दासों के बेटे और उन्हें दास बनाने वालों के बेटे एक दिन एक साथ बैठें।
आखिर में हमें अपने दुश्मनों के बोल नहीं, बल्कि दोस्तों की चुप्पी याद रहती है।
कहीं भी हो रही नाइंसाफी हर जगह के इंसाफ के लिए खतरा है।
जिंदगी का सबसे जरूरी सवाल यह है कि आप दूसरों के लिए क्या करते हैं?
यह सही है कि कानून मुझसे प्यार करने लिए किसी को मजबूर नहीं कर सकता लेकिन वह किसी को मुझे नुकसान पहुंचाने से रोक सकता है, जो बहुत जरूरी है।
आंख के बदले आंख का नियम पूरी दुनिया को अंधा बना देगा। सही काम करने के लिए हर वक्त सही होता है।
झूठ हमेशा जिंदा नहीं रह सकता।
आपकी पीठ पर कोई सवारी नहीं कर सकता, अगर वह झुकी हुई न हो।
अधिकार अगर देर से मिलता है, तो वह अधिकार नहीं मिलने जैसा ही है।
जो भी चीज हमें दिखती है, वह उस चीज की परछाई है, जो नजर नहीं आती है।
ऐसा इंसान, जो किसी चीज के लिए जान नहीं दे सकता, वह जीने लायक नहीं है।
हर तरक्की खतरनाक होती है और किसी भी समस्या का हल एक दूसरी समस्या से रूबरू करा देता है।
ऐसा राष्ट्र, जो हल्के विचारों वाले आदमियों को पालता-पोसता है, खुद अपनी आध्यात्मिक मौत की कहानी लिख रहा होता है।
अहिंसा के केंद्र में प्यार होता है।
अंधेरा अंधेरे को खत्म नहीं कर सकता, सिर्फ रोशनी अंधेरे को खत्म कर सकती है। नफरत नफरत को खत्म नहीं कर सकती, सिर्फ प्यार नफरत को खत्म कर सकता है।
हर इंसान को यह फैसला खुद करना होता है कि वह सृजन करनेवाले परोपकार को चुनता है या फिर तहस-नहस करनेवाले स्वार्थ को।
आपको पूरी सीढि़यां नजर नहीं आ रही हैं, तब भी आगे कदम बढ़ाना ही भरोसा कहलाता है।
दबानेवाला कभी भी अपनी मर्जी से आजादी नहीं देता, बल्कि वंचित की मांग पर ही आजादी मिलती है।
मेरा सपना है कि दासों के बेटे और उन्हें दास बनाने वालों के बेटे एक दिन एक साथ बैठें।
आखिर में हमें अपने दुश्मनों के बोल नहीं, बल्कि दोस्तों की चुप्पी याद रहती है।
कहीं भी हो रही नाइंसाफी हर जगह के इंसाफ के लिए खतरा है।
जिंदगी का सबसे जरूरी सवाल यह है कि आप दूसरों के लिए क्या करते हैं?
यह सही है कि कानून मुझसे प्यार करने लिए किसी को मजबूर नहीं कर सकता लेकिन वह किसी को मुझे नुकसान पहुंचाने से रोक सकता है, जो बहुत जरूरी है।
आंख के बदले आंख का नियम पूरी दुनिया को अंधा बना देगा। सही काम करने के लिए हर वक्त सही होता है।
दुनिया में सबके सब अच्छे हों?
माकर्स ऑलेरियस
माकर्स ओलेरियस पुराने जमाने में रोम के सम्राट हुआ करते थे। उनका जन्म 26 अप्रैल 121 को हुआ था। वह बहुत बड़े विद्वान थे। उन्होंने सन 161 ई. से 181 ई. तक रोम पर शासन किया। उन्हें रोम के अच्छे पांच शासकों में से आखिरी माना जाता है। उनकी लिखी 'मेडिटेशंस' आज भी सरकारों को उनकी ड्यूटी की सीख देनेवाले ग्रंथ के समान है। 18 मार्च 180 को उनका देहांत हो गया।
जब मन में गुस्सा आए, तो इन बातों पर विचार करना चाहिए :
- जिस पर हमें गुस्सा आ रहा है, उसने जो किया, वह सही था या नहीं। अगर सही था, तो गुस्से का सवाल ही नहीं उठता। अगर सही नहीं था और उसने अनजाने में भी नहीं किया था तो भी यह तय है कि उसने मजबूर होकर ही ऐसा किया होगा, इसलिए उसे हम दोष नहीं दे सकते। हमें मालूम करना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया? जिन कारणों से वह गलती करने को मजबूर हुआ, वे कारण ही असर में दोषी हैं।
- क्या हमसे कभी कोई गलती नहीं हुई?
- हमें कैसे मालूम कि उसने गलती की? हरेक काम के कई कारण होते हैं। अच्छी तरह सोच-विचार बिना हम किसी काम को गलत कैसे मान लें?
- दूसरों के बुरे सलूक से हमें दुखी होने की जरूरत नहीं। असल में हमने उनके बारे में जो विचार बना लिए हैं, वे विचार ही हमें परेशान कर रहे हैं, इसलिए ऐसे विचारों को मन से निकालने की कोशिश करें।
- जिस घटना को हम दुखदायी समझ रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा नुकसान हमें अपने गुस्से से पहुंच रहा है।
- अगर कोई गलत राह पर चल रहा है, तो उसे प्यार से समझाना चाहिए। समझाते वक्त उसकी गलतियों पर जोर नहीं देना चाहिए। न उसका मजाक उड़ाना चाहिए और न ही भला-बुरा कहना चाहिए। समझाते वक्त ऐसा न लगे कि हम उपदेश दे रहे हैं।
- कोई हमारे साथ बुरा करे, बुरा सलूक करे, तो उस पर हमें नाराज होने की जरूरत नहीं। हमें समझना चाहिए यह कैसे मुमकिन है कि दुनिया में सबके सब अच्छे हों। जब ऐसा मुमकिन ही नहीं तो फिर हम क्यों एक नामुमकिन चीज की इच्छा करके दुखी हो रहे हैं?
- हमारे अच्छे काम के बदले अगर कोई हमें तकलीफ दे या हमारी की गई मदद को भूल जाए तो हमें अपने मन को टटोलना चाहिए। उसकी मदद करके हमने तो बस अपना फर्ज ही पूरा किया है। उस पर कोई अहसान नहीं किया।
माकर्स ओलेरियस पुराने जमाने में रोम के सम्राट हुआ करते थे। उनका जन्म 26 अप्रैल 121 को हुआ था। वह बहुत बड़े विद्वान थे। उन्होंने सन 161 ई. से 181 ई. तक रोम पर शासन किया। उन्हें रोम के अच्छे पांच शासकों में से आखिरी माना जाता है। उनकी लिखी 'मेडिटेशंस' आज भी सरकारों को उनकी ड्यूटी की सीख देनेवाले ग्रंथ के समान है। 18 मार्च 180 को उनका देहांत हो गया।
जब मन में गुस्सा आए, तो इन बातों पर विचार करना चाहिए :
- जिस पर हमें गुस्सा आ रहा है, उसने जो किया, वह सही था या नहीं। अगर सही था, तो गुस्से का सवाल ही नहीं उठता। अगर सही नहीं था और उसने अनजाने में भी नहीं किया था तो भी यह तय है कि उसने मजबूर होकर ही ऐसा किया होगा, इसलिए उसे हम दोष नहीं दे सकते। हमें मालूम करना चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया? जिन कारणों से वह गलती करने को मजबूर हुआ, वे कारण ही असर में दोषी हैं।
- क्या हमसे कभी कोई गलती नहीं हुई?
- हमें कैसे मालूम कि उसने गलती की? हरेक काम के कई कारण होते हैं। अच्छी तरह सोच-विचार बिना हम किसी काम को गलत कैसे मान लें?
- दूसरों के बुरे सलूक से हमें दुखी होने की जरूरत नहीं। असल में हमने उनके बारे में जो विचार बना लिए हैं, वे विचार ही हमें परेशान कर रहे हैं, इसलिए ऐसे विचारों को मन से निकालने की कोशिश करें।
- जिस घटना को हम दुखदायी समझ रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा नुकसान हमें अपने गुस्से से पहुंच रहा है।
- अगर कोई गलत राह पर चल रहा है, तो उसे प्यार से समझाना चाहिए। समझाते वक्त उसकी गलतियों पर जोर नहीं देना चाहिए। न उसका मजाक उड़ाना चाहिए और न ही भला-बुरा कहना चाहिए। समझाते वक्त ऐसा न लगे कि हम उपदेश दे रहे हैं।
- कोई हमारे साथ बुरा करे, बुरा सलूक करे, तो उस पर हमें नाराज होने की जरूरत नहीं। हमें समझना चाहिए यह कैसे मुमकिन है कि दुनिया में सबके सब अच्छे हों। जब ऐसा मुमकिन ही नहीं तो फिर हम क्यों एक नामुमकिन चीज की इच्छा करके दुखी हो रहे हैं?
- हमारे अच्छे काम के बदले अगर कोई हमें तकलीफ दे या हमारी की गई मदद को भूल जाए तो हमें अपने मन को टटोलना चाहिए। उसकी मदद करके हमने तो बस अपना फर्ज ही पूरा किया है। उस पर कोई अहसान नहीं किया।
झूठी दौलत मौत से नहीं बचा सकती
गुरु गोबिंद सिंह सिखों के दसवें गुरु थे। वह पटना में गुरु तेगबहादुर और माता गुजरी के घर जन्मे। उनका जन्म उस वक्त हुआ था जब उनके पिता असम में अपनी शिक्षा का प्रचार करने के लिए भ्रमण कर रहे थे। उन्होंने अपने पहले पांच साल पटना में ही बिताए। वहां बच्चों के साथ वे युद्धकला के खेल खेला करते थे। बचपन में वहां लोग उन्हें बाला प्रीतम भी कहते थे। अपने पिता गुरु तेगबहादुर के बाद नौ साल की छोटी-सी उम्र में उन्हें सिख पंथ का गुरु बनाया गया। वह न सिर्फ सिख पंथ के सच्चे नेता थे बल्कि एक मंझे हुए योद्धा, कवि और संत भी थे। वह उच्च शिक्षित, घुड़सवारी और युद्धकला में भी निपुण थे। उनमें इन सभी गुणों के कारण सिख समाज में उन्हें एक पूर्ण पुरुष का दर्जा प्राप्त है। पांच जनवरी को इनका जन्मदिन मनाया जाता है।
गुरु गोबिंद सिंह के कुछ कथन:
परमात्मा विचारों से भी परे परम रहस्यमय है। वह पूर्ण निर्भय है, उसे जीता नहीं जा सकता।
झूठी दौलत को क्या इकट्ठा करना वह तुम्हें मौत से तो नहीं बचा सकती।
पत्नी, पुत्र, साथी और मित्र कोई तुम्हारा गवाह बनने वाला नहीं है।
ईश्वर जात-पात से एकदम परे है।
परमात्मा ही सभी सूर्यों का सूर्य है और चंद्रमाओं का चंद्रमा है।
परमात्मा ही सभी गीतों का गीत और सभी संगीतों का संगीत है।
ईश्वर सभी जीवों का मूल है और सभी का संरक्षणकर्ता भी है।
ब्रह्मा, विष्णु, कृष्ण और इंद के लाखों अवतार हैं। परंतु भगवान का गुणगान किए बिना कोई भी उसके दरबार में मंजूर नहीं होता।
अगर मन में से स्वार्थ हटा दिया जाए तो अंतहीन शांति मिलती है।
सभी तरह के सुख और शांति उन्हीं को मिलती है जो परमात्मा के नाम में ध्यान लगाते हैं।
गुरु के बिना भगवान को ढूंढ पाना मुश्किल है।
भगवान के नाम के अलावा कोई और आपका सच्चा दोस्त नहीं हो सकता।
अंदर से झूठ का पर्दा हटा दो तभी मन में सच का निवास हो पाएगा।
गुरु गोबिंद सिंह के कुछ कथन:
परमात्मा विचारों से भी परे परम रहस्यमय है। वह पूर्ण निर्भय है, उसे जीता नहीं जा सकता।
झूठी दौलत को क्या इकट्ठा करना वह तुम्हें मौत से तो नहीं बचा सकती।
पत्नी, पुत्र, साथी और मित्र कोई तुम्हारा गवाह बनने वाला नहीं है।
ईश्वर जात-पात से एकदम परे है।
परमात्मा ही सभी सूर्यों का सूर्य है और चंद्रमाओं का चंद्रमा है।
परमात्मा ही सभी गीतों का गीत और सभी संगीतों का संगीत है।
ईश्वर सभी जीवों का मूल है और सभी का संरक्षणकर्ता भी है।
ब्रह्मा, विष्णु, कृष्ण और इंद के लाखों अवतार हैं। परंतु भगवान का गुणगान किए बिना कोई भी उसके दरबार में मंजूर नहीं होता।
अगर मन में से स्वार्थ हटा दिया जाए तो अंतहीन शांति मिलती है।
सभी तरह के सुख और शांति उन्हीं को मिलती है जो परमात्मा के नाम में ध्यान लगाते हैं।
गुरु के बिना भगवान को ढूंढ पाना मुश्किल है।
भगवान के नाम के अलावा कोई और आपका सच्चा दोस्त नहीं हो सकता।
अंदर से झूठ का पर्दा हटा दो तभी मन में सच का निवास हो पाएगा।
बेहद जरूरी होने पर ही कहें सख्त बातें
ऐसी मान्यता है कि संत और कवि तिरुवल्लुवर का जन्म चेन्नै के पास माइलापुर में हुआ था। उनका वक्त ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के आसपास का माना जाता है। उन्होंने अपने जीवन में जो भी महत्वपूर्ण कहा, वह सब कुछ महान तमिल ग्रंथ तिरुक्कुरल में संकलित है। उनकी पत्नी वासुकि एक धामिर्क और आदर्श महिला थीं। तिरुवल्लुवर का कहना था कि साधु-संत बनने के लिए संन्यास लेना जरूरी नहीं है। गृहस्थ जीवन में रहकर भी इंसान पवित्र और धार्मिक जीवन जी सकता है।
संत तिरुवल्लुवर द्वारा कही गई बातों में से कुछ इस प्रकार हैं:
- मौत एक नींद है और जीवन? जीवन उसके बाद जागने की स्थिति है।
- जो शख्स दूसरे की पत्नी की इच्छा करता है, वह चार चीजों से कभी नहीं बच सकता। ये हैं - नफरत, पाप, डर और शर्मिंदगी।
- अगर कोई आपके साथ बुरा करता है तो उसे दंड जरूर दें। कैसे? बदले में उसके साथ अच्छा करके उसे शर्मिंदा करें और उसके द्वारा की गई बुराई और खुद की अच्छाई दोनों को भूल जाएं।
- जो लोग 'मैं' और 'मेरा' से बच जाते हैं, उनके लिए जमीं पर ही स्वर्ग बन जाता है।
- अगर कोई अपना गृहस्थ जीवन उस तरह जीता है, जैसे उसे जीना चाहिए, तो इंसानों में उसे भगवान माना जा सकता है।
- पत्नी में भले ही सब कुछ हो, पर पारिवारिक गुण न हों, तो जीवन बेकार है।
- जिसकी पत्नी वफादार न हो, वह शख्स विरोधियों पर कभी विजय नहीं पा सकता।
- कठोर सिर्फ अपने लिए जीते हैं, पर दयालु दूसरों के लिए जीते हैं।
- जो लोग परमात्मा का गुणगान करते हैं, वे अच्छे और बुरे दोनों कर्मों के दोषों से बच जाते हैं।
- बुद्धिमान वे लोग हैं, जो बेहद जरूरी होने पर ही कठोर वचन बोलते हैं।
- अगर कोई तुम्हारे सामने भी तुम्हारा अपमान कर दे तो भी उसकी पीठ पीछे निंदा मत करो।
- जो दूसरों के साथ मिल-बांटकर खाता है, भूख नाम की बीमारी उसके पास भी नहीं फटक सकती।
- इकतरफा प्यार कष्टदायक होता है। प्रेम खुशी तभी देता है, जब वह दोनों तरफ से बराबर हो।
संत तिरुवल्लुवर द्वारा कही गई बातों में से कुछ इस प्रकार हैं:
- मौत एक नींद है और जीवन? जीवन उसके बाद जागने की स्थिति है।
- जो शख्स दूसरे की पत्नी की इच्छा करता है, वह चार चीजों से कभी नहीं बच सकता। ये हैं - नफरत, पाप, डर और शर्मिंदगी।
- अगर कोई आपके साथ बुरा करता है तो उसे दंड जरूर दें। कैसे? बदले में उसके साथ अच्छा करके उसे शर्मिंदा करें और उसके द्वारा की गई बुराई और खुद की अच्छाई दोनों को भूल जाएं।
- जो लोग 'मैं' और 'मेरा' से बच जाते हैं, उनके लिए जमीं पर ही स्वर्ग बन जाता है।
- अगर कोई अपना गृहस्थ जीवन उस तरह जीता है, जैसे उसे जीना चाहिए, तो इंसानों में उसे भगवान माना जा सकता है।
- पत्नी में भले ही सब कुछ हो, पर पारिवारिक गुण न हों, तो जीवन बेकार है।
- जिसकी पत्नी वफादार न हो, वह शख्स विरोधियों पर कभी विजय नहीं पा सकता।
- कठोर सिर्फ अपने लिए जीते हैं, पर दयालु दूसरों के लिए जीते हैं।
- जो लोग परमात्मा का गुणगान करते हैं, वे अच्छे और बुरे दोनों कर्मों के दोषों से बच जाते हैं।
- बुद्धिमान वे लोग हैं, जो बेहद जरूरी होने पर ही कठोर वचन बोलते हैं।
- अगर कोई तुम्हारे सामने भी तुम्हारा अपमान कर दे तो भी उसकी पीठ पीछे निंदा मत करो।
- जो दूसरों के साथ मिल-बांटकर खाता है, भूख नाम की बीमारी उसके पास भी नहीं फटक सकती।
- इकतरफा प्यार कष्टदायक होता है। प्रेम खुशी तभी देता है, जब वह दोनों तरफ से बराबर हो।
जिंदगी में सबसे बड़ा रिफ्रेशमेंट प्रेम है
स्पेन के जाने-माने पेंटर और शिल्पकार पाब्लो पिकासो का जन्म 25 अक्टूबर, 1888 को हुआ था। उन्होंने अपना शुरुआती जीवन फ्रांस में गुजारा। स्पेन के गृह युद्ध के दौरान की गई बमबारी पर बनाई गई उनकी पेंटिंग की काफी सराहना की जाती है। उन्हें क्यूबिजम आंदोलन के लिए भी जाना जाता है। इस आंदोलन ने यूरोपीय शिल्प के क्षेत्र में क्रांति ला दी थी। शुरुआती वक्त में उन्होंने ज्यादातर रियलिस्टिक पेंटिंग्स पर काम किया, लेकिन तमाम दूसरे विचारों के संपर्क में आने के बाद उनके काम में वैरायटी नजर आने लगी। 8 अप्रैल, 1973 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया।
- सभी बच्चे आर्टिस्ट होते हैं। असली चुनौती यह है कि बड़े होने के बाद भी वे आटिर्स्ट बने रहें।
- हम सभी जानते हैं कि आर्ट सचाई नहीं है। आर्ट एक ऐसा झूठ है, जो हमें सच का अनुभव कराता है।
- खराब आर्टिस्ट नकल मारते हैं और अच्छे आर्टिस्ट चोरी करते हैं।
- रचना करने के लिए जो भी काम किया जाता है, शुरू में वह विनाश का काम ही होता है।
- आप जो भी कल्पना कर सकते हैं, वह सब असलियत है।
- मैं हमेशा वह काम करता हूं, जो मुझे करना नहीं आता। इससे मैं उस काम को करना सीख जाता हूं।
- राफेल के जैसा पेंट करने के लिए मुझे चार साल का वक्त लगा, लेकिन बच्चे की तरह पेंटिंग करने में मुझे पूरी जिंदगी लगानी होगी।
- उम्र बढ़ने के साथ इंसान बूढ़ा नहीं होता, बल्कि वह ज्यादा परिपक्व हो जाता है।
- हर पॉजिटिव चीज की एक निगेटिव साइड भी होती है। आइंस्टीन की काबलियत हिरोशिमा जैसी दुर्घटना की एक वजह बनी।
- जिंदगी में सबसे बड़ा रिफ्रेशमेंट प्रेम होता है।
- सभी बच्चे आर्टिस्ट होते हैं। असली चुनौती यह है कि बड़े होने के बाद भी वे आटिर्स्ट बने रहें।
- हम सभी जानते हैं कि आर्ट सचाई नहीं है। आर्ट एक ऐसा झूठ है, जो हमें सच का अनुभव कराता है।
- खराब आर्टिस्ट नकल मारते हैं और अच्छे आर्टिस्ट चोरी करते हैं।
- रचना करने के लिए जो भी काम किया जाता है, शुरू में वह विनाश का काम ही होता है।
- आप जो भी कल्पना कर सकते हैं, वह सब असलियत है।
- मैं हमेशा वह काम करता हूं, जो मुझे करना नहीं आता। इससे मैं उस काम को करना सीख जाता हूं।
- राफेल के जैसा पेंट करने के लिए मुझे चार साल का वक्त लगा, लेकिन बच्चे की तरह पेंटिंग करने में मुझे पूरी जिंदगी लगानी होगी।
