Thursday, November 3, 2011

सफलता का मंत्र

एक बार गुरु नानक किसी गांव में प्रवचन कर रहे थे। उन्होंने कहा, 'सफलता के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आशावादी होना चाहिए।' प्रवचन खत्म होने के बाद एक भक्त ने पूछा, 'गुरु जी, क्या किसी चीज की आशा करना ही सफलता की कुंजी है?' नानक ने कहा, 'नहीं, केवल आशा करने से कुछ नहीं मिलता। मगर आशा रखने वाला मनुष्य ही कर्मशील होता है।' उस व्यक्ति ने कहा, 'गुरु जी, आप की गूढ़ बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं।'

उस समय खेतों में गेहूं की कटाई हो रही थी। नानक ने कहा, 'चलो मेरे साथ। तुम्हारे प्रश्न का उत्तर वहीं दूंगा।' नानक उस व्यक्ति को अपने साथ लेकर खेतों की तरफ चले गए। उन्होंने देखा कि एक खेत में दो भाई गेहूं की कटाई कर रहे थे। बड़ा भाई तेजी से कटाई करता आगे था दूसरा भाई पीछे। नानक उस व्यक्ति के साथ वहीं एक आम के पेड़ के नीचे बैठ गए। दोपहर का समय था। छोटा भाई बोला, 'भइया, आज तो पूरी कटाई हो नहीं पाएगी।

अभी तो कटने को बहुत बाकी है। क्यों न कल सुबह आकर काट लेंगे।' बड़े भाई ने कहा, 'अब ज्यादा कहां बचा है। देखता नहीं, थोड़ा ही तो रह गया है। जब हम इन दो कतारों को काट लेंगे तो बाकी बारह कतारें रह जाएंगी। इतना तो आराम से काट लेंगे। कल पर क्यों टालता है।' बड़े भाई की बात सुन कर छोटा भाई जोश में आ गया और उसका हाथ भी तेजी से चलने लगा। नानक ने उस व्यक्ति से कहा, 'तुम्हारे प्रश्न का उत्तर सामने है।

छोटा भाई पहले निराश होकर काम बंद करने को कह रहा था लेकिन बड़े भाई ने उसमें जोश जगाया तो छोटा भाई भी तेजी से कटाई करने लगा। इसे कहते है आशावाद। बड़ा भाई आशावादी था। आशावाद का दूसरा नाम संकल्प है। मन में आशा जगेगी तभी संकल्प करोगे और संकल्प में ही मनुष्य की ताकत छुपी हुई है।'

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