Friday, November 4, 2011

अनोखा पुरस्कार

खलीफा उमर ईमानदारी और सादगी में यकीन करते थे। उनका हुक्म था कि चोगा बनाने के लिए शाही भंडार से सभी लोगों को एक समान कपड़ा दिया जाए। खुद उन्हें भी उससे अलग न रखा जाए। इस हुक्म का कड़ाई से पालन हो। एक बार वह भाषण दे रहे थे। भाषण के दौरान उन्होंने लोगों से पूछा, 'क्या आप लोग हमारे सभी हुक्म मानेंगे?' सभी लोगों ने हाथ उठा कर सहमति जाहिर की, मगर एक महिला ने हाथ नहीं उठाया। खलीफा ने उससे पूछा, 'क्या तुम मेरा हुक्म नहीं मानोगी?' उस महिला ने कहा, 'कभी नहीं।' खलीफा ने पूछा, 'क्यों?' उसने कहा, 'मैं आप का हुक्म कैसे मान सकती हूं, जब आप ने खुद ही अपने आदेश का उल्लंघन किया है।' खलीफा ने कहा, 'मैं कुछ समझा नहीं।'

महिला बोली, 'आप देख लीजिए। आप इतना लंबा चोगा पहने हुए है जबकि मेरे पति का चोगा घुटनों तक ही आता है। इससे जाहिर है कि आप ने शाही भंडार से अपने हिस्से से ज्यादा कपड़ा लिया है।' खलीफा की समझ में कुछ नहीं आया कि क्या कहें। तभी उनके बेटे ने खड़े होकर कहा, 'इसमें खलीफा दोषी नहीं हैं। उन्होंने ज्यादा कपड़ा नहीं लिया है। उनका चोगा बड़ा हो, इसलिए मैंने अपने हिस्से का थोड़ा कपड़ा उन्हें दिया है। देखिए मेरा चोगा सबसे छोटा है।' यह सुन कर महिला बोली, 'मुझसे गलती हुई। मुझे माफ किया जाए।' लेकिन वहां बैठे लोग कहने लगे कि खलीफा का अपमान करने वाले को सख्त से सख्त सजा दी जाए। उनकी बातें सुन खलीफा ने कहा, 'इस महिला ने कोई गलत काम नहीं किया है। यहां जितने लोग बैठे हैं, उनमें एक यही है जिसमें बेखौफ होकर अपनी बात कहने की हिम्मत है। यह महिला मुल्क की अमूल्य धरोहर है। मैं उसके साहस को सलाम करता हूं। आज ऐसे ही लोगों की जरूरत है।' महिला को सजा देने की बात करने वालों के सिर शर्म से झुक गए।

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