- उम्र बढ़ने के साथ इंसान बूढ़ा नहीं होता, बल्कि वह ज्यादा परिपक्व हो जाता है।
- हर पॉजिटिव चीज की एक निगेटिव साइड भी होती है। आइंस्टीन की काबलियत हिरोशिमा जैसी दुर्घटना की एक वजह बनी।
- जिंदगी में सबसे बड़ा रिफ्रेशमेंट प्रेम होता है।
कपड़े बेशक गंदे हों, आत्मा साफ होनी चाहिए
वही करो, जो सही हो। यह कुछ लोगों को अचंभे में डाल देगा तो कुछ को संतुष्ट कर देगा।
कोई भी इंसान उससे ज्यादा कभी ईमानदार नहीं हो सकता, जब वह कहे कि मैं झूठा हूं।
अपनी रजामंदी के बिना कोई भी शख्स आराम या आनंद की स्थिति में नहीं होता है।
कोई इंसान अपनी बातचीत में जिन विशेषणों का इस्तेमाल करता है, उन्हीं से उसके चरित्र की पहचान होती है।
आपके कपड़े बेशक गंदे हों, लेकिन आत्मा साफ होनी चाहिए।
हेल्थ की किताब पढ़ते हुए सावधानी बरतें। गलत छपाई की वजह से आपकी जान भी जा सकती है।
जो इंसान पढ़ता नहीं है और जो पढ़ नहीं सकता (अनपढ़), उसमें कोई फर्क नहीं है।
एक गोल आदमी से एक रात में चौकोर डिब्बे में घुसाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इसके लिए उसे अपनी शेप बदलने का वक्त देना होगा।
उम्र मसले के ऊपर सोच का मामला है। अगर आप सोचेंगे नहीं तो यह कोई मसला ही नहीं है।
गुस्सा एक ऐसा तेजाब है, जो जिस बर्तन में डाला जाता है, उससे कहीं ज्यादा नुकसान उस बर्तन को पहुंचाता है, जिसमें वह होता है।
मुंह खोलकर हर शक को मिटा देने से चुप रहकर बेवकूफ समझे जाना कहीं बेहतर है।
हर चीज की अपनी सीमा होती है। लोहे को सोना नहीं बना सकते।
कोई भी इंसान उससे ज्यादा कभी ईमानदार नहीं हो सकता, जब वह कहे कि मैं झूठा हूं।
अपनी रजामंदी के बिना कोई भी शख्स आराम या आनंद की स्थिति में नहीं होता है।
कोई इंसान अपनी बातचीत में जिन विशेषणों का इस्तेमाल करता है, उन्हीं से उसके चरित्र की पहचान होती है।
आपके कपड़े बेशक गंदे हों, लेकिन आत्मा साफ होनी चाहिए।
हेल्थ की किताब पढ़ते हुए सावधानी बरतें। गलत छपाई की वजह से आपकी जान भी जा सकती है।
जो इंसान पढ़ता नहीं है और जो पढ़ नहीं सकता (अनपढ़), उसमें कोई फर्क नहीं है।
एक गोल आदमी से एक रात में चौकोर डिब्बे में घुसाने की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। इसके लिए उसे अपनी शेप बदलने का वक्त देना होगा।
उम्र मसले के ऊपर सोच का मामला है। अगर आप सोचेंगे नहीं तो यह कोई मसला ही नहीं है।
गुस्सा एक ऐसा तेजाब है, जो जिस बर्तन में डाला जाता है, उससे कहीं ज्यादा नुकसान उस बर्तन को पहुंचाता है, जिसमें वह होता है।
मुंह खोलकर हर शक को मिटा देने से चुप रहकर बेवकूफ समझे जाना कहीं बेहतर है।
हर चीज की अपनी सीमा होती है। लोहे को सोना नहीं बना सकते।
जीतता वही है, जो बदलाव को मंजूर कर लेता है
मशहूर वैज्ञानिक चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड में श्रुसबरी नामक जगह में हुआ। उनके पिता मशहूर डॉक्टर और फाइनैंसर थे। पिता ने उन्हें यूनिवर्सिटी ऑफ इडेनबर्ग में मेडिकल में दाखिला दिलाया लेकिन उनका मन उसमें नहीं लगा। बाद में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज में नैचरल साइंस की पढ़ाई की। जनवरी 1839 में उन्होंने एमा से शादी की। डार्विन ने 'थ्योरी ऑफ इवॉल्यूशन' दी, जिसके मुताबिक सभी जीवों का वंश एक ही रहा है और वक्त के साथ बेहतर ही जिंदा रह पाता है। 1859 में उन्होंने 'द ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज' लिखी। 19 अप्रैल 1882 को उनका देहांत हो गया।
- जो शख्स एक घंटा बर्बाद कर सकता है, समझो उसे वक्त की कद नहीं है।
- किसी इंसान की दोस्ती उसकी दौलत का सबसे अहम हिस्सा होती है।
- एक नैतिक इंसान वह है, जिसमें अपने बीते कल के कामों और मकसदों पर विचार करने और उनमें से कुछ को सही और कुछ को गलत स्वीकार करने की काबिलियत है।
- सबसे मजबूत या सबसे बुद्धिमान नहीं, वह प्रजाति जिंदा रहती है, जो बदलाव को सबसे आसानी से स्वीकार कर लेती है।
- इंसान गुजारा करने की अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ता है।
- किसी भी गलती को मिटा देना उतना ही अच्छा है, जितना कि किसी की सेवा करना, बल्कि कई बार उससे भी अच्छा होता है क्योंकि इससे नया सच या फैक्ट्स सामने आते हैं।
- गरीबों की यह स्थिति कुदरत के नियमों के कारण नहीं है, बल्कि यह हमारी ही वजह से है। यह हमारी गलती है।
- गलत फैक्ट्स साइंस की तरक्की के लिए खासे नुकसानदेह हैं, खासकर अगर वे लंबे वक्त तक चलते हैं।
- इतिहास में देखें तो जिन्होंने खुद में सुधार किए और अडजस्टमेंट किया, जीत उन्हीं की हुई।
- मॉरल कल्चर में सबसे ऊंची स्थिति वह होती है, जब हम अपने विचारों को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं।
- जानवर, जिन्हें हमने अपना गुलाम बनाया है, उन्हें हम अपने बराबर नहीं मानना चाहते।
- एक वैज्ञानिक से किसी चाहत या प्यार की उम्मीद नहीं की जाती। उसे बस पत्थर का दिल समझा जाता है।
- जो शख्स एक घंटा बर्बाद कर सकता है, समझो उसे वक्त की कद नहीं है।
- किसी इंसान की दोस्ती उसकी दौलत का सबसे अहम हिस्सा होती है।
- एक नैतिक इंसान वह है, जिसमें अपने बीते कल के कामों और मकसदों पर विचार करने और उनमें से कुछ को सही और कुछ को गलत स्वीकार करने की काबिलियत है।
- सबसे मजबूत या सबसे बुद्धिमान नहीं, वह प्रजाति जिंदा रहती है, जो बदलाव को सबसे आसानी से स्वीकार कर लेती है।
- इंसान गुजारा करने की अपनी क्षमता से कहीं ज्यादा तेजी से बढ़ता है।
- किसी भी गलती को मिटा देना उतना ही अच्छा है, जितना कि किसी की सेवा करना, बल्कि कई बार उससे भी अच्छा होता है क्योंकि इससे नया सच या फैक्ट्स सामने आते हैं।
- गरीबों की यह स्थिति कुदरत के नियमों के कारण नहीं है, बल्कि यह हमारी ही वजह से है। यह हमारी गलती है।
- गलत फैक्ट्स साइंस की तरक्की के लिए खासे नुकसानदेह हैं, खासकर अगर वे लंबे वक्त तक चलते हैं।
- इतिहास में देखें तो जिन्होंने खुद में सुधार किए और अडजस्टमेंट किया, जीत उन्हीं की हुई।
- मॉरल कल्चर में सबसे ऊंची स्थिति वह होती है, जब हम अपने विचारों को कंट्रोल करने की कोशिश करते हैं।
- जानवर, जिन्हें हमने अपना गुलाम बनाया है, उन्हें हम अपने बराबर नहीं मानना चाहते।
- एक वैज्ञानिक से किसी चाहत या प्यार की उम्मीद नहीं की जाती। उसे बस पत्थर का दिल समझा जाता है।
जब पास होती है तो छोटी लगती है खुशी
रूस के महान साहित्यकार और क्रांतिकारी मैक्सिम गोर्की का जन्म 28 मार्च 1868 को हुआ। सिर्फ सात साल की उम्र में वह अनाथ हो गए। असमर्थ युग के समर्थ लेखक के रूप में मैक्सिम गोर्की को जितनी तारीफ मिली, उतनी शायद ही किसी और लेखक को मिली होगी। वह मार्क्सवाद से बेहद प्रभावित थे। उन्होंने कई बेहतरीन रचनाएं कीं। 1899-1900 में उनकी मुलाकात चेखव और टॉलस्टॉय से हुई और वह क्रांतिकारी आंदोलन में भाग लेने लगे। 1901 में वह गिरफ्तार हुए और उन्हें कालापानी की सजा मिली। 18 जून 1936 को उनका देहांत हो गया।
- राजनीति सामाजिक दुश्मनी, साजिशें, शर्मनाक झूठ, बीमार आकांक्षाएं और दूसरों के लिए असम्मान पैदा करती है।
- दुश्मन अगर सरेंडर न करे, तो उसे खत्म कर देना चाहिए।
- खुशी जब हाथ में होती है तो छोटी लगती है। इसे एक बार छोड़कर देखो और एक पल में पता लग जाएगा कि यह कितनी बड़ी और खास है।
- एक दुखी आदमी दूसरे दुखी आदमी की तलाश में रहता है। उसके बाद ही वह खुश होता है।
- जब काम में मजा आता है तो जिंदगी खुशियों से भरी होती है। जब काम एक ड्यूटी भर होता है तो जिंदगी गुलामी जैसी लगती है।
- एक अच्छा आदमी बेवकूफ हो सकता है लेकिन एक बुरे आदमी के पास दिमाग होगा ही।
- धरती पर भीख देनेवाले से ज्यादा घिनौना और खराब कोई नहीं हो सकता और भीख लेनेवाले से दयनीय कोई नहीं हो सकता।
- किसी को भी गिनती इसलिए आनी चाहिए ताकि पचास की उम्र में वह बीस साल की लड़की से शादी न कर ले।
- इंग्लिश लिटरेचर में सबसे खूबसूरत शब्द 'नॉट गिल्टी' यानी 'दोषी नहीं' है। इसका मतलब है कि किसी को दोषी ठहराना अच्छा नहीं है।
- हमारी नजर में हर इंसान अहम है क्योंकि वह जानता है कि वह क्या है, वह क्या कर सकता है और वह क्यों इस दुनिया में आया?
- जब हर चीज आसान होती है, कोई भी सरलता से मूर्ख बन जाता है।
- सिर्फ महिलाएं भविष्य के बारे में सोच पाती हैं क्योंकि वे अपने बच्चों के रूप में भविष्य को जन्म देती हैं।
- बीते कल की सवारी में सवार होकर आप कहीं नहीं जा पाएंगे।
- राजनीति सामाजिक दुश्मनी, साजिशें, शर्मनाक झूठ, बीमार आकांक्षाएं और दूसरों के लिए असम्मान पैदा करती है।
- दुश्मन अगर सरेंडर न करे, तो उसे खत्म कर देना चाहिए।
- खुशी जब हाथ में होती है तो छोटी लगती है। इसे एक बार छोड़कर देखो और एक पल में पता लग जाएगा कि यह कितनी बड़ी और खास है।
- एक दुखी आदमी दूसरे दुखी आदमी की तलाश में रहता है। उसके बाद ही वह खुश होता है।
- जब काम में मजा आता है तो जिंदगी खुशियों से भरी होती है। जब काम एक ड्यूटी भर होता है तो जिंदगी गुलामी जैसी लगती है।
- एक अच्छा आदमी बेवकूफ हो सकता है लेकिन एक बुरे आदमी के पास दिमाग होगा ही।
- धरती पर भीख देनेवाले से ज्यादा घिनौना और खराब कोई नहीं हो सकता और भीख लेनेवाले से दयनीय कोई नहीं हो सकता।
- किसी को भी गिनती इसलिए आनी चाहिए ताकि पचास की उम्र में वह बीस साल की लड़की से शादी न कर ले।
- इंग्लिश लिटरेचर में सबसे खूबसूरत शब्द 'नॉट गिल्टी' यानी 'दोषी नहीं' है। इसका मतलब है कि किसी को दोषी ठहराना अच्छा नहीं है।
- हमारी नजर में हर इंसान अहम है क्योंकि वह जानता है कि वह क्या है, वह क्या कर सकता है और वह क्यों इस दुनिया में आया?
- जब हर चीज आसान होती है, कोई भी सरलता से मूर्ख बन जाता है।
- सिर्फ महिलाएं भविष्य के बारे में सोच पाती हैं क्योंकि वे अपने बच्चों के रूप में भविष्य को जन्म देती हैं।
- बीते कल की सवारी में सवार होकर आप कहीं नहीं जा पाएंगे।
दुनिया सब बदलना चाहते हैं, खुद को कोई नहीं
महान लेखक लियो टॉलस्टॉय का जन्म 9 सितंबर 1828 को रूस के एक रईस परिवार में हुआ। वह सेना में भर्ती हुए और लड़ाई में भी हिस्सा लिया लेकिन जल्द ही सेना छोड़कर लेखन में जुट गए। उनका नॉवेल वॉर ऐंड पीस और अन्ना करेनिना को क्लासिक का दर्जा हासिल है। मन की शांति की तलाश में 1890 में उन्होंने अपनी दौलत का त्याग कर दिया और गरीबों की सेवा के लिए परिवार छोड़ दिया। 20 नवंबर 1910 को उनका देहांत हो गया।
- जिंदगी का इकलौता मकसद मानवता की सेवा होना चाहिए।
- जब छोटे बदलाव होते हैं, तभी असली जिंदगी जी जाती है।
- अगर अच्छाई, सचाई और सरलता नहीं है तो महानता भी नहीं है।
- यह जाने बगैर कि आप कौन हैं और यहां क्यों हैं, जिंदगी नामुमकिन है।
- एक खुशहाल परिवार में सब एक-दूसरे जैसे लगते हैं, जबकि नाखुश परिवार में सबकी राह जुदा होती है।
- और ज्यादा पाने की ख्वाहिश ही बोरियत है।
- हर कोई दुनिया बदलना चाहता है लेकिन कोई भी खुद को बदलना नहीं चाहता।
- मौत के साये में भी दो और दो छह नहीं होते।
- कुछ लोगों में मौजूद हिंसा तकलीफ या मौत का डर दिखाकर दूसरे लोगों को वह करने पर मजबूर करती है, जो वे करना नहीं चाहते।
- जो भी लोग जिंदा हैं, इसलिए नहीं कि वे अपनी परवाह करते हैं, बल्कि इसलिए कि दूसरे लोग उनसे प्यार करते हैं।
- अगर आप खुश रहना चाहते हैं तो बस रहें। इसके लिए खास कोशिश नहीं करनी पड़ती।
- खुश रहने की पहली शर्त यह है कि इंसान और कुदरत के बीच का रिश्ता टूटे नहीं।
- यह धोखा अपने आप में कितना पूरा है कि खूबसूरती अच्छाई है।
- इंसान को पावर से प्यार होगा, तभी वह उसे पा सकेगा और बनाए रख पाएगा।
- पूरा और स्पष्ट दुख उतना ही नामुमकिन है, जितना कि पूरा और स्पष्ट सुख।
- वक्त और धीरज सबसे बड़े योद्धा हैं।
- जिंदगी का इकलौता मकसद मानवता की सेवा होना चाहिए।
- जब छोटे बदलाव होते हैं, तभी असली जिंदगी जी जाती है।
- अगर अच्छाई, सचाई और सरलता नहीं है तो महानता भी नहीं है।
- यह जाने बगैर कि आप कौन हैं और यहां क्यों हैं, जिंदगी नामुमकिन है।
- एक खुशहाल परिवार में सब एक-दूसरे जैसे लगते हैं, जबकि नाखुश परिवार में सबकी राह जुदा होती है।
- और ज्यादा पाने की ख्वाहिश ही बोरियत है।
- हर कोई दुनिया बदलना चाहता है लेकिन कोई भी खुद को बदलना नहीं चाहता।
- मौत के साये में भी दो और दो छह नहीं होते।
- कुछ लोगों में मौजूद हिंसा तकलीफ या मौत का डर दिखाकर दूसरे लोगों को वह करने पर मजबूर करती है, जो वे करना नहीं चाहते।
- जो भी लोग जिंदा हैं, इसलिए नहीं कि वे अपनी परवाह करते हैं, बल्कि इसलिए कि दूसरे लोग उनसे प्यार करते हैं।
- अगर आप खुश रहना चाहते हैं तो बस रहें। इसके लिए खास कोशिश नहीं करनी पड़ती।
- खुश रहने की पहली शर्त यह है कि इंसान और कुदरत के बीच का रिश्ता टूटे नहीं।
- यह धोखा अपने आप में कितना पूरा है कि खूबसूरती अच्छाई है।
- इंसान को पावर से प्यार होगा, तभी वह उसे पा सकेगा और बनाए रख पाएगा।
- पूरा और स्पष्ट दुख उतना ही नामुमकिन है, जितना कि पूरा और स्पष्ट सुख।
- वक्त और धीरज सबसे बड़े योद्धा हैं।
सिर्फ ऊपरी दिखावा है खूबसूरती
फ्रांसीसी फिलॉसफर और सोशल ऐक्टिविस्ट सिमोन विल का जन्म 3 फरवरी 1909 को पैरिस में हुआ। उनके पिता डॉक्टर थे, इसलिए उनकी परवरिश अच्छे तरीके से हुई। वह बचपन से ही मेधावी थीं और भगवत गीता पढ़ने के बाद उन्होंने संस्कृत पढ़ने की ठान ली। उन्होंने राजनीतिक आंदोलन में हिस्सा लिया और उसके बारे में लिखा भी। इसके बाद उन्होंने अध्यात्म पर लिखा। वह ईसाईयत के अलावा, हिंदुत्व, बौद्ध धर्म और यूनानी धर्म परंपरा की भी जानकार थीं। 1943 में उनका देहांत हो गया।
उनकी कही कुछ बातें
- वह विज्ञान बेकार है, जो हमें भगवान के नजदीक न लाए।
- खूबसूरती सिर्फ वादा करती है, पर देती कुछ नहीं है।
- खूबसूरती सिर्फ ऊपरी दिखावा है। दिल की खूबसूरती से सब अनजान हैं।
- भाषाई बंधन में बंधा दिमाग कैद में है।
- एक स्वाभिमानी राष्ट्र युद्ध समेत सब चीजों के लिए तैयार रहता है।
- नम्रता धीरज है।
- नास्तिक वह है, जिसका विश्वास और प्यार भगवान के औपचारिक या अवैयक्तिक पहलुओं पर नहीं है।
- दान क्या है? हर इंसान से ऐसे प्यार करना, जैसे भगवान करता है।
- हमारी असल जिंदगी का तीन-चौथाई हिस्सा कल्पना और काल्पनिक कहानियां बनाती हैं।
- जिंदगी को शुद्ध होने के लिए किसी काट-छांट की जरूरत नहीं।
- मशीनों से सबसे कम शिक्षा और उपदेश मिलता है।
- सिखाने का सबसे अहम हिस्सा वह सिखाना है, जो असल में जानना चाहिए।
- मिसाल बनने के लिए खुद को अनुशासन में लाना होगा।
- दो ऐसे लोग, जो दोस्त नहीं हैं, उनका एक साथ बैठना दोस्ती नहीं है और दूर होते हुए भी दोस्तों में अलगाव नहीं होता।
- एक कवि अपनी सोच से ही अपनी रचना को खूबसूरत और सजीव बनाता है।
- अगर आप में समझदारी है तो ही आप आनंद के शिखर पर होंगे।
- किसी की दुख भरी दास्तां सुनना उतना ही मुश्किल है, जितना खुद को मुश्किल वक्त में खुश रखना।
उनकी कही कुछ बातें
- वह विज्ञान बेकार है, जो हमें भगवान के नजदीक न लाए।
- खूबसूरती सिर्फ वादा करती है, पर देती कुछ नहीं है।
- खूबसूरती सिर्फ ऊपरी दिखावा है। दिल की खूबसूरती से सब अनजान हैं।
- भाषाई बंधन में बंधा दिमाग कैद में है।
- एक स्वाभिमानी राष्ट्र युद्ध समेत सब चीजों के लिए तैयार रहता है।
- नम्रता धीरज है।
- नास्तिक वह है, जिसका विश्वास और प्यार भगवान के औपचारिक या अवैयक्तिक पहलुओं पर नहीं है।
- दान क्या है? हर इंसान से ऐसे प्यार करना, जैसे भगवान करता है।
- हमारी असल जिंदगी का तीन-चौथाई हिस्सा कल्पना और काल्पनिक कहानियां बनाती हैं।
- जिंदगी को शुद्ध होने के लिए किसी काट-छांट की जरूरत नहीं।
- मशीनों से सबसे कम शिक्षा और उपदेश मिलता है।
- सिखाने का सबसे अहम हिस्सा वह सिखाना है, जो असल में जानना चाहिए।
- मिसाल बनने के लिए खुद को अनुशासन में लाना होगा।
