एक व्यक्ति हमेशा परेशान और उद्विग्न सा रहता था। उसकी परेशानी मानसिक थी। उसे सर्वोत्तम सौंदर्य की तलाश थी। एक दिन उसने बिना कुछ कहे-सुने चुपचाप घर छोड़ दिया। वह इधर-उधर भटकता रहता और अपने प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करता रहता। इसी तरह बहुत समय बीत गया। एक दिन वह किसी जंगल से गुजर रहा था। वहां उसने एक तपस्वी को साधना करते पाया। वह वहीं ठहर गया। तपस्वी का ध्यान टूटने पर व्यक्ति ने उससे पूछा, 'सर्वोत्तम सौंदर्य क्या है?'
तपस्वी का उत्तर था, 'श्रद्धा ही सबसे सुंदर है, जो मिट्टी को भी भगवान बना देती है।' व्यक्ति संतुष्ट नहीं हुआ। यात्रा के अगले पड़ाव पर उसे एक गुणी सज्जन मिले। उसने अपना यह प्रश्न उनके समक्ष रखा तो वह बोले, 'प्रेम ही सर्वोत्तम सौंदर्य है। प्रेम न हो, तो जीवन की सुंदरता को कुरूपता में बदलते देर नहीं लगती।' व्यक्ति फिर भी संतुष्ट नहीं हुआ। आगे चलकर उसे युद्ध से लौटता सैनिक मिला।
सैनिक से पूछने पर उसका उत्तर था, 'शांति ही सर्वोत्तम सौंदर्य हैं क्योंकि संघर्ष की भयानक विनाशलीला मैं स्वयं देखकर आ रहा हूं।' व्यक्ति अब भी संतुष्ट नहीं था और निराश होकर घर लौट आया। घर के सभी लोग उसकी प्रतीक्षा में व्याकुल हो रहे थे। दुखी पत्नी, और आंसू बहाते अपने बच्चों से मिलकर उस व्यक्ति को अपार सुख का अनुभव हुआ। उसने महसूस किया कि आत्मीयता, स्नेह और श्रद्धा का मिला-जुला सौंदर्य तो घर में ही था और वह व्यर्थ इन्हें बाहर खोजने का प्रयास कर रहा था। घर अपने आप में सभी सौंदर्य को समेटे हुए है।
Friday, November 4, 2011
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