Friday, November 4, 2011

प्रेम का बल

एक मां अपने बेटे की शरारतों से बहुत परेशान रहती थी। वह अपने बेटे को समझाने के लिए उस पर बहुत गुस्सा करती थी लेकिन बच्चा कोई बात नहीं समझता था। बच्चे की हरकतों से वह परेशान रहने लगी। एक दिन वह अपने बेटे को लेकर एक फकीर के पास गई। उसने फकीर से कहा, 'मेरा बेटा बहुत शरारतें करता है। यह उपद्रवी है, आप अगर इसे थोड़ा डरा दें तो हो सकता है, यह ठीक हो जाए।' फकीर ने जब यह सुना तो वह खड़ा होकर अपनी आंखें निकालकर इतनी जोर से चिल्लाया कि वह बच्चा तो भय के मारे भाग ही गया, उसकी मां भी घबराकर बेहोश हो गई। थोड़ी देर बाद बच्चा अपनी मां के पास लौटा। तब तक मां को भी होश आ गया था। मां ने होश में आने पर फकीर से कहा, 'आपने तो हद ही कर दी। मैंने आपसे इतना डराने के लिए तो नहीं कहा था।'

फकीर ने कहा, 'भय का कोई पैमाना नहीं होता। भय तो भय होता है। जब भय दिखाया जाता है तो पता ही नहीं चलता कि उसे कहां रोका जाए।' मां बोली, 'मैंने तो बच्चे को डराने के लिए कहा था, आपने तो मुझे भी डरा दिया।' फकीर बोला, 'भय जब प्रकट होता है तो ऐसा नहीं हो सकता कि वह एक को डराए, दूसरे को न डराए। तुम्हारी क्या बात करें, मैं तो स्वयं भयभीत हो गया था। देखो, जहां भय है वहां प्रेम पैदा नहीं हो सकता। इसलिए अब कभी भी अपने बच्चे को भयभीत करने की कोशिश न करना। सुधारने का काम डर से नहीं, प्रेम से होता है। प्रेम का बल डर के बल से बहुत अधिक होता है। बच्चे को सही रास्ते पर लाना है तो उसके प्रति स्नेह का व्यवहार करो।' उस दिन के बाद मां ने बच्चे पर कभी गुस्सा नहीं किया। अब वह उसे सभी बातें प्यार से समझाने लगी।

No comments:

Post a Comment