- दो ऐसे लोग, जो दोस्त नहीं हैं, उनका एक साथ बैठना दोस्ती नहीं है और दूर होते हुए भी दोस्तों में अलगाव नहीं होता।
- एक कवि अपनी सोच से ही अपनी रचना को खूबसूरत और सजीव बनाता है।
- अगर आप में समझदारी है तो ही आप आनंद के शिखर पर होंगे।
- किसी की दुख भरी दास्तां सुनना उतना ही मुश्किल है, जितना खुद को मुश्किल वक्त में खुश रखना।
बारूश स्पीनोजा- न आंसू बहाओ, न क्रोध बढ़ाओ, चीजों को समझो
डच दार्शनिक स्पीनोजा का जन्म 24 नवंबर 1632 को हुआ। उन्हें सत्रहवीं सदी के सबसे बड़े चिंतक-दार्शनिकों में से माना जाता है। यह दीगर बात है कि जीते जी उनके विचारों को वह महत्व नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। इसकी वजह स्पीनोजा का आजाद खयाल और धामिर्क मान्यताओं के खिलाफ राय प्रकट करना था। लेकिन, अलोकप्रिय होने का खतरा उठाकर भी उन्होंने प्रचलित मान्यताओं के उलट अपनी बातें बहुत दृढ़ता के साथ रखीं। स्पीनोजा की ख्याति का आधार मृत्यु के बाद छपी उनकी पुस्तक 'एथिक्स' है। उनकी मृत्यु 21 फरवरी 1667 को हो गई।
न आंसू बहाओ, न क्रोध बढ़ाओ, चीजों को समझो।
उम्मीद है तो डर होगा ही, जैसे कि डर है तो उम्मीद होती है।
इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितना महीन काटते हो, चीजों के दो हिस्से हमेशा रहेंगे।
हमारी महत्वाकांक्षाएं अत्यधिक ताकतवर बनने की हमारी लालसाएं ही हैं।
हमारी तमाम खुशियां और गम इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम जिन चीजों से प्रेम करते हैं, उनसे हमारा जुड़ाव कैसा है।
एक चीज सिर्फ इसलिए झूठी नहीं पड़ जाती क्योंकि उसके पक्ष में कई लोग नहीं बोलते।
यह दुनिया ज्यादा सुखी होती अगर लोग अपनी बोलने की क्षमता के जितना ही चुप रहने की क्षमता का भी इस्तेमाल करना जानते।
सारी अच्छी चीजें मुश्किल होने की वजह से हमें अनूठी जान पड़ती है।
लोग सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जबान पर काबू पाने में महसूस करते हैं और अपनी इच्छाओं को अपने शब्दों से कहीं बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं।
बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है अतीत से सबक सीखना।
न आंसू बहाओ, न क्रोध बढ़ाओ, चीजों को समझो।
उम्मीद है तो डर होगा ही, जैसे कि डर है तो उम्मीद होती है।
इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितना महीन काटते हो, चीजों के दो हिस्से हमेशा रहेंगे।
हमारी महत्वाकांक्षाएं अत्यधिक ताकतवर बनने की हमारी लालसाएं ही हैं।
हमारी तमाम खुशियां और गम इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम जिन चीजों से प्रेम करते हैं, उनसे हमारा जुड़ाव कैसा है।
एक चीज सिर्फ इसलिए झूठी नहीं पड़ जाती क्योंकि उसके पक्ष में कई लोग नहीं बोलते।
यह दुनिया ज्यादा सुखी होती अगर लोग अपनी बोलने की क्षमता के जितना ही चुप रहने की क्षमता का भी इस्तेमाल करना जानते।
सारी अच्छी चीजें मुश्किल होने की वजह से हमें अनूठी जान पड़ती है।
लोग सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जबान पर काबू पाने में महसूस करते हैं और अपनी इच्छाओं को अपने शब्दों से कहीं बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं।
बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है अतीत से सबक सीखना।
पैगंबर मोहम्मद का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। इन्होंने पढ़ाई-लिखाई बिल्कुल नहीं की, इसलिए इन्हें उम्मी कहा जाता है। जब वह 40 बरस के थे तो अल्
पैगंबर मोहम्मद का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। इन्होंने पढ़ाई-लिखाई बिल्कुल नहीं की, इसलिए इन्हें उम्मी कहा जाता है। जब वह 40 बरस के थे तो अल्लाह के फरिश्ते जिबरइल के जरिए अल्लाह ने अपना पैगाम पैगंबर को भेजा, जिसे पैगंबर ने दुनिया के सामने रखा। बाद में खलीफा अबू बकर ने पैगंबर के पैगामों को एक पुस्तक की शक्ल दी जिसे पवित्र कुरानशरीफ कहा जाता है। कुरान का मूल संदेश है कि अपने रब को हमेशा याद करो, जिसने तुम्हें पैदा किया और सारा संसार बनाया।
- हमेशा सच बोलो और ईमानदारी बरतो। सिर्फ रुपये-पैसे की नहीं, रिश्ते-नातों में भी ईमानदारी बरतो।
- पड़ोसियों का ध्यान रखो। उन्हें भूखा और दुखी न रहने दो। इसमें यह नहीं देखना कि वह किस जात, समाज व धर्म का है। औरत हो या मर्द या बच्चे, सभी की मदद करो।
- जो यतीम हों, जिन के सिर पर बाप का साया न हो, उनसे प्रेम से पेश आओ। ऐसे बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरने या सहलाने से तुम्हें बेहद पुण्य मिलेगा।
- विधवाओं का पूरा ध्यान रखो। अगर कोई एक विधवा का भी ध्यान रखता है तो उसे पूरी उम्र इबादत में लगाने और पूरी उम्र रोजे रखने के बराबर फल मिलेगा।
- औरतों का हक अदा करो। इनका ध्यान रखो और देखभाल करो। मां, बीवी, बहन व लड़कियों का ख्याल रखो व सेवा करो, वरना तुम्हें अल्लाह के घर में जवाब देना पड़ेगा।
- अपने मां-बाप की आज्ञा का पालन करो, उनकी देखभाल और सेवा करो।
- बच्चों को हमेशा तालीम दिलाओ कि वे बड़ों की इज्जत करना और छोटों व गरीबों से प्रेम करना सीखें।
- हमेशा अपने से नीचे वालों को देखकर जीवन जियो। अपने से ऊपर वालों को देखकर जीने से भटक जाओगे।
- जेहाद का असली मतलब अपने मन की कामनाओं और वासनाओं को मारना और उन पर जीत पाना है।
- शिक्षा जिस किसी से भी मिले ले लो, चाहे वह मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम।
- हरेक के साथ वैसा ही बर्ताव करो, जैसा तुम अपने लिए चाहते हो। अपनी जुबान पर नियंत्रण बनाए रखना इसके लिए बहुत जरूरी है।
- हर काम का फल नीयत के अनुसार ही मिलता है। हर काम अल्लाह के लिए करो। दान-पुण्य आदि प्रशंसा पाने के लिए मत करो।
- धर्म के मामले में जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। हरेक को अपनी मर्जी से धर्म अपनाने का हक है। धर्म के मामले में लड़ाई नहीं होनी चाहिए।
- हमेशा सच बोलो और ईमानदारी बरतो। सिर्फ रुपये-पैसे की नहीं, रिश्ते-नातों में भी ईमानदारी बरतो।
- पड़ोसियों का ध्यान रखो। उन्हें भूखा और दुखी न रहने दो। इसमें यह नहीं देखना कि वह किस जात, समाज व धर्म का है। औरत हो या मर्द या बच्चे, सभी की मदद करो।
- जो यतीम हों, जिन के सिर पर बाप का साया न हो, उनसे प्रेम से पेश आओ। ऐसे बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरने या सहलाने से तुम्हें बेहद पुण्य मिलेगा।
- विधवाओं का पूरा ध्यान रखो। अगर कोई एक विधवा का भी ध्यान रखता है तो उसे पूरी उम्र इबादत में लगाने और पूरी उम्र रोजे रखने के बराबर फल मिलेगा।
- औरतों का हक अदा करो। इनका ध्यान रखो और देखभाल करो। मां, बीवी, बहन व लड़कियों का ख्याल रखो व सेवा करो, वरना तुम्हें अल्लाह के घर में जवाब देना पड़ेगा।
- अपने मां-बाप की आज्ञा का पालन करो, उनकी देखभाल और सेवा करो।
- बच्चों को हमेशा तालीम दिलाओ कि वे बड़ों की इज्जत करना और छोटों व गरीबों से प्रेम करना सीखें।
- हमेशा अपने से नीचे वालों को देखकर जीवन जियो। अपने से ऊपर वालों को देखकर जीने से भटक जाओगे।
- जेहाद का असली मतलब अपने मन की कामनाओं और वासनाओं को मारना और उन पर जीत पाना है।
- शिक्षा जिस किसी से भी मिले ले लो, चाहे वह मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम।
- हरेक के साथ वैसा ही बर्ताव करो, जैसा तुम अपने लिए चाहते हो। अपनी जुबान पर नियंत्रण बनाए रखना इसके लिए बहुत जरूरी है।
- हर काम का फल नीयत के अनुसार ही मिलता है। हर काम अल्लाह के लिए करो। दान-पुण्य आदि प्रशंसा पाने के लिए मत करो।
- धर्म के मामले में जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। हरेक को अपनी मर्जी से धर्म अपनाने का हक है। धर्म के मामले में लड़ाई नहीं होनी चाहिए।
Thursday, September 29, 2011
मन की चंचलता रोकना ही योग है
महर्षि पतंजलि को पहला ऐसा शख्स माना जाता है, जिसने योग को गुफाओं और कंदराओं से निकालकर आम आदमी के लायक बना दिया। वेदों और उपनिषदों के बाद योग की पहली किताब पतंजलि ने ही लिखी। उनके मुताबिक योग सिर्फ आसन और प्राणायाम तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके कई और भी अंग हैं। उन्होंने योग दर्शन को चार भागों में बांटा - समाधिपाद, साधनापाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद। पतंजलि योगसूत्र में योग के 196 ऐसे सिद्धांत हैं जिनसे जिंदगी के हर क्षेत्र में कामयाबी हासिल की जा सकती है।
- चित्तवृतियों का निरोध करना यानी चित्त की चंचलता को रोके रखना ही योग है।
- योग के आठ अंग हैं -यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
- अगर किसी शख्स को ज्ञान मिल जाए तो वह अपना मन नियंत्रित कर सकता है।
- शोक, मोह, ईर्ष्या, द्वेष से परे रहने वाला शख्स ही असली योगी कहलाता है। ऐसा शख्स ही अपने मन को स्थिर कर पाने में सफल हो सकता है।
- तप, स्वाध्याय और ईश्वर की शरण लेना ही वास्तविक क्रिया योग कहलाता है।
- समाधि हासिल करने के लिए मानसिक क्लेशों को दूर करना जरूरी है।
- योग को अपनाने से अशुद्धि का नाश होता है और उससे ज्ञान और विवेक की प्राप्ति होती है।
- साक्षी भाव से जीवन जीना ही योग का असली लक्ष्य है।
- सत्य को मन, वचन और कर्म से अपनाने पर वास्तविक धर्म की प्राप्ति होती है।
- दूसरों की वस्तु चोरी न करने के स्वभाव से सभी रत्नों की प्राप्ति होती है।
- संयम रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- बर्फ और पानी एक ही चीज हैं, बस उनमें अवस्थाओं का अंतर हैं। ठीक इसी तरह प्रकृति भी तमाम रूपों में पसरी हुई है।
- कष्ट, निराशा, नर्वसनेस और सांस का तेज चलना इस बात के संकेत हैं कि आपका मन शांत नहीं है।
-योग अच्छे-बुरे और जन्म-मृत्यु़ के पार जाने की कला है।
-मौत पर जीवन खत्म नहीं होता, बल्कि तब संभावना का एक और दरवाजा खुलता है।
-चेतन और अचेतन एक ही अस्तित्व के दो छोर हैं। चेतन अचेतन हो सकता है और अचेतन चेतन होता रहता है।
-जो अणु में है, वह विराट में भी है। जो बूंद में है, वही विराट सागर में भी है।
-देना ही पाना है। जब बूंद सागर में मिलती है तो वह खुद सागर हो जाती है।
-मनुष्य का व्यक्तित्व सात चक्रों में बंटा हुआ है। इन चक्रों में अनंत ऊर्जा सोई हुई है। हर चक्र खोला जा सकता है।
-ध्यान करने से चक्र सक्रिय हो जाते हैं।
-खुद के प्रति होश से भरना साधना है और आखिरकार होश न रह जाए, खुद खो जाए, यह सिद्धि है।
-जैसे ही मैं खो जाता है, सब मिल जाता है।
- चित्तवृतियों का निरोध करना यानी चित्त की चंचलता को रोके रखना ही योग है।
- योग के आठ अंग हैं -यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।
- अगर किसी शख्स को ज्ञान मिल जाए तो वह अपना मन नियंत्रित कर सकता है।
- शोक, मोह, ईर्ष्या, द्वेष से परे रहने वाला शख्स ही असली योगी कहलाता है। ऐसा शख्स ही अपने मन को स्थिर कर पाने में सफल हो सकता है।
- तप, स्वाध्याय और ईश्वर की शरण लेना ही वास्तविक क्रिया योग कहलाता है।
- समाधि हासिल करने के लिए मानसिक क्लेशों को दूर करना जरूरी है।
- योग को अपनाने से अशुद्धि का नाश होता है और उससे ज्ञान और विवेक की प्राप्ति होती है।
- साक्षी भाव से जीवन जीना ही योग का असली लक्ष्य है।
- सत्य को मन, वचन और कर्म से अपनाने पर वास्तविक धर्म की प्राप्ति होती है।
- दूसरों की वस्तु चोरी न करने के स्वभाव से सभी रत्नों की प्राप्ति होती है।
- संयम रखने से ज्ञान की प्राप्ति होती है।
- बर्फ और पानी एक ही चीज हैं, बस उनमें अवस्थाओं का अंतर हैं। ठीक इसी तरह प्रकृति भी तमाम रूपों में पसरी हुई है।
- कष्ट, निराशा, नर्वसनेस और सांस का तेज चलना इस बात के संकेत हैं कि आपका मन शांत नहीं है।
-योग अच्छे-बुरे और जन्म-मृत्यु़ के पार जाने की कला है।
-मौत पर जीवन खत्म नहीं होता, बल्कि तब संभावना का एक और दरवाजा खुलता है।
-चेतन और अचेतन एक ही अस्तित्व के दो छोर हैं। चेतन अचेतन हो सकता है और अचेतन चेतन होता रहता है।
-जो अणु में है, वह विराट में भी है। जो बूंद में है, वही विराट सागर में भी है।
-देना ही पाना है। जब बूंद सागर में मिलती है तो वह खुद सागर हो जाती है।
-मनुष्य का व्यक्तित्व सात चक्रों में बंटा हुआ है। इन चक्रों में अनंत ऊर्जा सोई हुई है। हर चक्र खोला जा सकता है।
-ध्यान करने से चक्र सक्रिय हो जाते हैं।
-खुद के प्रति होश से भरना साधना है और आखिरकार होश न रह जाए, खुद खो जाए, यह सिद्धि है।
-जैसे ही मैं खो जाता है, सब मिल जाता है।
भरोसा प्यार के लिए पहला कदम होता है
मशहूर साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लम्ही गांव में हुआ था। वह कायस्थ परिवार से थे। उनका असली नाम धनपत राय था। उन्हें नवाब राय के नाम से भी जाना जाता था। प्रेमचंद की शुरुआती पढ़ाई मदरसे में हुई थी, जहां उन्होंने उर्दू की पढ़ाई की। वह आधुनिक हिंदी और उर्दू के महान भारतीय लेखकों में से एक थे। आसान भाषा उनके लेखन की सबसे बड़ी खूबी थी। लेखन में अपने बेहतरीन योगदान के कारण उन्हें ' कलम का सिपाही ' भी कहा जाता था। उन्हें उपन्यास सम्राट की समाधि भी दी गई। 1899 से 1921 तक उन्होंने स्कूल में अध्यापक के रूप में पढ़ाया। उन्होंने अनेक चर्चित कहानियां, उपन्यास और नाटक लिखे। गोदान, मनोरमा, निर्मला, गबन और कायाकल्प उनके प्रसिद्ध उपन्यासों में हैं। 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया था।
- गरीब की जोरू सबकी भाभी होती है। गरीब की पत्नी से हर कोई मजाक ही करता है।
- औरत सब कुछ बर्दाश्त कर लेगी पर अपने मायके की बदनामी नहीं।
- जैसे कायरता संक्रामक होती है वैसे ही बहादुरी या वीरता भी संक्रामक होती है।
- जीवन में सफल होने के लिए ज्ञानवान और शिक्षित होना जरूरी है, सिर्फ डिग्रियां लेना काफी नहीं होता।
- सुंदरता को गहनों की जरूरत नहीं होती, क्योंकि कोमलता गहनों का बोझ सहन नहीं कर सकती।
- भरोसा प्यार के लिए पहला कदम होता है।
- सुखभोग की लालसा आत्मसम्मान का सर्वनाश कर देती है।
- जब किसी कौम की औरतों में गैरत नहीं रहती तो वह कौम मुरदा हो जाती है।
- अपना उल्लू भी सीधा कर लेने और नेकनाम भी बने रहने को असली लीडरी कहते हैं।
- घड़ी-भर श्रृंगार के लालच के लिए विपत्ति सिर पर लेना मूर्खों का काम है।
- जिन हालातों में पुरुष दूसरों को दबाता है, वैसे ही हालात होने पर स्त्री शील और विनय की देवी हो जाती है।
- प्रलोभन देकर अच्छी-से-अच्छी गवाहियां मिल सकती हैं, और पुलिस के हाथ पड़कर तो निकम्मी-से निकम्मी गवाहियां भी देववाणी का महत्व प्राप्त कर लेती हैं।
- शादी-विवाह इंसान नहीं बल्कि भाग्य की बात है, जिससे ईश्वर ने, या उसके नायबों, ब्राह्माणों ने तय कर दी, उससे हो गई।
- हाय रे मनुष्य के मनोरथ, तेरी भित्ति कितनी अस्थिर है। बालू से बनी दीवार तो वर्षा में गिर जाती है पर तेरी दीवार तो बिना पानी-बूंद के ढह जाती है। आंधी में दीपक का तो कुछ भरोसा किया जा सकता है पर तेरा नहीं। तेरी अस्थिरता के आगे तो बालकों का घरौंदा अचल पर्वत जैसा है।
- प्रकृति की उपासना ने ही यूरोप के बड़े-बड़े कवियों को आसमान पर पहुंचा दिया है। यूरोप में होते तो आज इनके दरवाजे पर भी हाथी खड़ा नजर आता।
- गरीब की जोरू सबकी भाभी होती है। गरीब की पत्नी से हर कोई मजाक ही करता है।
- औरत सब कुछ बर्दाश्त कर लेगी पर अपने मायके की बदनामी नहीं।
- जैसे कायरता संक्रामक होती है वैसे ही बहादुरी या वीरता भी संक्रामक होती है।
- जीवन में सफल होने के लिए ज्ञानवान और शिक्षित होना जरूरी है, सिर्फ डिग्रियां लेना काफी नहीं होता।
- सुंदरता को गहनों की जरूरत नहीं होती, क्योंकि कोमलता गहनों का बोझ सहन नहीं कर सकती।
- भरोसा प्यार के लिए पहला कदम होता है।
- सुखभोग की लालसा आत्मसम्मान का सर्वनाश कर देती है।
- जब किसी कौम की औरतों में गैरत नहीं रहती तो वह कौम मुरदा हो जाती है।
- अपना उल्लू भी सीधा कर लेने और नेकनाम भी बने रहने को असली लीडरी कहते हैं।
