Friday, November 4, 2011

सच्चा धर्मगुरु

गुरु अपने कुछ शिष्यों के साथ मेले में गए। उन्होंने देखा कि एक स्थान पर बैठकर कुछ बाबा माला फेर रहे थे। उन्होंने अपने सामने एक चादर भी फैला रखी थी जिस पर आते-जाते लोग सिक्के डाल जाते थे। साधु आंखें बंद करके बैठे रहते जैसे ध्यान में मगन हों। लेकिन बीच-बीच में वे थोड़ी देर के लिए आंखें खोलकर सामने बिछी चादर पर देख लेते कि उस पर कितने पैसे इकट्ठे हुए। उन्हें ऐसा करते देखकर गुरु हंस पड़े। उन्होंने शिष्यों को आगे चलने को कहा। आगे एक तपस्वी शीर्षासन कर रहा था। वहां भी भारी भीड़ जमा थी। उसे देखकर गुरु ने जोर का ठहाका लगाया। फिर वह अपने शिष्यों को लेकर आगे चल पड़े। आगे एक पंडितजी भागवत कथा सुना रहे थे। उनके सामने चेलों की जमात बैठी थी। बीच-बीच में जयकारे लगते और कीर्तन भी होने लगता। बार-बार कथा के अयोजक लोगों से श्रद्धा-भक्तिपूर्वक दान देने की अपील करते। कथा के कार्यकर्ता दानपात्र लेकर श्रोताओं के बीच में घूमने भी लगते और कथा सुनने वाले भक्त उस पात्र में कुछ न कुछ डालते। उन्हें देखकर गुरु फिर खिलखिलाकर हंसे।

उससे आगे एक कैंप में एक डॉक्टर रोगियों की सेवा में लगा था। गुरु कुछ देर वहां रुके रहे। उनकी आंखों में आंसू आ गए। आश्रम लौटने पर शिष्यों ने गुरु से पहले तीन स्थानों पर हंसने और चौथे स्थान पर रोने का कारण पूछा, तो गुरु ने उत्तर दिया, 'आज माला, आसन, प्राणायाम और भागवत कथा को ही धर्म समझकर अधिकतर लोग ढोंग कर रहे हैं। यह देखकर हंसी आ गई, जबकि भगवान का काम करने वाला बस एक डॉक्टर दिखा। यह देखकर दुख हुआ कि लोग धर्म के वास्तविक अर्थ को न जाने कब समझेंगे? सच्चा धर्म संसार की सेवा करना और उसे सुधारना है, जप तप करना नहीं।' गुरु की बातों में सभी शिष्यों को अपने प्रश्न के उत्तर के साथ-साथ धर्म के वास्तविक अर्थ को समझने का सूत्र भी मिला।

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