- घड़ी-भर श्रृंगार के लालच के लिए विपत्ति सिर पर लेना मूर्खों का काम है।
- जिन हालातों में पुरुष दूसरों को दबाता है, वैसे ही हालात होने पर स्त्री शील और विनय की देवी हो जाती है।
- प्रलोभन देकर अच्छी-से-अच्छी गवाहियां मिल सकती हैं, और पुलिस के हाथ पड़कर तो निकम्मी-से निकम्मी गवाहियां भी देववाणी का महत्व प्राप्त कर लेती हैं।
- शादी-विवाह इंसान नहीं बल्कि भाग्य की बात है, जिससे ईश्वर ने, या उसके नायबों, ब्राह्माणों ने तय कर दी, उससे हो गई।
- हाय रे मनुष्य के मनोरथ, तेरी भित्ति कितनी अस्थिर है। बालू से बनी दीवार तो वर्षा में गिर जाती है पर तेरी दीवार तो बिना पानी-बूंद के ढह जाती है। आंधी में दीपक का तो कुछ भरोसा किया जा सकता है पर तेरा नहीं। तेरी अस्थिरता के आगे तो बालकों का घरौंदा अचल पर्वत जैसा है।
- प्रकृति की उपासना ने ही यूरोप के बड़े-बड़े कवियों को आसमान पर पहुंचा दिया है। यूरोप में होते तो आज इनके दरवाजे पर भी हाथी खड़ा नजर आता।
दुनिया में सभी से प्यार से मिलना चाहिए
गोस्वामी तुलसी दास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के राजपुर में 1532 में हुआ था। शुरू में वह दुनियादारी में आसक्त थे, लेकिन पत्नी रत्नावली का ताना सुनकर रातोंरात परम रामभक्त बन गए। तुलसीदास जी की कई रचनाएं हैं, जिनमें रामचरितमानस, हनुमान चालीसा, बजरंगबाण, विनयपत्रिका और रत्नावली खासी चर्चित हैं। माना जाता है कि जन्म के समय ही उनके 32 दांत थे और उन्हें रामबोला भी कहा जाता था।
तुलसी दास के विचार
- प्रीत की सुंदर रीत देखिए कि दूध में जल मिला हुआ हो तो वह भी दूध समान ही दिखता है। प्रेम का संबंध ऐसे ही कपटरहित होना चाहिए। अगर कपट रूपी खटाई उसमें डल जाए तो दूध का स्वाद खत्म हो जाता है।
- इस संसार में सभी से प्रेमपूर्वक मिलना चाहिए क्योंकि न जाने किस वेश में नारायण मिल जाएं।
- अच्छी संगत के बिना विवेक नहीं जागता और विवेक के बिना कोई काम पूरा नहीं होता। अच्छी संगत आनंद और कल्याण करने वाली है।
- जैसे पारस का साथ पाकर लोहा भी सोना बन जाता है, ऐसे ही दुष्ट लोग भी अच्छी संगत में रहकर सुधर जाते हैं। इसी तरह अगर दैवयोग से भले लोग गलत संगति में पड़ भी जाएं तो भी उनके अच्छे गुण कभी-न-कभी अपना प्रभाव दिखाते हैं।
- मित्र, स्वामी, पिता और गुरु के घर बिना बुलाए भी जा सकते हैं, लेकिन वहां अगर आपका विरोध होता हो तो ऐसे घर में जाने से कल्याण नहीं होता।
- समरथ को नहीं दोष गोसाईं यानी जो सार्मथ्यवान है, उसके दोष छुप जाते हैं। जैसे गंगा में पवित्र और अपवित्र दोनों तरह के जल बहते हैं, पर गंगा को कोई अपवित्र नहीं कहता।
- होनहार बलवान। जैसी होनी होती है, वैसा वातावरण बन जाता है। या तो होने वाली घटना आप तक आ जाती है या आप उस तक पहुंच जाते हैं।
- तेजस्वी दुश्मन को अकेला होते हुए भी कमतर नहीं आंकना चाहिए।
- तीन बुराइयां सबसे प्रबल हैं : काम, क्रोध और लोभ।
- गंगाजल से बनी मदिरा को संत जन अपवित्र मानकर पान नहीं करते, पर वही मदिरा अगर गंगाजी में मिल जाए तो वह भी पवित्र हो जाती है।
- अच्छे या संत चरित्र वाले लोग कपास जैसे होते हैं। जैसे कपास का फल स्वादरहित होते हुए भी गुणमयी होता है, उसी तरह संत का चरित्र भी गुणों का भंडार होता है।
तुलसी दास के विचार
- प्रीत की सुंदर रीत देखिए कि दूध में जल मिला हुआ हो तो वह भी दूध समान ही दिखता है। प्रेम का संबंध ऐसे ही कपटरहित होना चाहिए। अगर कपट रूपी खटाई उसमें डल जाए तो दूध का स्वाद खत्म हो जाता है।
- इस संसार में सभी से प्रेमपूर्वक मिलना चाहिए क्योंकि न जाने किस वेश में नारायण मिल जाएं।
- अच्छी संगत के बिना विवेक नहीं जागता और विवेक के बिना कोई काम पूरा नहीं होता। अच्छी संगत आनंद और कल्याण करने वाली है।
- जैसे पारस का साथ पाकर लोहा भी सोना बन जाता है, ऐसे ही दुष्ट लोग भी अच्छी संगत में रहकर सुधर जाते हैं। इसी तरह अगर दैवयोग से भले लोग गलत संगति में पड़ भी जाएं तो भी उनके अच्छे गुण कभी-न-कभी अपना प्रभाव दिखाते हैं।
- मित्र, स्वामी, पिता और गुरु के घर बिना बुलाए भी जा सकते हैं, लेकिन वहां अगर आपका विरोध होता हो तो ऐसे घर में जाने से कल्याण नहीं होता।
- समरथ को नहीं दोष गोसाईं यानी जो सार्मथ्यवान है, उसके दोष छुप जाते हैं। जैसे गंगा में पवित्र और अपवित्र दोनों तरह के जल बहते हैं, पर गंगा को कोई अपवित्र नहीं कहता।
- होनहार बलवान। जैसी होनी होती है, वैसा वातावरण बन जाता है। या तो होने वाली घटना आप तक आ जाती है या आप उस तक पहुंच जाते हैं।
- तेजस्वी दुश्मन को अकेला होते हुए भी कमतर नहीं आंकना चाहिए।
- तीन बुराइयां सबसे प्रबल हैं : काम, क्रोध और लोभ।
- गंगाजल से बनी मदिरा को संत जन अपवित्र मानकर पान नहीं करते, पर वही मदिरा अगर गंगाजी में मिल जाए तो वह भी पवित्र हो जाती है।
- अच्छे या संत चरित्र वाले लोग कपास जैसे होते हैं। जैसे कपास का फल स्वादरहित होते हुए भी गुणमयी होता है, उसी तरह संत का चरित्र भी गुणों का भंडार होता है।
जहां समझ खत्म हो, तर्क को दखल देना चाहिए
गैलीलियो इटली के नामी वैज्ञानिक, दार्शनिक, गणितज्ञ और ज्योतिषी थे। उनका जन्म 1564 में इटली के पीसा में हुआ। उन्हें मॉडर्न साइंस का पितामह भी कहा जाता है। उन्होंने टेलिस्कोप की खोज की। 1642 में उनका देहांत हो गया।
- सच एक बार खोज लिया जाए तो उसे समझना काफी आसान होता है। असली मुद्दा उसे खोजने का है।
- हम किसी को कुछ भी सिखा नहीं सकते। हम बस उसके भीतर से उसे तलाशने में मदद कर सकते हैं।
- जो नापने लायक हो, उसे नापें और जो नापने लायक न हो, उसे इस लायक बनाएं।
- मुझे नहीं लगता कि जिस भगवान ने हमें समझ और बुद्धि दी, वह चाहता है कि हम इनसे परहेज करने लगें।
- बाइबल हमें स्वर्ग की राह दिखाती है, स्वर्ग जिस राह पर चलता है, वह नहीं।
- विज्ञान की बातों को झुठलाकर कोई भी किसी भी विरोधाभास को बनाए रख सकता है।
- मुझे आज तक कोई भी शख्स इतना अज्ञानी नहीं मिला कि मैं उससे कुछ न सीख सकूं।
- विज्ञान की नजर में हजारों का अधिकार किसी एक शख्स के तर्क के बराबर नहीं हैं।
- जहां पर समझ खत्म होती है, तर्क को दखल देना चाहिए।
- फिलॉसफी वह किताब है, जो हमारी आंखों के सामने है, लेकिन हम उसे तब तक नहीं पढ़ सकते, जब तक कि हम उसकी भाषा और सिंबल को जान न लें।
- शक आविष्कार की जननी है।
- समस्याओं के डिस्कशन में बेहतर यह है कि हम धर्मग्रंथों की बजाय प्रयोगों से इसकी शुरुआत करें।
- अगर मुझे फिर से पढ़ाई करने का मौका मिले तो मैं प्लेटो की सलाह मानूंगा और मैथ्स से शुरुआत करूंगा।
- सच एक बार खोज लिया जाए तो उसे समझना काफी आसान होता है। असली मुद्दा उसे खोजने का है।
- हम किसी को कुछ भी सिखा नहीं सकते। हम बस उसके भीतर से उसे तलाशने में मदद कर सकते हैं।
- जो नापने लायक हो, उसे नापें और जो नापने लायक न हो, उसे इस लायक बनाएं।
- मुझे नहीं लगता कि जिस भगवान ने हमें समझ और बुद्धि दी, वह चाहता है कि हम इनसे परहेज करने लगें।
- बाइबल हमें स्वर्ग की राह दिखाती है, स्वर्ग जिस राह पर चलता है, वह नहीं।
- विज्ञान की बातों को झुठलाकर कोई भी किसी भी विरोधाभास को बनाए रख सकता है।
- मुझे आज तक कोई भी शख्स इतना अज्ञानी नहीं मिला कि मैं उससे कुछ न सीख सकूं।
- विज्ञान की नजर में हजारों का अधिकार किसी एक शख्स के तर्क के बराबर नहीं हैं।
- जहां पर समझ खत्म होती है, तर्क को दखल देना चाहिए।
- फिलॉसफी वह किताब है, जो हमारी आंखों के सामने है, लेकिन हम उसे तब तक नहीं पढ़ सकते, जब तक कि हम उसकी भाषा और सिंबल को जान न लें।
- शक आविष्कार की जननी है।
- समस्याओं के डिस्कशन में बेहतर यह है कि हम धर्मग्रंथों की बजाय प्रयोगों से इसकी शुरुआत करें।
- अगर मुझे फिर से पढ़ाई करने का मौका मिले तो मैं प्लेटो की सलाह मानूंगा और मैथ्स से शुरुआत करूंगा।
भरोसा करें, वरना जिंदगी हो जाती है दुश्वार
एंटन चेखव का नाम दुनिया के बेहतरीन कथाकार और नाटककारों में शुमार है। पेशे से डॉक्टर चेखव को खासतौर पर छोटी कहानियों (लघु कथाओं) के लिए जाना जाता है। उनका जन्म 29 जनवरी 1860 को रूस के टगनरोक शहर में हुआ। शुरुआत में उन्होंने पैसे के लिए लिखना शुरू किया। 1879 में उनका दाखिला मेडिकल में हो गया। बाद में मेडिकल प्रैक्टिस के साथ-साथ उनका लिखना भी जारी रहा। वह कहते थे डॉक्टर का पेशा मेरी पत्नी है और लेखनी प्रेमिका। उन्होंने द सीगल, थ्री सिस्टर्स, द स्टीप जैसी रचनाएं दीं। 15 जुलाई 1904 को 44 साल की उम्र में जर्मनी में टीबी से उनका देहांत हो गया।
- इस्तेमाल न किया जाए तो ज्ञान का कोई फायदा नहीं है।
- अच्छी परवरिश यह नहीं है कि आप टेबल पर सॉस न गिराएं, बल्कि यह है कि किसी दूसरे के गिराने पर आप उस पर ध्यान न दें।
- डॉक्टर और वकील एक जैसे ही होते हैं। दोनों ही आपको लूटते हैं। फर्क बस यह है कि डॉक्टर लूटने के साथ-साथ आपकी जान ले सकते हैं।
- अगर आप अकेला महसूस करते हैं तो शादी न करें।
- हमें यह सीखना चाहिए कि हम बिना पत्तों के पेड़ों की भी तारीफ कर सकें और उन पर लगनेवाले फलों का इंतजार कर सकें।
- आदमी वैसा ही होता है, जैसा वह अपने बारे में सोचता है।
- विश्वास अंदर से आता है। दरअसल, यह एक जन्मजात काबिलियत है।
- प्यार, दोस्ती और इज्जत लोगों को उस तरह नहीं एकजुट कर सकते, जिस तरह किसी चीज के लिए नफरत।
- दौलत भी शराब की तरह लोगों को सनकी बना देती है।
- किसी दार्शनिक को जो समझ न आए, उसे समझने का ढोंग नहीं करना चाहिए क्योंकि सिर्फ मूर्ख और कपटी लोगों ही सब कुछ जानते हैं और समझते कुछ नहीं हैं।
- जो जितना ज्यादा परिष्कृत होगा, वह उतना ही दुखी होगा।
- आग या डाकुओं से नहीं, दुनिया नफरत, दुश्मनी और छोटे झगड़ों की वजह से बर्बाद हुई है।
- कला में टैलेंट के अलावा कुछ भी नया नहीं है।
- जिंदगी में सिर्फ सकारात्मक चीजों से नहीं, नकारात्मक चीजों से भी सीखा जाता है।
- लोगों पर भरोसा करें, वरना जिंदगी दुश्वार हो जाएगी।
- सलाह देने का मतलब किसी को मजबूर करना नहीं है।
- एक बीमारी के लिए जब बहुत-से इलाज बताए जाएं तो समझ जाएं कि बीमारी ठीक नहीं होगी।
- जो अपनी जानकारी बढ़ाता है, वह अपना दुख भी बढ़ाता है।
- इस्तेमाल न किया जाए तो ज्ञान का कोई फायदा नहीं है।
- अच्छी परवरिश यह नहीं है कि आप टेबल पर सॉस न गिराएं, बल्कि यह है कि किसी दूसरे के गिराने पर आप उस पर ध्यान न दें।
- डॉक्टर और वकील एक जैसे ही होते हैं। दोनों ही आपको लूटते हैं। फर्क बस यह है कि डॉक्टर लूटने के साथ-साथ आपकी जान ले सकते हैं।
- अगर आप अकेला महसूस करते हैं तो शादी न करें।
- हमें यह सीखना चाहिए कि हम बिना पत्तों के पेड़ों की भी तारीफ कर सकें और उन पर लगनेवाले फलों का इंतजार कर सकें।
- आदमी वैसा ही होता है, जैसा वह अपने बारे में सोचता है।
- विश्वास अंदर से आता है। दरअसल, यह एक जन्मजात काबिलियत है।
- प्यार, दोस्ती और इज्जत लोगों को उस तरह नहीं एकजुट कर सकते, जिस तरह किसी चीज के लिए नफरत।
- दौलत भी शराब की तरह लोगों को सनकी बना देती है।
- किसी दार्शनिक को जो समझ न आए, उसे समझने का ढोंग नहीं करना चाहिए क्योंकि सिर्फ मूर्ख और कपटी लोगों ही सब कुछ जानते हैं और समझते कुछ नहीं हैं।
- जो जितना ज्यादा परिष्कृत होगा, वह उतना ही दुखी होगा।
- आग या डाकुओं से नहीं, दुनिया नफरत, दुश्मनी और छोटे झगड़ों की वजह से बर्बाद हुई है।
- कला में टैलेंट के अलावा कुछ भी नया नहीं है।
- जिंदगी में सिर्फ सकारात्मक चीजों से नहीं, नकारात्मक चीजों से भी सीखा जाता है।
- लोगों पर भरोसा करें, वरना जिंदगी दुश्वार हो जाएगी।
- सलाह देने का मतलब किसी को मजबूर करना नहीं है।
- एक बीमारी के लिए जब बहुत-से इलाज बताए जाएं तो समझ जाएं कि बीमारी ठीक नहीं होगी।
- जो अपनी जानकारी बढ़ाता है, वह अपना दुख भी बढ़ाता है।
खुद की तलाश करने का मौका मुहैया कराती है शिक्षा
महान दार्शनिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक कार्यकर्ता नोम चॉमस्की का जन्म 7 दिसंबर 1928 को फिलाडेल्फिया (अमेरिका) में हुआ। उन्हें मॉडर्न लिंग्विस्टिक्स (इंसानी भाषा की वैज्ञानिक स्टडी) का पितामह माना जाता है। उन्होंने अमेरिका की विदेशी और घरेलू नीतियों का खुलकर विरोध किया। वियतनाम युद्ध के विरोध के बाद उन्हें धुर अमेरिकी-विरोधी माना जाने लगा। उन्होंने 150 से ज्यादा किताबें लिखीं और दुनिया भर में नाम कमाया। 82 साल की उम्र में वह फिलहाल मैसाच्युसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी में प्रफेसर का पद संभाल रहे हैं।
- हम तब तक अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति सच्ची निष्ठा नहीं जता सकते, जब तक हम उन्हें यह आजादी न दें, जिनसे हम नफरत करते हैं या जिन्हें तुच्छ समझते हैं।
- तमाम व्यवस्थाओं की कोशिश होती है कि इंसान बेबस महसूस करे और बने-बनाए नियमों और रिवाजों को ही माने।
- आप चाहे परंपरागत नियमों को दोहराते रहें या फिर सच बोलें, आपको ऐसे देखा जाएगा मानो आप किसी दूर ग्रह से आए हैं।
- सेंसरशिप उन लोगों के लिए कभी खत्म नहीं होती, जिन्होंने कभी इसे भुगता है। यह सोच पर ऐसी लगाम है, जो उस भुक्तभोगी को हमेशा महसूस होती रहती है।
- एजुकेशन का मकसद खुद अपनी संतुष्टि के मौके मुहैया कराना होना चाहिए। यह हर शख्स को अपने तरीके से खुद की तलाश करने का बेहतरीन मौका मुहैया करा सकती है।
- अगर हम चाहें तो हमेशा भ्रम में जी सकते हैं और आरामदेह महसूस कर सकते हैं।
- राष्ट्र नहीं, लोग नैतिक एजेंट होते हैं और वे ताकतवर संस्थाओं पर नैतिक मापदंड लगा सकते हैं।
- अनियंत्रित आर्थिक विकास असंतुष्टि पैदा करता है और उदार अर्थव्यवस्थाओं में यह बात छुपी नहीं रही है।
- हमें नायकों की नहीं, अच्छे विचारों की तलाश होनी चाहिए।
- सच बोलना और झूठ का पर्दाफाश करना बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी है।
- सकारात्मक सोच अच्छा भविष्य बनाने का तरीका है। जब तक आप अच्छे भविष्य को लेकर आशान्वित नहीं होंगे, तब तक इस ओर कदम नहीं बढ़ाएंगे।
- इस्लामी कट्टरपंथ से नहीं, आजादी से डरता है अमेरिका।
- हर कोई आतंकवाद पर रोक लगाने को लेकर परेशान है, जबकि इसका सीधा-सा तरीका है, इसमें हिस्सा लेना छोड़ दें।
- हम तब तक अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति सच्ची निष्ठा नहीं जता सकते, जब तक हम उन्हें यह आजादी न दें, जिनसे हम नफरत करते हैं या जिन्हें तुच्छ समझते हैं।
- तमाम व्यवस्थाओं की कोशिश होती है कि इंसान बेबस महसूस करे और बने-बनाए नियमों और रिवाजों को ही माने।
- आप चाहे परंपरागत नियमों को दोहराते रहें या फिर सच बोलें, आपको ऐसे देखा जाएगा मानो आप किसी दूर ग्रह से आए हैं।
- सेंसरशिप उन लोगों के लिए कभी खत्म नहीं होती, जिन्होंने कभी इसे भुगता है। यह सोच पर ऐसी लगाम है, जो उस भुक्तभोगी को हमेशा महसूस होती रहती है।
- एजुकेशन का मकसद खुद अपनी संतुष्टि के मौके मुहैया कराना होना चाहिए। यह हर शख्स को अपने तरीके से खुद की तलाश करने का बेहतरीन मौका मुहैया करा सकती है।
- अगर हम चाहें तो हमेशा भ्रम में जी सकते हैं और आरामदेह महसूस कर सकते हैं।
- राष्ट्र नहीं, लोग नैतिक एजेंट होते हैं और वे ताकतवर संस्थाओं पर नैतिक मापदंड लगा सकते हैं।
- अनियंत्रित आर्थिक विकास असंतुष्टि पैदा करता है और उदार अर्थव्यवस्थाओं में यह बात छुपी नहीं रही है।
- हमें नायकों की नहीं, अच्छे विचारों की तलाश होनी चाहिए।
- सच बोलना और झूठ का पर्दाफाश करना बुद्धिजीवियों की जिम्मेदारी है।
- सकारात्मक सोच अच्छा भविष्य बनाने का तरीका है। जब तक आप अच्छे भविष्य को लेकर आशान्वित नहीं होंगे, तब तक इस ओर कदम नहीं बढ़ाएंगे।
- इस्लामी कट्टरपंथ से नहीं, आजादी से डरता है अमेरिका।
- हर कोई आतंकवाद पर रोक लगाने को लेकर परेशान है, जबकि इसका सीधा-सा तरीका है, इसमें हिस्सा लेना छोड़ दें।
सबसे अच्छी दवा है पैदल चलना
हिप्पोक्रेट्स को मॉडर्न मेडिकल सिस्टम का पितामह माना जाता है। उनका जन्म यूनान में 460 ई. पू. में हुआ। उन्हें मेडिसिन में क्रांति करने और मेडिकल को एक प्रफेशन के रूप में स्थापित करने के लिए जाना जाता है। इससे पहले माना जाता था कि बीमारियां कुदरत की देन हैं। उन्होंने इसका विरोध किया और बताया कि बीमारियां शरीर में गड़बड़ी की वजह से होती हैं। 370 ई. पू. में उनका देहांत हो गया।
- दो चीजों की आदत डालो - पहली, मदद करने की और दूसरी, कम-से-कम किसी को नुकसान न पहुंचाने की।
- कुछ नहीं करना भी अच्छा इलाज या उपाय है।
- किसी भी चीज की तारीफ बहुत लोग करते हैं, लेकिन उसके बारे में जानते कम ही हैं।
- आदमी को किस तरह की बीमारी होती है, इसके बजाय यह जानना जरूरी है कि किस तरह के आदमी को बीमारी होती है।
- ठीक होना वक्त पर निर्भर करता है, लेकिन कुछ हद तक मौके पर भी निर्भर करता है।
- किसी भी चीज का बहुलता में होना कुदरत के खिलाफ है।
- दो तथ्यात्मक चीजें हैं - साइंस और राय। पहली से जानकारी मिलती है और दूसरी से नासमझी।
- जहां चिकित्सा से प्यार होता है, वहीं पर मानवता से भी प्यार होता है।
- भाषा की सबसे बड़ी खासियत उसका स्पष्ट होना है। अनजान शब्दों के इस्तेमाल से ज्यादा कोई और चीज इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती।
- जिंदगी छोटी है, कला बड़ी, मौका तेजी से भागनेवाला, अनुभव सिखानेवाला और फैसला मुश्किल काम है।
- डॉक्टर अगर अच्छा नहीं कर सकता, तो उसे बुरा करने से भी रोका जाना चाहिए।
- प्रार्थना करना अच्छा है, लेकिन भगवान को बुलाने के लिए आदमी को खुद हाथ आगे बढ़ाना चाहिए।
- किसी भी समझदार शख्स को मानना चाहिए कि सेहत सबसे बड़ी नेमत है।
- एक-दूसरे के उलट मिजाज होने के बावजूद खाना और एक्सरसाइज, दोनों सेहत के जरूरी हैं।
- चलना सबसे अच्छी दवा है।
- किसी नम्र इंसान से अक्खड़ जवाब मिलना गलत संकेत है।
- दो चीजों की आदत डालो - पहली, मदद करने की और दूसरी, कम-से-कम किसी को नुकसान न पहुंचाने की।
- कुछ नहीं करना भी अच्छा इलाज या उपाय है।
- किसी भी चीज की तारीफ बहुत लोग करते हैं, लेकिन उसके बारे में जानते कम ही हैं।
- आदमी को किस तरह की बीमारी होती है, इसके बजाय यह जानना जरूरी है कि किस तरह के आदमी को बीमारी होती है।
- ठीक होना वक्त पर निर्भर करता है, लेकिन कुछ हद तक मौके पर भी निर्भर करता है।
- किसी भी चीज का बहुलता में होना कुदरत के खिलाफ है।
- दो तथ्यात्मक चीजें हैं - साइंस और राय। पहली से जानकारी मिलती है और दूसरी से नासमझी।
- जहां चिकित्सा से प्यार होता है, वहीं पर मानवता से भी प्यार होता है।
- भाषा की सबसे बड़ी खासियत उसका स्पष्ट होना है। अनजान शब्दों के इस्तेमाल से ज्यादा कोई और चीज इसे नुकसान नहीं पहुंचा सकती।
- जिंदगी छोटी है, कला बड़ी, मौका तेजी से भागनेवाला, अनुभव सिखानेवाला और फैसला मुश्किल काम है।
- डॉक्टर अगर अच्छा नहीं कर सकता, तो उसे बुरा करने से भी रोका जाना चाहिए।
- प्रार्थना करना अच्छा है, लेकिन भगवान को बुलाने के लिए आदमी को खुद हाथ आगे बढ़ाना चाहिए।
- किसी भी समझदार शख्स को मानना चाहिए कि सेहत सबसे बड़ी नेमत है।
- एक-दूसरे के उलट मिजाज होने के बावजूद खाना और एक्सरसाइज, दोनों सेहत के जरूरी हैं।
- चलना सबसे अच्छी दवा है।
- किसी नम्र इंसान से अक्खड़ जवाब मिलना गलत संकेत है।
अच्छा नहीं कर सकते, तो कम-से-कम बुरा तो मत करो
आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा का जन्म 23 नवंबर 1926 को आंध्र प्रदेश के पुट्टपर्थी में हुआ था। उनका बचपन का नाम सत्यनारायण राजू था। 1940 में अचानक एक दिन उन्हें एक बिच्छू ने काट लिया, जिसके बाद वह बेहोश हो गए। होश आने पर उनका व्यवहार बिल्कुल बदल गया और उन्होंने संस्कृत के श्लोक बोलने शुरू कर दिए। कुछ समय बाद उन्होंने दावा किया कि वह शिरडी वाले साईं बाबा के अवतार हैं। हवा में मिठाई और फल पैदा कर देने जैसी चीजों को उनके भक्तों ने चमत्कार माना तो कुछ लोगों ने इसे छोटे-मोटे जादू का नाम दिया। बीती 24 अप्रैल को लंबी बीमारी के बाद उन्होंने शरीर छोड़ दिया। समाजसेवा से जुड़े अपने तमाम कामों के लिए बाबा को हमेशा याद रखा जाएगा।
- आस्था हमारी जीवन डोर की तरह है। इसके बगैर दुनिया में एक मिनट भी रहना नामुमकिन है।
- दुनिया के तमाम देश ईश्वर के बड़े-से महल के कमरों की तरह हैं।
- अगर आपको ऐसा लगता है कि आप किसी का अच्छा नहीं कर सकते, तो कम-से-कम बुरा भी मत करो।
- मांस खाकर इंसान के अंदर हिंसक प्रवृत्तियां पनपती हैं।
- ईश्वर की सेवा करने का एकमात्र तरीका इंसान की सेवा करना है।
- ज्यादा नमकीन, ज्यादा गर्म, ज्यादा मीठा, ज्यादा कड़वा या ज्यादा खट्टा खाना नहीं खाना चाहिए।
- ईश्वर को जानने का अर्थ क्या है? इसका मतलब है ईश्वर को प्रेम करना।
- जहां विश्वास है, वहां प्रेम है, जहां प्रेम है, वहां शांति है, जहां शांति है, वहां ईश्वर है और जहां ईश्वर है, वहां परम आनंद है।
- जब हम खुद को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित कर देते हैं, तो वह हर तरह से हमारी देखभाल करता है।
- इंसान को अगर कोई सबसे बड़ा डर हो सकता है तो वह है ईश्वर का प्रेम खो देने का डर।
- ज्यादा खाना खाने से दिमाग मंद हो जाता है।
- जब कभी आपदाएं आती हैं, तो पक्षपात पूरी तरह मिट जाता है।
- आप जैसा महसूस करते हैं, वैसा बोलना सीखिए और जैसा बोलते हैं, वैसा करना सीखिए।
- अक्लमंद इंसान की पहचान क्या है? वह पूरी मानवता से प्रेम करता है।
- दुनिया में हर चीज बदल रही है, यहां तक कि इंसान भी हर पल बदल रहा है।
- इंसान का भविष्य उसके हाथों में है।
- जो लोग आध्यात्मिकता की खोज में हैं, उनकी बातचीत का जरिया मौन होता है।
- जब घर में शांति होगी, तो देश में व्यवस्था होगी, जब देश में व्यवस्था होगी तो दुनिया में शांति होगी।
- आस्था हमारी जीवन डोर की तरह है। इसके बगैर दुनिया में एक मिनट भी रहना नामुमकिन है।
- दुनिया के तमाम देश ईश्वर के बड़े-से महल के कमरों की तरह हैं।
- अगर आपको ऐसा लगता है कि आप किसी का अच्छा नहीं कर सकते, तो कम-से-कम बुरा भी मत करो।
- मांस खाकर इंसान के अंदर हिंसक प्रवृत्तियां पनपती हैं।
- ईश्वर की सेवा करने का एकमात्र तरीका इंसान की सेवा करना है।
- ज्यादा नमकीन, ज्यादा गर्म, ज्यादा मीठा, ज्यादा कड़वा या ज्यादा खट्टा खाना नहीं खाना चाहिए।
- ईश्वर को जानने का अर्थ क्या है? इसका मतलब है ईश्वर को प्रेम करना।
- जहां विश्वास है, वहां प्रेम है, जहां प्रेम है, वहां शांति है, जहां शांति है, वहां ईश्वर है और जहां ईश्वर है, वहां परम आनंद है।
- जब हम खुद को ईश्वर के प्रति पूरी तरह समर्पित कर देते हैं, तो वह हर तरह से हमारी देखभाल करता है।
- इंसान को अगर कोई सबसे बड़ा डर हो सकता है तो वह है ईश्वर का प्रेम खो देने का डर।
- ज्यादा खाना खाने से दिमाग मंद हो जाता है।
- जब कभी आपदाएं आती हैं, तो पक्षपात पूरी तरह मिट जाता है।
- आप जैसा महसूस करते हैं, वैसा बोलना सीखिए और जैसा बोलते हैं, वैसा करना सीखिए।
- अक्लमंद इंसान की पहचान क्या है? वह पूरी मानवता से प्रेम करता है।
- दुनिया में हर चीज बदल रही है, यहां तक कि इंसान भी हर पल बदल रहा है।
- इंसान का भविष्य उसके हाथों में है।
- जो लोग आध्यात्मिकता की खोज में हैं, उनकी बातचीत का जरिया मौन होता है।
- जब घर में शांति होगी, तो देश में व्यवस्था होगी, जब देश में व्यवस्था होगी तो दुनिया में शांति होगी।
मां के लिए आप ही दुनिया हैं
मदर्स डे की शुरुआत को लेकर दुनिया भर में अलग-अलग तरह की मान्यताएं हैं, लेकिन सबसे ज्यादा पॉप्युलर मान्यता के मुताबिक मदर्स डे की शुरुआत अमेरिका में अन्ना जार्विस नाम की महिला ने 1912 में की थी। उस वक्त तय किया गया कि मदर्स डे मई महीने के दूसरे संडे को मनाया जाएगा। हालांकि अमेरिका के पैटर्न पर भारत में भी मदर्स डे मई के दूसरे संडे को ही मनाया जाता है, लेकिन दुनिया के कई दूसरे देश अपनी सुविधा के मुताबिक इसे अलग-अलग दिन भी मनाते हैं।
- मां को आप चाहे जो गिफ्ट दे दें, वह उस गिफ्ट से हमेशा छोटा ही होगा, जो गिफ्ट उसने आपको दिया है- जिंदगी का गिफ्ट।
- मां का प्यार एक ऐसा ईंधन है, जो एक साधारण इंसान को भी नामुमकिन काम करने की ताकत दे देता है।
- दुनिया के लिए आप महज एक शख्स हो सकते हैं, लेकिन एक शख्स (मां) के लिए आप दुनिया हैं।
- एक फुलटाइम मां होना सबसे ज्यादा सैलरी वाली जॉब है क्योंकि इसके बदले जो मेहनताना मिलता है, वह खालिस प्रेम है।
- ऐसा कोई महान शख्स नहीं हुआ, जिसकी मां महान न रही हो।
- जब आपकी मां पूछती है- तुम्हें सलाह चाहिए? तो यह सवाल महज दिखावा है। आप 'हां' कहिए या 'ना', सलाह तो आपको मिलनी ही है।
- मां उस बात को भी समझ लेती है, जो उसका बच्चा नहीं कहता।
- जो शख्स यह कहता है कि वह अतीत को मिस नहीं करता, निश्चित रूप से उसकी मां नहीं है।
- एक मां दुनिया की सबसे सहज फिलॉसफर होती है।
- सभी लड़कियां बड़ी होकर अपनी मां की तरह बन जाती हैं, लेकिन विडंबना यह है कि लड़के बड़े होकर मां की तरह नहीं बनते।
- लड़कियों को ऐसे मर्द से शादी नहीं करनी चाहिए जो अपनी मां से नफरत करता हो क्योंकि ऐसा शख्स अपनी बीवी से भी नफरत करेगा।
- जिस वक्त बच्चे का जन्म होता है, उस वक्त मां का भी जन्म होता है।
- एक पिता अपने बच्चों के लिए जो सबसे बड़ा काम कर सकता है, वह यह है कि वह उनकी मां को प्रेम करे।
- सभी मांएं कामकाजी मांएं होती हैं।
- दुनिया में एक ही बच्चा सबसे खूबसूरत है और वह बच्चा हर मां के पास है।
- मां को आप चाहे जो गिफ्ट दे दें, वह उस गिफ्ट से हमेशा छोटा ही होगा, जो गिफ्ट उसने आपको दिया है- जिंदगी का गिफ्ट।
- मां का प्यार एक ऐसा ईंधन है, जो एक साधारण इंसान को भी नामुमकिन काम करने की ताकत दे देता है।
- दुनिया के लिए आप महज एक शख्स हो सकते हैं, लेकिन एक शख्स (मां) के लिए आप दुनिया हैं।
- एक फुलटाइम मां होना सबसे ज्यादा सैलरी वाली जॉब है क्योंकि इसके बदले जो मेहनताना मिलता है, वह खालिस प्रेम है।
- ऐसा कोई महान शख्स नहीं हुआ, जिसकी मां महान न रही हो।
- जब आपकी मां पूछती है- तुम्हें सलाह चाहिए? तो यह सवाल महज दिखावा है। आप 'हां' कहिए या 'ना', सलाह तो आपको मिलनी ही है।
- मां उस बात को भी समझ लेती है, जो उसका बच्चा नहीं कहता।
- जो शख्स यह कहता है कि वह अतीत को मिस नहीं करता, निश्चित रूप से उसकी मां नहीं है।
- एक मां दुनिया की सबसे सहज फिलॉसफर होती है।
- सभी लड़कियां बड़ी होकर अपनी मां की तरह बन जाती हैं, लेकिन विडंबना यह है कि लड़के बड़े होकर मां की तरह नहीं बनते।
- लड़कियों को ऐसे मर्द से शादी नहीं करनी चाहिए जो अपनी मां से नफरत करता हो क्योंकि ऐसा शख्स अपनी बीवी से भी नफरत करेगा।
- जिस वक्त बच्चे का जन्म होता है, उस वक्त मां का भी जन्म होता है।
- एक पिता अपने बच्चों के लिए जो सबसे बड़ा काम कर सकता है, वह यह है कि वह उनकी मां को प्रेम करे।
- सभी मांएं कामकाजी मांएं होती हैं।
- दुनिया में एक ही बच्चा सबसे खूबसूरत है और वह बच्चा हर मां के पास है।
लाभ के साथ मिलावट होगी ही
7 मई 1711 को स्कॉटलैंड के एडिनबर्ग में जन्मे डेविड ह्यूम एक जाने माने फिलॉसफर के अलावा इतिहासकार, निबंधकार और अर्थशास्त्री भी थे। मुख्य रूप ये यथार्थवाद और अनुभववाद पर लिखने के लिए अलावा ह्यूम ने धर्म पर भी खूब लिखा, लेकिन उनके लेखन से यह जाहिर नहीं होता कि धर्म को लेकर उनकी निजी सोच क्या थी। 25 अगस्त 1776 को उनका निधन हो गया।
- अगर किसी शख्स का झुकाव आशा और आनंद की तरफ है तो वह शख्स सबसे रईस है। इसी तरह जो शख्स डर और दुख के बारे में सोचता है, वह सब कुछ होते हुए भी गरीब है।
- फिलॉसफर होना अच्छी बात है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करें कि आप अपनी पूरी फिलॉसफी के बीच भी इंसान बने रहें।
- इंसानी जिंदगी के लिए रीतिरिवाज सबसे बड़ी गाइड की तरह हैं, कारण और लॉजिक नहीं।
- इंसानी फितरत इंसानी जिंदगी से संबंधित एकमात्र साइंस है, फिर भी इसे सबसे ज्यादा नजरंदाज किया जाता है।
- यह एक राजनीतिक सूक्ति है कि हर इंसान को धूर्त समझो।
- इस दुनिया में ऐसा कोई लाभ नहीं है, जो पूरी तरह प्योर है। हर लाभ के साथ कुछ न कुछ मिलावट होगी ही।
- कानून जो भी ताकत आपको देता है, उसकी काट भी अपने पास रखता है।
- इस यूनिवर्स के लिए इंसानी जिंदगी का महत्व किसी भी मायने में किसी सीप से कम नहीं है।
- दोस्तों के बीच होने वाले वाद-विवाद से सचाई फैलने में मदद मिलती है।
- किसी काबिल इंसान का अगर इस्तेमाल न किया जाए तो वह अव्वल दर्जे का कूड़ा साबित हो सकता है। ठीक उसी तरह जैसे अगर किसी उपजाऊ जमीन पर खेती न की जाए तो वह बेकार हो जाती है।
- अगर किसी शख्स का झुकाव आशा और आनंद की तरफ है तो वह शख्स सबसे रईस है। इसी तरह जो शख्स डर और दुख के बारे में सोचता है, वह सब कुछ होते हुए भी गरीब है।
- फिलॉसफर होना अच्छी बात है, लेकिन यह भी सुनिश्चित करें कि आप अपनी पूरी फिलॉसफी के बीच भी इंसान बने रहें।
- इंसानी जिंदगी के लिए रीतिरिवाज सबसे बड़ी गाइड की तरह हैं, कारण और लॉजिक नहीं।
- इंसानी फितरत इंसानी जिंदगी से संबंधित एकमात्र साइंस है, फिर भी इसे सबसे ज्यादा नजरंदाज किया जाता है।
- यह एक राजनीतिक सूक्ति है कि हर इंसान को धूर्त समझो।
- इस दुनिया में ऐसा कोई लाभ नहीं है, जो पूरी तरह प्योर है। हर लाभ के साथ कुछ न कुछ मिलावट होगी ही।
- कानून जो भी ताकत आपको देता है, उसकी काट भी अपने पास रखता है।
- इस यूनिवर्स के लिए इंसानी जिंदगी का महत्व किसी भी मायने में किसी सीप से कम नहीं है।
- दोस्तों के बीच होने वाले वाद-विवाद से सचाई फैलने में मदद मिलती है।
- किसी काबिल इंसान का अगर इस्तेमाल न किया जाए तो वह अव्वल दर्जे का कूड़ा साबित हो सकता है। ठीक उसी तरह जैसे अगर किसी उपजाऊ जमीन पर खेती न की जाए तो वह बेकार हो जाती है।
बिना पैशन कोई बड़ा काम नहीं होता
जर्मन फिलॉसफर और गणितज्ञ विलहेम लैबनीज का जन्म 1 जुलाई 1646 को हुआ था। गणित के क्षेत्र में जहां उन्हें मिकैनिकल कैल्कुलेटर के एक आविष्कारक और बाइनरी नंबर सिस्टम को बेहतर बनाने के लिए जाना जाता है, वहीं फिलॉसफी में वह अपनी आशावादिता की वजह से जाने जाते हैं। उनका मानना है कि यह सृष्टि ईश्वर की बेहतरीन रचना है। 14 नवंबर 1716 को उनका निधन हो गया।
- शिक्षा इंसान को नैतिक रूप से बलवान बनाती है।
- दुनिया में आज तक जो भी असल ट्रैजिडी हुई हैं, उनमें लड़ाई सही और गलत के बीच कभी नहीं रही, बल्कि हमेशा दो सही चीजों के बीच रही है।
- सरकारों ने इतिहास से कभी कुछ नहीं सीखा और न ही इतिहास की वजह से बनने वाले सिद्धांतों पर काम किया है।
- किसी शख्स या सरकार की अहमियत समझने से कहीं ज्यादा आसान काम है इनमें कमियां ढूंढना।
- दुनिया में बिना पैशन के कभी कोई महान काम नहीं हुआ।
- एक बार देश आजाद हो जाए, तो फिर कोई हीरो नहीं बनता। हीरो सिर्फ असभ्य और विपरीत परिस्थितियों में ही पैदा होते हैं।
- कोई शख्स अपने सीखने की शुरुआत दूसरों की गलतियों ढूंढकर कर सकता है, लेकिन जो असल में विद्वान है, वह सभी के अंदर अच्छाई देख लेता है।
- जो शख्स दुनिया को तार्किक ढंग से देखता है, दुनिया भी उसके सामने एक ताकिर्क पहलू पेश करती है। यह संबंध पूरी तरह आपसी है।
- तर्क ही इस सृष्टि का अस्तित्व है।
- दुनिया की संरचना पूरी तरह तार्किक तरीके से की गई है।
- अगर आप प्रेम करना चाहते हैं तो आपको सेवा करनी चाहिए।
- गरीबी इंसान को कमजोर और निम्न नहीं बनाती, बल्कि उसकी ऐसी सोच उसे कमजोर बनाती है।
- शिक्षा इंसान को नैतिक रूप से बलवान बनाती है।
- दुनिया में आज तक जो भी असल ट्रैजिडी हुई हैं, उनमें लड़ाई सही और गलत के बीच कभी नहीं रही, बल्कि हमेशा दो सही चीजों के बीच रही है।
- सरकारों ने इतिहास से कभी कुछ नहीं सीखा और न ही इतिहास की वजह से बनने वाले सिद्धांतों पर काम किया है।
- किसी शख्स या सरकार की अहमियत समझने से कहीं ज्यादा आसान काम है इनमें कमियां ढूंढना।
- दुनिया में बिना पैशन के कभी कोई महान काम नहीं हुआ।
- एक बार देश आजाद हो जाए, तो फिर कोई हीरो नहीं बनता। हीरो सिर्फ असभ्य और विपरीत परिस्थितियों में ही पैदा होते हैं।
- कोई शख्स अपने सीखने की शुरुआत दूसरों की गलतियों ढूंढकर कर सकता है, लेकिन जो असल में विद्वान है, वह सभी के अंदर अच्छाई देख लेता है।
- जो शख्स दुनिया को तार्किक ढंग से देखता है, दुनिया भी उसके सामने एक ताकिर्क पहलू पेश करती है। यह संबंध पूरी तरह आपसी है।
- तर्क ही इस सृष्टि का अस्तित्व है।
- दुनिया की संरचना पूरी तरह तार्किक तरीके से की गई है।
- अगर आप प्रेम करना चाहते हैं तो आपको सेवा करनी चाहिए।
- गरीबी इंसान को कमजोर और निम्न नहीं बनाती, बल्कि उसकी ऐसी सोच उसे कमजोर बनाती है।
खुद के प्रति ईमानदार होना सबसे मुश्किल
चिन्मय कुमार घोष उर्फ श्री चिन्यम का जन्म 27 अगस्त 1931 को ईस्ट बंगाल (अब बांग्लादेश) में हुआ। वह आध्यात्मिक गुरु, लेखक, कवि और दार्शनिक थे। उन्होंने बचपन में ही माता-पिता को खो दिया था और पांडिचेरी में श्री अरबिंदो आश्रम में दर्शन, बांग्ला और अंग्रेजी की पढ़ाई की। वह ध्यान को ज्ञान प्राप्ति का जरिया मानते थे। 1964 में वह अमेरिका चले गए। उन्होंने अपनी जिंदगी के 43 साल पश्चिमी देशों में बिताए। उनके समर्थकों का दावा है कि उन्होंने 1500 किताबें और करीब डेढ़ लाख कविताएं लिखीं और दो लाख पेंटिंग्स बनाईं। उनके कुछ विचार निम्न हैं-
- जो प्रेम करता है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता। भगवान इसका उदाहरण है।
- अगर आप खुद को भगवान का बच्चा कहते हैं, तो दूसरे भी भगवान के बच्चे हैं।
- आप स्वीकार करें या न करें, भगवान का आपके लिए प्यार स्थायी है।
- आप उससे नफरत करते हैं, जिसे आप वाकई प्यार करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते। यह प्यार का एक नकली रूप है।
- अगर आप कभी भी नफरत के खिलाफ लड़ने की सोचें तो एक ही हथियार है - प्रेम।
- दुनिया में शांति हो सकती है, अगर ताकत से प्यार की बजाय प्यार की ताकत पर फोकस किया जाए।
- खुद के प्रति ईमानदार होना, जिंदगी का सबसे मुश्किल इम्तिहान है।
- शुद्ध और आध्यात्मिक प्रेम कोई मांग या उम्मीद नहीं करता।
- प्यार को कभी भी डर का खौफ नहीं होता। खौफ को हमेशा प्यार का डर होता है।
- दया एक-दूसरे से फैलती है। आज आप किसी पर दया करेंगे तो कल वह आप पर दया करेगा और परसों किसी और पर।
- मृत्यु अंत नहीं है, यह रास्ता है। जिंदगी मुसाफिर है और आत्मा गाइड है।
- हर इंसान के प्रति नम्र रहें और उसके प्रति दया दिखाएं क्योंकि हर इंसान को खुद से लड़ना पड़ता है।
- इंसान में कई दैवीय गुण होते हैं, लेकिन उसके आत्मबलिदान के बराबर कोई नहीं होता।
- जब आपको लगता है कि फेल होने में कोई शर्मिंदगी या तकलीफ नहीं है, बल्कि ऐसा होना नैचरल है तो सारा डर गायब हो जाता है।
- अंदरूनी शांति के लिए कोई भी कीमत बड़ी नहीं है।
- नफरत और गरुर से जिंदगी छोटी होती है। शांति और प्यार से जिंदगी लंबी होती है। सादगी और दया से जिंदगी मजबूत होती है।
- जो प्रेम करता है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता। भगवान इसका उदाहरण है।
- अगर आप खुद को भगवान का बच्चा कहते हैं, तो दूसरे भी भगवान के बच्चे हैं।
- आप स्वीकार करें या न करें, भगवान का आपके लिए प्यार स्थायी है।
- आप उससे नफरत करते हैं, जिसे आप वाकई प्यार करना चाहते हैं, लेकिन कर नहीं पाते। यह प्यार का एक नकली रूप है।
- अगर आप कभी भी नफरत के खिलाफ लड़ने की सोचें तो एक ही हथियार है - प्रेम।
- दुनिया में शांति हो सकती है, अगर ताकत से प्यार की बजाय प्यार की ताकत पर फोकस किया जाए।
- खुद के प्रति ईमानदार होना, जिंदगी का सबसे मुश्किल इम्तिहान है।
- शुद्ध और आध्यात्मिक प्रेम कोई मांग या उम्मीद नहीं करता।
- प्यार को कभी भी डर का खौफ नहीं होता। खौफ को हमेशा प्यार का डर होता है।
- दया एक-दूसरे से फैलती है। आज आप किसी पर दया करेंगे तो कल वह आप पर दया करेगा और परसों किसी और पर।
- मृत्यु अंत नहीं है, यह रास्ता है। जिंदगी मुसाफिर है और आत्मा गाइड है।
- हर इंसान के प्रति नम्र रहें और उसके प्रति दया दिखाएं क्योंकि हर इंसान को खुद से लड़ना पड़ता है।
- इंसान में कई दैवीय गुण होते हैं, लेकिन उसके आत्मबलिदान के बराबर कोई नहीं होता।
- जब आपको लगता है कि फेल होने में कोई शर्मिंदगी या तकलीफ नहीं है, बल्कि ऐसा होना नैचरल है तो सारा डर गायब हो जाता है।
- अंदरूनी शांति के लिए कोई भी कीमत बड़ी नहीं है।
- नफरत और गरुर से जिंदगी छोटी होती है। शांति और प्यार से जिंदगी लंबी होती है। सादगी और दया से जिंदगी मजबूत होती है।
सिर्फ ऊपरी दिखावा है खूबसूरती
फ्रांसीसी फिलॉसफर और सोशल ऐक्टिविस्ट सिमोन विल का जन्म 3 फरवरी 1909 को पैरिस में हुआ। उनके पिता डॉक्टर थे, इसलिए उनकी परवरिश अच्छे तरीके से हुई। वह बचपन से ही मेधावी थीं और भगवत गीता पढ़ने के बाद उन्होंने संस्कृत पढ़ने की ठान ली। उन्होंने राजनीतिक आंदोलन में हिस्सा लिया और उसके बारे में लिखा भी। इसके बाद उन्होंने अध्यात्म पर लिखा। वह ईसाईयत के अलावा, हिंदुत्व, बौद्ध धर्म और यूनानी धर्म परंपरा की भी जानकार थीं। 1943 में उनका देहांत हो गया।
उनकी कही कुछ बातें
- वह विज्ञान बेकार है, जो हमें भगवान के नजदीक न लाए।
- खूबसूरती सिर्फ वादा करती है, पर देती कुछ नहीं है।
- खूबसूरती सिर्फ ऊपरी दिखावा है। दिल की खूबसूरती से सब अनजान हैं।
- भाषाई बंधन में बंधा दिमाग कैद में है।
- एक स्वाभिमानी राष्ट्र युद्ध समेत सब चीजों के लिए तैयार रहता है।
- नम्रता धीरज है।
- नास्तिक वह है, जिसका विश्वास और प्यार भगवान के औपचारिक या अवैयक्तिक पहलुओं पर नहीं है।
- दान क्या है? हर इंसान से ऐसे प्यार करना, जैसे भगवान करता है।
- हमारी असल जिंदगी का तीन-चौथाई हिस्सा कल्पना और काल्पनिक कहानियां बनाती हैं।
- जिंदगी को शुद्ध होने के लिए किसी काट-छांट की जरूरत नहीं।
- मशीनों से सबसे कम शिक्षा और उपदेश मिलता है।
- सिखाने का सबसे अहम हिस्सा वह सिखाना है, जो असल में जानना चाहिए।
- मिसाल बनने के लिए खुद को अनुशासन में लाना होगा।
- दो ऐसे लोग, जो दोस्त नहीं हैं, उनका एक साथ बैठना दोस्ती नहीं है और दूर होते हुए भी दोस्तों में अलगाव नहीं होता।
- एक कवि अपनी सोच से ही अपनी रचना को खूबसूरत और सजीव बनाता है।
- अगर आप में समझदारी है तो ही आप आनंद के शिखर पर होंगे।
- किसी की दुख भरी दास्तां सुनना उतना ही मुश्किल है, जितना खुद को मुश्किल वक्त में खुश रखना।
उनकी कही कुछ बातें
- वह विज्ञान बेकार है, जो हमें भगवान के नजदीक न लाए।
- खूबसूरती सिर्फ वादा करती है, पर देती कुछ नहीं है।
- खूबसूरती सिर्फ ऊपरी दिखावा है। दिल की खूबसूरती से सब अनजान हैं।
- भाषाई बंधन में बंधा दिमाग कैद में है।
- एक स्वाभिमानी राष्ट्र युद्ध समेत सब चीजों के लिए तैयार रहता है।
- नम्रता धीरज है।
- नास्तिक वह है, जिसका विश्वास और प्यार भगवान के औपचारिक या अवैयक्तिक पहलुओं पर नहीं है।
- दान क्या है? हर इंसान से ऐसे प्यार करना, जैसे भगवान करता है।
- हमारी असल जिंदगी का तीन-चौथाई हिस्सा कल्पना और काल्पनिक कहानियां बनाती हैं।
- जिंदगी को शुद्ध होने के लिए किसी काट-छांट की जरूरत नहीं।
- मशीनों से सबसे कम शिक्षा और उपदेश मिलता है।
- सिखाने का सबसे अहम हिस्सा वह सिखाना है, जो असल में जानना चाहिए।
- मिसाल बनने के लिए खुद को अनुशासन में लाना होगा।
- दो ऐसे लोग, जो दोस्त नहीं हैं, उनका एक साथ बैठना दोस्ती नहीं है और दूर होते हुए भी दोस्तों में अलगाव नहीं होता।
- एक कवि अपनी सोच से ही अपनी रचना को खूबसूरत और सजीव बनाता है।
- अगर आप में समझदारी है तो ही आप आनंद के शिखर पर होंगे।
- किसी की दुख भरी दास्तां सुनना उतना ही मुश्किल है, जितना खुद को मुश्किल वक्त में खुश रखना।
मन में विरोध भावना पैदा करनेवाला कोई काम न करें
अरबिंदो घोष का जन्म कोलकाता में 15 अगस्त 1872 को हुआ था। वह एक महान स्वतंत्रता सेनानी, दार्शनिक, योगी और गुरु थे। उनके पिता कृष्णा धान घोष एक बड़े डॉक्टर थे। उन्होंने अरबिंदो समेत अपने तीनों बच्चों को बहुत कम उम्र में पढ़ने के लिए इंग्लैंड भेज दिया, ताकि वे भारतीय संस्कृति से दूर रहें। लेकिन अरबिंदो ने इंडियन सिविल सर्विस जैसा मुश्किल एग्जाम पास करने के बावजूद वह नौकरी नहीं की क्योंकि वह अंग्रेजों की सेवा नहीं करना चाहते थे। बाद में उनका झुकाव भारतीय संस्कृति की तरफ हो गया और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भी हिस्सा लिया। अरबिंद ने वेदों, उपनिषदों और गीता आदि का अनुवाद किया। उनकी मुख्य कृतियां द मदर, लेटर्स ऑन योगा, सावित्री (अ लेजेंड एण्ड अ सिंबल), योगा समन्वय, दिव्य जीवन और फ्यूचर पोएट्री हैं। 5 दिसंबर 1950 को पुदुचेरी में उनकी मृत्यु हो हुई।
उनकी कही कुछ बातें...
- ईश्वर प्रकृति में है।
- एक सच्चे और तपस्वी इंसान की पुकार ईश्वर गंभीरता से सुनता है।
- बुराई में से अच्छाई निकलती है और अच्छाई भी अक्सर बुराई जैसी लगने लग जाती है।
- अनुशासन का अर्थ यह नहीं कि आप किसी और के द्वारा तय किए गए मापदंडों और नियमों का पालन करें, बल्कि खुद के लिए तैयार किए गए संकल्प और सबसे ऊंचे सिद्धांतों के अनुरूप काम करना है।
- कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे मन में विरोध भावना पैदा हो।
- यह हमेशा ज्यादा अच्छा होता है कि आदमी अपना चेहरा भूतकाल की बजाय भविष्य की ओर मोड़कर रखे।
- जब भी हम हिंदू धर्म की बात करते हैं तो चर्चा ऐसे धर्म की होती है, जिसने सभी धर्मों को गले लगाया।
- गीता एक ऐसा पूर्ण आध्यात्मिक सत्य है, जो हमेशा हमें सच की राह दिखाएगा।
- दुनिया कभी नहीं खत्म होती और न ही इसका कोई आखिरी शब्द होता है, यह हमेशा रहती है और मानव जाति के लिए कुछ-न-कुछ करती रहती है।
- दमन कुछ नहीं, परमात्मा का एक शक्तिशाली हथौड़ा है। हम उसकी तिपाई पर रखे लोहे की तरह हैं और उसकी चोटें हमें नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि फिर से तैयार करने के लिए पड़ रही हैं। इसका मतलब है कि बिना कष्ट उठाए विकास नहीं हो सकता।
- जिस मनुष्य में जीवन और उसकी कठिनाइयों का मुकाबला धैर्य और दृढ़ता के साथ करने का साहस नहीं होता, वह जिंदगी के किसी भी पड़ाव को पार नहीं कर सकता।
- अगर जीवन की शक्ति के लिए विभिन्नता जरूरी है तो एकता भी जीवन की व्यवस्था और क्रमबद्धता के लिए जरूरी है।
- प्रकृति सदा ही सब प्रकार की भूल-चूक के बीच से आगे बढ़ती है। इंसान के उसके विकास में बाधा पैदा करने पर भी न सिर्फ वह फलती-फूलती रहती है, बल्कि इंसान की सहायता भी करती है।
उनकी कही कुछ बातें...
- ईश्वर प्रकृति में है।
- एक सच्चे और तपस्वी इंसान की पुकार ईश्वर गंभीरता से सुनता है।
- बुराई में से अच्छाई निकलती है और अच्छाई भी अक्सर बुराई जैसी लगने लग जाती है।
- अनुशासन का अर्थ यह नहीं कि आप किसी और के द्वारा तय किए गए मापदंडों और नियमों का पालन करें, बल्कि खुद के लिए तैयार किए गए संकल्प और सबसे ऊंचे सिद्धांतों के अनुरूप काम करना है।
- कोई ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे मन में विरोध भावना पैदा हो।
- यह हमेशा ज्यादा अच्छा होता है कि आदमी अपना चेहरा भूतकाल की बजाय भविष्य की ओर मोड़कर रखे।
- जब भी हम हिंदू धर्म की बात करते हैं तो चर्चा ऐसे धर्म की होती है, जिसने सभी धर्मों को गले लगाया।
- गीता एक ऐसा पूर्ण आध्यात्मिक सत्य है, जो हमेशा हमें सच की राह दिखाएगा।
- दुनिया कभी नहीं खत्म होती और न ही इसका कोई आखिरी शब्द होता है, यह हमेशा रहती है और मानव जाति के लिए कुछ-न-कुछ करती रहती है।
- दमन कुछ नहीं, परमात्मा का एक शक्तिशाली हथौड़ा है। हम उसकी तिपाई पर रखे लोहे की तरह हैं और उसकी चोटें हमें नष्ट करने के लिए नहीं, बल्कि फिर से तैयार करने के लिए पड़ रही हैं। इसका मतलब है कि बिना कष्ट उठाए विकास नहीं हो सकता।
- जिस मनुष्य में जीवन और उसकी कठिनाइयों का मुकाबला धैर्य और दृढ़ता के साथ करने का साहस नहीं होता, वह जिंदगी के किसी भी पड़ाव को पार नहीं कर सकता।
- अगर जीवन की शक्ति के लिए विभिन्नता जरूरी है तो एकता भी जीवन की व्यवस्था और क्रमबद्धता के लिए जरूरी है।
- प्रकृति सदा ही सब प्रकार की भूल-चूक के बीच से आगे बढ़ती है। इंसान के उसके विकास में बाधा पैदा करने पर भी न सिर्फ वह फलती-फूलती रहती है, बल्कि इंसान की सहायता भी करती है।
बारूश स्पीनोजा- न आंसू बहाओ, न क्रोध बढ़ाओ, चीजों को समझो
डच दार्शनिक स्पीनोजा का जन्म 24 नवंबर 1632 को हुआ। उन्हें सत्रहवीं सदी के सबसे बड़े चिंतक-दार्शनिकों में से माना जाता है। यह दीगर बात है कि जीते जी उनके विचारों को वह महत्व नहीं मिला जिसके वह हकदार थे। इसकी वजह स्पीनोजा का आजाद खयाल और धामिर्क मान्यताओं के खिलाफ राय प्रकट करना था। लेकिन, अलोकप्रिय होने का खतरा उठाकर भी उन्होंने प्रचलित मान्यताओं के उलट अपनी बातें बहुत दृढ़ता के साथ रखीं। स्पीनोजा की ख्याति का आधार मृत्यु के बाद छपी उनकी पुस्तक 'एथिक्स' है। उनकी मृत्यु 21 फरवरी 1667 को हो गई।
न आंसू बहाओ, न क्रोध बढ़ाओ, चीजों को समझो।
उम्मीद है तो डर होगा ही, जैसे कि डर है तो उम्मीद होती है।
इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितना महीन काटते हो, चीजों के दो हिस्से हमेशा रहेंगे।
हमारी महत्वाकांक्षाएं अत्यधिक ताकतवर बनने की हमारी लालसाएं ही हैं।
हमारी तमाम खुशियां और गम इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम जिन चीजों से प्रेम करते हैं, उनसे हमारा जुड़ाव कैसा है।
एक चीज सिर्फ इसलिए झूठी नहीं पड़ जाती क्योंकि उसके पक्ष में कई लोग नहीं बोलते।
यह दुनिया ज्यादा सुखी होती अगर लोग अपनी बोलने की क्षमता के जितना ही चुप रहने की क्षमता का भी इस्तेमाल करना जानते।
सारी अच्छी चीजें मुश्किल होने की वजह से हमें अनूठी जान पड़ती है।
लोग सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जबान पर काबू पाने में महसूस करते हैं और अपनी इच्छाओं को अपने शब्दों से कहीं बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं।
बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है अतीत से सबक सीखना।
न आंसू बहाओ, न क्रोध बढ़ाओ, चीजों को समझो।
उम्मीद है तो डर होगा ही, जैसे कि डर है तो उम्मीद होती है।
इससे फर्क नहीं पड़ता कि तुम कितना महीन काटते हो, चीजों के दो हिस्से हमेशा रहेंगे।
हमारी महत्वाकांक्षाएं अत्यधिक ताकतवर बनने की हमारी लालसाएं ही हैं।
हमारी तमाम खुशियां और गम इस बात पर निर्भर करते हैं कि हम जिन चीजों से प्रेम करते हैं, उनसे हमारा जुड़ाव कैसा है।
एक चीज सिर्फ इसलिए झूठी नहीं पड़ जाती क्योंकि उसके पक्ष में कई लोग नहीं बोलते।
यह दुनिया ज्यादा सुखी होती अगर लोग अपनी बोलने की क्षमता के जितना ही चुप रहने की क्षमता का भी इस्तेमाल करना जानते।
सारी अच्छी चीजें मुश्किल होने की वजह से हमें अनूठी जान पड़ती है।
लोग सबसे ज्यादा मुश्किल अपनी जबान पर काबू पाने में महसूस करते हैं और अपनी इच्छाओं को अपने शब्दों से कहीं बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं।
बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है अतीत से सबक सीखना।
सबसे मुश्किल काम है, खुद को धोखा न देना
ऑट्रियन मूल के दार्शनिक विट्गेन्स्टाइन का जन्म 26 अप्रैल, 1889 को हुआ था। विट्गेन्स्टाइन ने दर्शन पर भाषा के नजरिए से बहुत गहरा चिंतन किया जिसका असर उनके बाद के दार्शनिक चिंतन की शब्दावली पर साफ देखा जा सकता है। 29 अप्रैल, 1951 में 62 साल की आयु में मरने तक उनकी महज एक किताब ही छपी थी। उनकी ख्याति का आधार मरणोपरांत छपी किताब फिलॉसफिकल इंवेस्टिगेशन है।
उनकी कही कुछ बातें...
-आपके भूल स्वीकार का तभी कोई मतलब है जब वह आपके भावी जीवन में फिर न दुहराई जाए।
-आपको नापसंद करने वाले व्यक्ति से मेलजोल बढ़ाने के लिए आपको मिलनसार होने के साथ-साथ व्यवहारकुशल भी होना चाहिए।
-प्रत्येक वह चीज जो कर्मकांड हो, को पूरी तरह छोड़ना होगा, क्योंकि वह शीघ्र ही सड़ जाती है।
-हमारे देखने का नजरिया चीजों को हमारे लिए प्रिय और इस तरह बहुमूल्य भी बनाती है।
-प्रेम मनुष्य का सबसे बड़ा सुख है।
-चतुराई की ऊसर पहाडि़यों पर रुक जाने की बजाय मूर्खता की हरी-भरी घाटियों में विचरण करना कहीं अच्छा है।
-यदि सपने हमारी नींद की सुरक्षा करते हैं तो वही सपने कभी-कभी नींद को हराम भी कर देते हैं।
-प्रतिभा का पैमाना तो चरित्र है, हालांकि चरित्र अपने आपसे प्रतिभा नहीं बन जाता।
-अपने आप को धोखा न देना सबसे मुश्किल काम होता है।
-वह व्यक्ति जो ज्ञानी है उसके लिए झूठ बोलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
-कोई भी व्यक्ति अपने आपको सचमुच में गया-गुजरा नहीं कहता। यदि मैं ऐसा कहूं और यह सच भी हो तो भी यह ऐसा सच नहीं है जिसे मैं खुद मानूं, अन्यथा या तो मैं पागल हो जाऊंगा या अपने आपको बदल दूंगा।
-शक्ति और संपत्ति एक ही चीज नहीं है। भले ही संपत्ति हमें शक्ति भी दिलाती हो।
-रविवार केवल आराम और मनोरंजन का दिन नहीं होता। इस दिन हमें अपने कार्यों की गहरी समीक्षा करनी चाहिए।
उनकी कही कुछ बातें...
-आपके भूल स्वीकार का तभी कोई मतलब है जब वह आपके भावी जीवन में फिर न दुहराई जाए।
-आपको नापसंद करने वाले व्यक्ति से मेलजोल बढ़ाने के लिए आपको मिलनसार होने के साथ-साथ व्यवहारकुशल भी होना चाहिए।
-प्रत्येक वह चीज जो कर्मकांड हो, को पूरी तरह छोड़ना होगा, क्योंकि वह शीघ्र ही सड़ जाती है।
-हमारे देखने का नजरिया चीजों को हमारे लिए प्रिय और इस तरह बहुमूल्य भी बनाती है।
-प्रेम मनुष्य का सबसे बड़ा सुख है।
-चतुराई की ऊसर पहाडि़यों पर रुक जाने की बजाय मूर्खता की हरी-भरी घाटियों में विचरण करना कहीं अच्छा है।
-यदि सपने हमारी नींद की सुरक्षा करते हैं तो वही सपने कभी-कभी नींद को हराम भी कर देते हैं।
-प्रतिभा का पैमाना तो चरित्र है, हालांकि चरित्र अपने आपसे प्रतिभा नहीं बन जाता।
-अपने आप को धोखा न देना सबसे मुश्किल काम होता है।
-वह व्यक्ति जो ज्ञानी है उसके लिए झूठ बोलना बेहद मुश्किल हो जाता है।
-कोई भी व्यक्ति अपने आपको सचमुच में गया-गुजरा नहीं कहता। यदि मैं ऐसा कहूं और यह सच भी हो तो भी यह ऐसा सच नहीं है जिसे मैं खुद मानूं, अन्यथा या तो मैं पागल हो जाऊंगा या अपने आपको बदल दूंगा।
-शक्ति और संपत्ति एक ही चीज नहीं है। भले ही संपत्ति हमें शक्ति भी दिलाती हो।
-रविवार केवल आराम और मनोरंजन का दिन नहीं होता। इस दिन हमें अपने कार्यों की गहरी समीक्षा करनी चाहिए।
सबके साथ वैसा बर्ताव करो, जैसा खुद के लिए चाहते हो
पैगंबर मोहम्मद का जन्म 570 ईस्वी में मक्का में हुआ था। इन्होंने पढ़ाई-लिखाई बिल्कुल नहीं की, इसलिए इन्हें उम्मी कहा जाता है। जब वह 40 बरस के थे तो अल्लाह के फरिश्ते जिबरइल के जरिए अल्लाह ने अपना पैगाम पैगंबर को भेजा, जिसे पैगंबर ने दुनिया के सामने रखा। बाद में खलीफा अबू बकर ने पैगंबर के पैगामों को एक पुस्तक की शक्ल दी जिसे पवित्र कुरानशरीफ कहा जाता है। कुरान का मूल संदेश है कि अपने रब को हमेशा याद करो, जिसने तुम्हें पैदा किया और सारा संसार बनाया।
- हमेशा सच बोलो और ईमानदारी बरतो। सिर्फ रुपये-पैसे की नहीं, रिश्ते-नातों में भी ईमानदारी बरतो।
- पड़ोसियों का ध्यान रखो। उन्हें भूखा और दुखी न रहने दो। इसमें यह नहीं देखना कि वह किस जात, समाज व धर्म का है। औरत हो या मर्द या बच्चे, सभी की मदद करो।
- जो यतीम हों, जिन के सिर पर बाप का साया न हो, उनसे प्रेम से पेश आओ। ऐसे बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरने या सहलाने से तुम्हें बेहद पुण्य मिलेगा।
- विधवाओं का पूरा ध्यान रखो। अगर कोई एक विधवा का भी ध्यान रखता है तो उसे पूरी उम्र इबादत में लगाने और पूरी उम्र रोजे रखने के बराबर फल मिलेगा।
- औरतों का हक अदा करो। इनका ध्यान रखो और देखभाल करो। मां, बीवी, बहन व लड़कियों का ख्याल रखो व सेवा करो, वरना तुम्हें अल्लाह के घर में जवाब देना पड़ेगा।
- अपने मां-बाप की आज्ञा का पालन करो, उनकी देखभाल और सेवा करो।
- बच्चों को हमेशा तालीम दिलाओ कि वे बड़ों की इज्जत करना और छोटों व गरीबों से प्रेम करना सीखें।
- हमेशा अपने से नीचे वालों को देखकर जीवन जियो। अपने से ऊपर वालों को देखकर जीने से भटक जाओगे।
- जेहाद का असली मतलब अपने मन की कामनाओं और वासनाओं को मारना और उन पर जीत पाना है।
- शिक्षा जिस किसी से भी मिले ले लो, चाहे वह मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम।
- हरेक के साथ वैसा ही बर्ताव करो, जैसा तुम अपने लिए चाहते हो। अपनी जुबान पर नियंत्रण बनाए रखना इसके लिए बहुत जरूरी है।
- हर काम का फल नीयत के अनुसार ही मिलता है। हर काम अल्लाह के लिए करो। दान-पुण्य आदि प्रशंसा पाने के लिए मत करो।
- धर्म के मामले में जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। हरेक को अपनी मर्जी से धर्म अपनाने का हक है। धर्म के मामले में लड़ाई नहीं होनी चाहिए।
- हमेशा सच बोलो और ईमानदारी बरतो। सिर्फ रुपये-पैसे की नहीं, रिश्ते-नातों में भी ईमानदारी बरतो।
- पड़ोसियों का ध्यान रखो। उन्हें भूखा और दुखी न रहने दो। इसमें यह नहीं देखना कि वह किस जात, समाज व धर्म का है। औरत हो या मर्द या बच्चे, सभी की मदद करो।
- जो यतीम हों, जिन के सिर पर बाप का साया न हो, उनसे प्रेम से पेश आओ। ऐसे बच्चे के सिर पर प्यार से हाथ फेरने या सहलाने से तुम्हें बेहद पुण्य मिलेगा।
- विधवाओं का पूरा ध्यान रखो। अगर कोई एक विधवा का भी ध्यान रखता है तो उसे पूरी उम्र इबादत में लगाने और पूरी उम्र रोजे रखने के बराबर फल मिलेगा।
- औरतों का हक अदा करो। इनका ध्यान रखो और देखभाल करो। मां, बीवी, बहन व लड़कियों का ख्याल रखो व सेवा करो, वरना तुम्हें अल्लाह के घर में जवाब देना पड़ेगा।
- अपने मां-बाप की आज्ञा का पालन करो, उनकी देखभाल और सेवा करो।
- बच्चों को हमेशा तालीम दिलाओ कि वे बड़ों की इज्जत करना और छोटों व गरीबों से प्रेम करना सीखें।
- हमेशा अपने से नीचे वालों को देखकर जीवन जियो। अपने से ऊपर वालों को देखकर जीने से भटक जाओगे।
- जेहाद का असली मतलब अपने मन की कामनाओं और वासनाओं को मारना और उन पर जीत पाना है।
- शिक्षा जिस किसी से भी मिले ले लो, चाहे वह मुस्लिम हो या गैर-मुस्लिम।
- हरेक के साथ वैसा ही बर्ताव करो, जैसा तुम अपने लिए चाहते हो। अपनी जुबान पर नियंत्रण बनाए रखना इसके लिए बहुत जरूरी है।
- हर काम का फल नीयत के अनुसार ही मिलता है। हर काम अल्लाह के लिए करो। दान-पुण्य आदि प्रशंसा पाने के लिए मत करो।
- धर्म के मामले में जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। हरेक को अपनी मर्जी से धर्म अपनाने का हक है। धर्म के मामले में लड़ाई नहीं होनी चाहिए।
जो सबका दोस्त होता है, वह असल में किसी का दोस्त नहीं होता
फ्रेंडशिप डे मनाने की परंपरा की शुरुआत 1935 में हुई जब अमेरिकी कांग्रेस ने अगस्त के पहले संडे को दोस्तों के सम्मान में मनाने का प्रस्ताव पारित किया। धीरे-धीरे ऐसे आयोजन दुनिया के दूसरे देश भी करने लगे और इसी के चलते बाद में इस दिन को इंटरनैशनल फ्रेंडशिप डे कहा जाने लगा। 1997 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने जाने-माने कार्टून कैरेक्टर विनी : द पूह को फ्रेंडशिप का वर्ल्ड ऐंबैसडर घोषित किया।
- जो सबका दोस्त होता है, वह असल में किसी का भी दोस्त नहीं होता।
- दोस्ती की झप्पी बड़ी कीमती होती है, जितना प्यार और आदर आप देते हैं, वह आपको उसी रूप में मिल जाता है।
- सभी से नम्रता से पेश आओ पर नजदीकियां (दोस्ती) कम ही लोगों से बढ़ाओ। और उन कम लोगों पर भी पूरा भरोसा तभी करो, जब आप उन्हें अच्छी तरह परख चुके हो।
- बिजनस के जरिए बनी दोस्ती दोस्ती के जरिए होने वाले बिजनस से कहीं बेहतर है।
- आपका दोस्त वह शख्स है जो आपके बारे में सब कुछ जानता है और फिर भी आपको हमेशा पसंद करता है।
- दोस्त क्या है? एक आत्मा है, जो एक साथ दो शरीरों में रहती है।
- किसी दुश्मन को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उसे दोस्त बना लो।
- अगर आप ऐसा दोस्त तलाश रहे हैं जिसमें कोई कमी न हो, तो आपको बिना दोस्त के ही गुजारा करना होगा।
- दोस्ती बिना पंखों का प्यार है।
- एक दोस्त 10 हजार रिश्तेदारों के बराबर है।
- किताबें और दोस्त बहुत कम, लेकिन चुनिंदा होने चाहिए।
- अच्छे दोस्तों को ढूंढना मुश्किल होता है, उन्हें छोड़ना और भी ज्यादा मुश्किल होता है और उनकी यादों को भुला देना तो नामुमकिन होता है।
- जो सबका दोस्त होता है, वह असल में किसी का भी दोस्त नहीं होता।
- दोस्ती की झप्पी बड़ी कीमती होती है, जितना प्यार और आदर आप देते हैं, वह आपको उसी रूप में मिल जाता है।
- सभी से नम्रता से पेश आओ पर नजदीकियां (दोस्ती) कम ही लोगों से बढ़ाओ। और उन कम लोगों पर भी पूरा भरोसा तभी करो, जब आप उन्हें अच्छी तरह परख चुके हो।
- बिजनस के जरिए बनी दोस्ती दोस्ती के जरिए होने वाले बिजनस से कहीं बेहतर है।
- आपका दोस्त वह शख्स है जो आपके बारे में सब कुछ जानता है और फिर भी आपको हमेशा पसंद करता है।
- दोस्त क्या है? एक आत्मा है, जो एक साथ दो शरीरों में रहती है।
- किसी दुश्मन को खत्म करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि उसे दोस्त बना लो।
- अगर आप ऐसा दोस्त तलाश रहे हैं जिसमें कोई कमी न हो, तो आपको बिना दोस्त के ही गुजारा करना होगा।
- दोस्ती बिना पंखों का प्यार है।
- एक दोस्त 10 हजार रिश्तेदारों के बराबर है।
- किताबें और दोस्त बहुत कम, लेकिन चुनिंदा होने चाहिए।
- अच्छे दोस्तों को ढूंढना मुश्किल होता है, उन्हें छोड़ना और भी ज्यादा मुश्किल होता है और उनकी यादों को भुला देना तो नामुमकिन होता है।
जमाने के हिसाब से चलना ही बेहतर
लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर 1875 को गुजरात में लेवा जाति में हुआ। माना जाता है कि इस जाति के लोग भगवान राम के पुत्र लव के वंशज हैं। उनके पिता का नाम झवेर भाई और माता का नाम लाड़बाई था। आजादी की लड़ाई और फिर आजादी के बाद बनी सरकार में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वह आजाद भारत के पहले उप प्रधानमंत्री थे। उन्हें देश की 550 से ज्यादा रियासतों को भारतीय गणराज्य में मिलाने के लिए जाना जाता है। 15 दिसंबर 1950 को उनका देहांत हो गया।
उनके द्वारा कही गईं कुछ प्रमुख बातें
- हमें आज का जमाना पहचान लेना चाहिए और जमाने को पहचानकर उसी के मुताबिक चलना चाहिए। जो शख्स समय नहीं पहचानता, उसे बाद में पछताना पड़ता है।
- कोई आदमी पत्थर को हीरा मानकर उसे लंबे वक्त तक रखे और संकट के वक्त उसे भुनाने जाए और फिर पछताए, तो इसमें पत्थर का क्या दोष? यह तो उस आदमी की समझ की कमी है।
- दुनिया जबर्दस्त स्कूल है। इसकी डिग्रियां जल्दी-जल्दी नहीं मिलतीं।
- आप बिल्कुल सच्ची बात कहें और खुशामद करना छोड़ दें, तो कई काम हो सकते हैं। अगर सामने कुछ कहें और पीछे कुछ और, तो कुछ नहीं हो सकता। इस तरह आत्मा की अधोगति होती है।
- शिक्षक के चरित्र का बड़ा प्रभाव पड़ता है, इसलिए शिक्षक को अपना जीवन निर्मल बनाना चाहिए।
- हम अपने धर्म का पालन करें, तो दुख भरे इस संसार में हम जरूर सुखी होंगे।
- जवानी जाते देर नहीं लगती और गई हुई जवानी कभी वापस नहीं आती। जो शख्स जवानी के एक-एक पल का इस्तेमाल करता है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता।
- बोलने में कभी मर्यादा न छोड़ें। गालियां देना कायरों का काम है।
- लोगों के दिल सुंदर भाषणों से नहीं हिलाए जा सकते और अगर हिलाए भी जा सकते हैं, तो महज पल भर के लिए।
- शहरों में भूखे और बेकार लोग हों, तो वे उपद्रव की जड़ होते हैं। उन्हें बचाना चाहिए। ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए।
- हर स्टूडेंट को किसी एक विषय में संपूर्ण ज्ञान हासिल करना चाहिए। बाकी के विषयों में ज्ञान कम हो तो भी काम चल सकता है, पर सभी विषयों में अपूर्ण होने से काम नहीं चलता।
- अपनी बड़ाई गा-गाकर आदमी बड़ा नहीं हो सकता। इंसान का छोटापन या बड़प्पन उसके काम और व्यवहार से खुद ही जाहिर हो जाता है।
उनके द्वारा कही गईं कुछ प्रमुख बातें
- हमें आज का जमाना पहचान लेना चाहिए और जमाने को पहचानकर उसी के मुताबिक चलना चाहिए। जो शख्स समय नहीं पहचानता, उसे बाद में पछताना पड़ता है।
- कोई आदमी पत्थर को हीरा मानकर उसे लंबे वक्त तक रखे और संकट के वक्त उसे भुनाने जाए और फिर पछताए, तो इसमें पत्थर का क्या दोष? यह तो उस आदमी की समझ की कमी है।
- दुनिया जबर्दस्त स्कूल है। इसकी डिग्रियां जल्दी-जल्दी नहीं मिलतीं।
- आप बिल्कुल सच्ची बात कहें और खुशामद करना छोड़ दें, तो कई काम हो सकते हैं। अगर सामने कुछ कहें और पीछे कुछ और, तो कुछ नहीं हो सकता। इस तरह आत्मा की अधोगति होती है।
- शिक्षक के चरित्र का बड़ा प्रभाव पड़ता है, इसलिए शिक्षक को अपना जीवन निर्मल बनाना चाहिए।
- हम अपने धर्म का पालन करें, तो दुख भरे इस संसार में हम जरूर सुखी होंगे।
- जवानी जाते देर नहीं लगती और गई हुई जवानी कभी वापस नहीं आती। जो शख्स जवानी के एक-एक पल का इस्तेमाल करता है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता।
- बोलने में कभी मर्यादा न छोड़ें। गालियां देना कायरों का काम है।
- लोगों के दिल सुंदर भाषणों से नहीं हिलाए जा सकते और अगर हिलाए भी जा सकते हैं, तो महज पल भर के लिए।
- शहरों में भूखे और बेकार लोग हों, तो वे उपद्रव की जड़ होते हैं। उन्हें बचाना चाहिए। ऐसे लोगों की मदद करनी चाहिए।
- हर स्टूडेंट को किसी एक विषय में संपूर्ण ज्ञान हासिल करना चाहिए। बाकी के विषयों में ज्ञान कम हो तो भी काम चल सकता है, पर सभी विषयों में अपूर्ण होने से काम नहीं चलता।
- अपनी बड़ाई गा-गाकर आदमी बड़ा नहीं हो सकता। इंसान का छोटापन या बड़प्पन उसके काम और व्यवहार से खुद ही जाहिर हो जाता है।
सुख के लम्हे गिनें, दुख घटेगा :दोस्तोयवस्की
जाने-माने नॉवेलिस्ट और कहानीकार फियोदर दोस्तोयवस्की का जन्म 1821 में मॉस्को में हुआ था। क्राइम ऐंड पनिशमेंट और द इडियट उनके बेहद पॉप्युलर उपन्यास हैं। दोस्तोयवस्की ने 19वीं सदी के रूसी समाज में इंसानी मनोविज्ञान को गहराई से जांचा-परखा। विश्व साहित्य में उन्हें एक बड़ा साइकॉलजिस्ट भी माना जाता है। 1881 में उनका निधन हो गया।
- असली शख्स वही है जो सब कुछ लुट जाने के बाद किसी तरह का भाव जाहिर नहीं करता। किसी शख्स के लिए पैसे की अहमियत इतनी कम होनी चाहिए कि वह उसे किसी भी हालत में परेशान न कर सके।
- अगर लोग सार्थक काम करना छोड़ देंगे, तो इसका मतलब है कि उनके जीने की वजह ही खत्म हो गई।
- किसी को प्रेम करने का मतलब है, उसे उस रूप में देखना और स्वीकार लेना है जिस रूप में उसे ईश्वर ने बनाया है।
- इंसान को अपने दुखों को गिनने का शौक होता है, लेकिन वह उन लम्हों को नहीं गिनता, जिनमें उसे सुख मिला। अगर वह दुखों की तरह सुख के पलों को भी गिनना शुरू कर दे तो उसे अहसास होगा कि हर लम्हे ने उसे कोई न कोई खुशी दी है।
- किसी शख्स की हंसी से आप उसके बारे में जान सकते हैं। किसी शख्स के बारे में आप कुछ भी नहीं जानते और उसका हंसना आप पसंद करते हैं तो आप दावे से कह सकते हैं कि वह अच्छा शख्स है।
- जो शख्स महीने में कम-से-कम एक बार खुद को मूर्ख समझता है, वही मेरी नजर में सबसे ज्यादा अक्लमंद है। दुखों की जड़ को पहचान लेना ही सबसे बड़ा सुख है।
- उम्मीद के बगैर जीने का मतलब है जीना बंद कर देना।
- कोई भी विषय इतना पुराना कभी नहीं होता कि उसके बारे में कोई नई बात न कही जा सके।
- इंसान के दिमाग में तमाम ऐसी बातें होती हैं, जि
- असली शख्स वही है जो सब कुछ लुट जाने के बाद किसी तरह का भाव जाहिर नहीं करता। किसी शख्स के लिए पैसे की अहमियत इतनी कम होनी चाहिए कि वह उसे किसी भी हालत में परेशान न कर सके।
- अगर लोग सार्थक काम करना छोड़ देंगे, तो इसका मतलब है कि उनके जीने की वजह ही खत्म हो गई।
- किसी को प्रेम करने का मतलब है, उसे उस रूप में देखना और स्वीकार लेना है जिस रूप में उसे ईश्वर ने बनाया है।
- इंसान को अपने दुखों को गिनने का शौक होता है, लेकिन वह उन लम्हों को नहीं गिनता, जिनमें उसे सुख मिला। अगर वह दुखों की तरह सुख के पलों को भी गिनना शुरू कर दे तो उसे अहसास होगा कि हर लम्हे ने उसे कोई न कोई खुशी दी है।
- किसी शख्स की हंसी से आप उसके बारे में जान सकते हैं। किसी शख्स के बारे में आप कुछ भी नहीं जानते और उसका हंसना आप पसंद करते हैं तो आप दावे से कह सकते हैं कि वह अच्छा शख्स है।
- जो शख्स महीने में कम-से-कम एक बार खुद को मूर्ख समझता है, वही मेरी नजर में सबसे ज्यादा अक्लमंद है। दुखों की जड़ को पहचान लेना ही सबसे बड़ा सुख है।
- उम्मीद के बगैर जीने का मतलब है जीना बंद कर देना।
- कोई भी विषय इतना पुराना कभी नहीं होता कि उसके बारे में कोई नई बात न कही जा सके।
- इंसान के दिमाग में तमाम ऐसी बातें होती हैं, जि
ऊंचाइयों की ओर देखो, इरादों को पंख लग जाएंगे : फलाबेर
गुस्ताव फलाबेर को 19वीं सदी के महानतम लेखकों में से एक माना जाता है। उनका जन्म फ्रांस में 1821 में हुआ था। उन्हें उनके उपन्यासों ने दुनिया भर में प्रसिद्ध दिलाई। मैडम बावेरी नाम का उनका उपन्यास प्रकाशन के डेढ़ सौ साल से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी लोगों और लेखकों के लिए समान रूप से चर्चा और प्रेरणा का विषय रहा है। फ्लाबेर को इन अर्थों में पहला आधुनिक उपन्यासकार भी कहा जा सकता है। 58 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।
- किसी की याद से सुंदर बात कोई हो नहीं सकती, यादें बतलाती हैं कि आप हर चंद उसकी कमी महसूस करते हैं।
- मुझे यकीन है कि वह व्यक्ति जो आसमानी ऊंचाइयों की ओर देखता है, उसके इरादों को एक दिन पंख जरूर लग जाते हैं।
- सचाई आदर्श का पालन नहीं करती, बल्कि आदर्श कैसा हो यह तय कर देती है।
- सचाई आपने आप में कुछ नहीं होती सिवाय एक अनुभव के।
- मूर्खता से ठोस कोई दूसरी चीज आपको शायद ही मिलेगी। किसी में यह पनप जाए, तो हिलाए नहीं हिलती। आप इसकी सख्ती के आगे पस्त हो जाएंगे, यह टस से मस नहीं होगी।
- आपकी जिंदगी के वे लमहे ही खुशी के नहीं हैं, जब आप सफल होते हैं। सबसे ज्यादा खुशी तब मिलती है जब आप नकार दिए जाने के बाद की हताशा में भी भावी जीवन की चुनौतियों से उलझना बंद नहीं करते।
- किसी आदमी के महत्व को आंकना हो, तो यह जानने की कोशिश कीजिए कि उसके दुश्मन कितने हैं।
- जब उम्मीद की लौ मद्धिम पड़े, तो यकीन करना कीजिए, जब यकीन से कोई बात शुरू हो तो संदेह का दामन थाम लीजिए।
- दिन के अंत तक हर वह चीज अच्छी लगने लगती है जिसे हम एकटक देखते हैं।
- प्रेम वसंत ऋतु में बढ़ने वाला पौधा है जो उम्मीद की खुशबू फैलाता है।
- सभी झूठों में कला का झूठ सबसे कम झूठ है।
- वह शख्स जो किसी काम में दिन-रात भिड़ा है, संभव है, वह उसमें महारत हासिल कर ले, लेकिन यही बात वह दिन-रात जो सोचता है, उस पर लागू नहीं होती।
- किसी की याद से सुंदर बात कोई हो नहीं सकती, यादें बतलाती हैं कि आप हर चंद उसकी कमी महसूस करते हैं।
- मुझे यकीन है कि वह व्यक्ति जो आसमानी ऊंचाइयों की ओर देखता है, उसके इरादों को एक दिन पंख जरूर लग जाते हैं।
- सचाई आदर्श का पालन नहीं करती, बल्कि आदर्श कैसा हो यह तय कर देती है।
- सचाई आपने आप में कुछ नहीं होती सिवाय एक अनुभव के।
- मूर्खता से ठोस कोई दूसरी चीज आपको शायद ही मिलेगी। किसी में यह पनप जाए, तो हिलाए नहीं हिलती। आप इसकी सख्ती के आगे पस्त हो जाएंगे, यह टस से मस नहीं होगी।
- आपकी जिंदगी के वे लमहे ही खुशी के नहीं हैं, जब आप सफल होते हैं। सबसे ज्यादा खुशी तब मिलती है जब आप नकार दिए जाने के बाद की हताशा में भी भावी जीवन की चुनौतियों से उलझना बंद नहीं करते।
- किसी आदमी के महत्व को आंकना हो, तो यह जानने की कोशिश कीजिए कि उसके दुश्मन कितने हैं।
- जब उम्मीद की लौ मद्धिम पड़े, तो यकीन करना कीजिए, जब यकीन से कोई बात शुरू हो तो संदेह का दामन थाम लीजिए।
- दिन के अंत तक हर वह चीज अच्छी लगने लगती है जिसे हम एकटक देखते हैं।
- प्रेम वसंत ऋतु में बढ़ने वाला पौधा है जो उम्मीद की खुशबू फैलाता है।
- सभी झूठों में कला का झूठ सबसे कम झूठ है।
- वह शख्स जो किसी काम में दिन-रात भिड़ा है, संभव है, वह उसमें महारत हासिल कर ले, लेकिन यही बात वह दिन-रात जो सोचता है, उस पर लागू नहीं होती।
जीवन खर्च करने के लिए हैः डी.एच. लॉरेंस
अंग्रेजी के चर्चित लेखक डी. एच. लॉरेंस का जन्म 11 सितंबर को 1885 में हुआ था। लॉरेंस के उपन्यास और कविताएं बीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में चर्चा के केंद्र में रहे। लॉरेंस की मौत 44 साल की उम्र में फ्रांस में हुई। तब वे लेडी चैटर्लीज लवर्स जैसा उपन्यास लिखकर खासे विवाद में थे। पेश हैं उनके विचार...
-जीवन खर्च करने के लिए है, रेजगारी की तरह बचाए रखने के लिए नहीं।
-मेरा जीवन जीने में बहुत गहरा यकीन है ताकि रात को जब सोऊं तो किसी तरह का मलाल न रहे।
-हमारी आत्मा को रोटी से ज्यादा सुंदरता की दरकार होती है।
-अपनी प्रकृति को अच्छी तरह पहचाने की सबसे बेहतर सीख हमें जानवरों से मिलती है।
-मैं आजमा कर देखने में यकीन रखता हूं ताकि चीजों के प्रति अपनी नापसंदगी को जान सकूं।
-हमेशा अपने को दुनिया के बनाए मानकों में किसी तरह अंटाने की बजाय दुनिया का अपने मानकों के भीतर अंटाओ।
-हम सब एक तरह से झूठे हैं, क्योंकि हमारे आज का सच आने वाले कल में झूठ साबित हो जाता है।
-जब मैं आज के किसी आदमी के मुंह से यह सुनता हूं कि वह अकेला महसूस कर रहा है तो मुझे पता लग जाता है कि दरअसल उसने वह दुनिया खो दी है जो उसने अपने लिए बनाई थी।
-जो आंखें नहीं देख पाती, दिमाग जिसे जज्ब नहीं कर पाता, वह बात उस आदमी के लिए होती ही नहीं।
-इंसान सबसे जिज्ञासु प्राणी है। उसे लगता है कि उसकी एक आत्मा भी है। सच यह है कि एक इंसान की उसकी दर्जन भर से ज्यादा तो आत्माएं होती हैं।
-सपने विचारों से निकले हैं या विचार सपनों की उपज हैं, यह कहना मुश्किल है।
-जीवन खर्च करने के लिए है, रेजगारी की तरह बचाए रखने के लिए नहीं।
-मेरा जीवन जीने में बहुत गहरा यकीन है ताकि रात को जब सोऊं तो किसी तरह का मलाल न रहे।
-हमारी आत्मा को रोटी से ज्यादा सुंदरता की दरकार होती है।
-अपनी प्रकृति को अच्छी तरह पहचाने की सबसे बेहतर सीख हमें जानवरों से मिलती है।
-मैं आजमा कर देखने में यकीन रखता हूं ताकि चीजों के प्रति अपनी नापसंदगी को जान सकूं।
-हमेशा अपने को दुनिया के बनाए मानकों में किसी तरह अंटाने की बजाय दुनिया का अपने मानकों के भीतर अंटाओ।
-हम सब एक तरह से झूठे हैं, क्योंकि हमारे आज का सच आने वाले कल में झूठ साबित हो जाता है।
-जब मैं आज के किसी आदमी के मुंह से यह सुनता हूं कि वह अकेला महसूस कर रहा है तो मुझे पता लग जाता है कि दरअसल उसने वह दुनिया खो दी है जो उसने अपने लिए बनाई थी।
-जो आंखें नहीं देख पाती, दिमाग जिसे जज्ब नहीं कर पाता, वह बात उस आदमी के लिए होती ही नहीं।
-इंसान सबसे जिज्ञासु प्राणी है। उसे लगता है कि उसकी एक आत्मा भी है। सच यह है कि एक इंसान की उसकी दर्जन भर से ज्यादा तो आत्माएं होती हैं।
-सपने विचारों से निकले हैं या विचार सपनों की उपज हैं, यह कहना मुश्किल है।
दिल से कही बात पर दिमाग को ऐतराज
मिलान कुंदेरा का जन्म चेकोस्लोवाकिया में 1 अप्रैल, 1929 को हुआ था। उन्होंने चेक में लिखना शुरू किया था लेकिन राजनीतिक मतभेदों के चलते उन्हें अपने देश से ही बेदखल होना पड़ा। बाद में उन्होंने फ्रांस में न सिर्फ शरण ली बल्कि फ्रेंच में लिखने लगे। उन्हें उनके उपन्यासों के लिए प्रसिद्धि मिली।
-जब आप कोई बात दिल से कहते हैं तो, दिमाग को ऐतराज करने में हिचक होती है।
-प्यार एक किस्म का इंतजार है, जब मिलता है तो लगता है अपने ही खो चुके अधूरे हिस्से को पाया हो।
-सत्ता के खिलाफ आदमी की लड़ाई असल में भूल जाने की आदत के खिलाफ याद दिलाते रहने की जिद है।
-हमें अपने आनेवाले कल को यादों के बोझ से दबने से बचाते रहना चाहिए।
-शर्मिंदगी की सबसे बड़ी वजह यह नहीं की हमने कोई गलती की होती है, वह दरअसल उस अपमान से पैदा होती है जो दूसरे करने से नहीं चूकते।
-उस जीवन का कोई मतलब नहीं जो पहली बार सिर्फ जीवन कैसा हो इसकी रिहर्सल बन कर रह जाए।
-खुद को दरकिनार कर दिए जाने के लिए हम अक्सर दूसरों को कोसते हैं, सच यह है कि उसके जिम्मेदार हम खुद होते हैं।
-हमें अपनी उम्र का खयाल कुछ खास लमहों में ही आता है, ज्यादातर वक्त लोग उम्र से बाहर जीते हैं।
-एक ऐसी दुनिया में रहना जहां किसी को कोई माफी न मिले, नरक में बसर करने जैसा है।
-सबसे बचकाने लगने वाले सवाल ही सबसे संजीदा सवाल होते हैं।
-जो लोग अपनी छतों पर खडे़ होकर जोर-जोर से अपनी खुशी का इजहार करते हैं, वे अमूमन सबसे ज्यादा उदास लोग होते हैं।
-हम एक दिन मर जाएंगे, यह एक बहुत बुनियादी अहसास है, फिर भी ज्यादातर इंसान इसे स्वीकार करने, इसे समझने और इसके मुताबिक जीवन जीने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाते।
-जब आप कोई बात दिल से कहते हैं तो, दिमाग को ऐतराज करने में हिचक होती है।
-प्यार एक किस्म का इंतजार है, जब मिलता है तो लगता है अपने ही खो चुके अधूरे हिस्से को पाया हो।
-सत्ता के खिलाफ आदमी की लड़ाई असल में भूल जाने की आदत के खिलाफ याद दिलाते रहने की जिद है।
-हमें अपने आनेवाले कल को यादों के बोझ से दबने से बचाते रहना चाहिए।
-शर्मिंदगी की सबसे बड़ी वजह यह नहीं की हमने कोई गलती की होती है, वह दरअसल उस अपमान से पैदा होती है जो दूसरे करने से नहीं चूकते।
-उस जीवन का कोई मतलब नहीं जो पहली बार सिर्फ जीवन कैसा हो इसकी रिहर्सल बन कर रह जाए।
-खुद को दरकिनार कर दिए जाने के लिए हम अक्सर दूसरों को कोसते हैं, सच यह है कि उसके जिम्मेदार हम खुद होते हैं।
-हमें अपनी उम्र का खयाल कुछ खास लमहों में ही आता है, ज्यादातर वक्त लोग उम्र से बाहर जीते हैं।
-एक ऐसी दुनिया में रहना जहां किसी को कोई माफी न मिले, नरक में बसर करने जैसा है।
-सबसे बचकाने लगने वाले सवाल ही सबसे संजीदा सवाल होते हैं।
-जो लोग अपनी छतों पर खडे़ होकर जोर-जोर से अपनी खुशी का इजहार करते हैं, वे अमूमन सबसे ज्यादा उदास लोग होते हैं।
-हम एक दिन मर जाएंगे, यह एक बहुत बुनियादी अहसास है, फिर भी ज्यादातर इंसान इसे स्वीकार करने, इसे समझने और इसके मुताबिक जीवन जीने के लिए खुद को तैयार नहीं कर पाते।
जिंदगी का कोई लम्हा मामूली नहीं होता
हमारी जिंदगी उतार-चढ़ावों से भरी हुई है। हम जिंदगी के बुरे दौर से गुजरते हैं तब उससे निकलना और जब अच्छे दौर में होते हैं तब उस सिलसिले को बरकरार रखना मुश्किल होता है। यहां हम चुनिंदा कोट्स देकर जीने की कुछ राहें रोशन करने की कोशिश कर रहे हैं।
आप उन ऊंचाइयों को पा सकते हैं अगर अपना काम करते हुए इस बात को नजरअंदाज कर दें कि इसकी वाहवाही किसे मिलेगी।
यह बात मायने नहीं रखती कि आप कितना करते हैं, बल्कि लोग इसी बात को ध्यान में रखते हैं कि वह काम आप कितने लगाव और प्यार से करते हैं।
हम वही बनते हैं जिन कामों में हम लगे रहते हैं। इसलिए जिसे लोग किसी की खासियत बताते हैं, वह असल में उसकी आदत होती है।
आप या तो इस बात पर सिर धुन सकते हैं कि गुलाब में कांटे हैं या इस पर खुश हो सकते हैं कि कांटों से भी गुलाब खिलते हैं।
जीवन जीने का दो नजरिया हो सकता है: एक यह कि हम जीवन में हो रही हर चीज को चमत्कार मान लें, दूसरा यह कि हम किसी चमत्कार में यकीन न रख कर काम करते जाएं।
जब एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुल भी जाता है। लेकिन हम बंद दरवाजे पर इतनी देर सिर टिकाए रहते हैं कि बगल में खुला दूसरा दरवाजा हमें दिखता तक नहीं।
जिंदगी का कोई लम्हा मामूली नहीं होता, हर पल वह हमारे लिए कुछ-न-कुछ नया पेश करती रहती है।
यह मत कहते फिरिए कि मैंने दुनिया के लिए बहुत कुछ किया। आपको याद रखना चाहिए कि दुनिया आपसे पहले से थी, आपके बाद भी रहेगी।
दुनिया सिर्फ उस आदमी को रास्ता देती है जो जानता है कि उसे कहां जाना है।
अमीर वह नहीं है, जिसके पास सबसे ज्यादा है, बल्कि वह है, जिसे और कुछ नहीं चाहिए।
पहले आप समय को बर्बाद करते हैं फिर समय आपको बर्बाद करता है।
हमें अपना हर काम इस तरह करना चाहिए, जैसे हम सौ साल तक जीएंगे, पर ईश्वर से रोजाना प्रार्थना ऐसे करनी चाहिए, जैसे कल हमारी जिंदगी का आखिरी दिन हो।
जिसने कभी कोई गलती नहीं की, समझ लीजिए उसने जिंदगी में कोई नई कोशिश नहीं की।
आप उन ऊंचाइयों को पा सकते हैं अगर अपना काम करते हुए इस बात को नजरअंदाज कर दें कि इसकी वाहवाही किसे मिलेगी।
यह बात मायने नहीं रखती कि आप कितना करते हैं, बल्कि लोग इसी बात को ध्यान में रखते हैं कि वह काम आप कितने लगाव और प्यार से करते हैं।
हम वही बनते हैं जिन कामों में हम लगे रहते हैं। इसलिए जिसे लोग किसी की खासियत बताते हैं, वह असल में उसकी आदत होती है।
आप या तो इस बात पर सिर धुन सकते हैं कि गुलाब में कांटे हैं या इस पर खुश हो सकते हैं कि कांटों से भी गुलाब खिलते हैं।
जीवन जीने का दो नजरिया हो सकता है: एक यह कि हम जीवन में हो रही हर चीज को चमत्कार मान लें, दूसरा यह कि हम किसी चमत्कार में यकीन न रख कर काम करते जाएं।
जब एक दरवाजा बंद होता है तो दूसरा खुल भी जाता है। लेकिन हम बंद दरवाजे पर इतनी देर सिर टिकाए रहते हैं कि बगल में खुला दूसरा दरवाजा हमें दिखता तक नहीं।
जिंदगी का कोई लम्हा मामूली नहीं होता, हर पल वह हमारे लिए कुछ-न-कुछ नया पेश करती रहती है।
यह मत कहते फिरिए कि मैंने दुनिया के लिए बहुत कुछ किया। आपको याद रखना चाहिए कि दुनिया आपसे पहले से थी, आपके बाद भी रहेगी।
दुनिया सिर्फ उस आदमी को रास्ता देती है जो जानता है कि उसे कहां जाना है।
अमीर वह नहीं है, जिसके पास सबसे ज्यादा है, बल्कि वह है, जिसे और कुछ नहीं चाहिए।
पहले आप समय को बर्बाद करते हैं फिर समय आपको बर्बाद करता है।
हमें अपना हर काम इस तरह करना चाहिए, जैसे हम सौ साल तक जीएंगे, पर ईश्वर से रोजाना प्रार्थना ऐसे करनी चाहिए, जैसे कल हमारी जिंदगी का आखिरी दिन हो।
जिसने कभी कोई गलती नहीं की, समझ लीजिए उसने जिंदगी में कोई नई कोशिश नहीं की।
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