बुद्ध सारनाथ के एकांत जंगल में कुछ शिष्यों के साथ बैठे थे। तभी कहीं से शोर सुनाई पड़ा। बुद्ध ने आनंद को यह पता लगाने को कहा कि बात क्या है। आनंद ने थोड़ी देर बाद आकर बताया कि कुछ भिक्षु पेड़ के नीचे बैठकर बातचीत और हंसी मजाक कर रहे हैं। बुद्ध क्रोध में उन भिक्षुओं के पास जाकर बोले, 'क्या आप लोगों को नहीं मालूम कि भिक्षुओं को शांत रहना चाहिए। आप लोगों ने भिक्षु जीवन की मर्यादा का उल्लंघन किया है इसलिए आप इसी समय संघ छोड़ दें।' वे भिक्षु नए थे और हाल ही में संघ में आए थे। उन्होंने बुद्ध से क्षमा मांगी मगर बुद्ध ने उन्हें माफ नहीं किया।
सभी भिक्षु वहां से निकल पड़े। रास्ते में उन्हें कुछ संत मिले जो बुद्ध से मिलने आ रहे थे। जब उन्हें सारा किस्सा मालूम हुआ तो वे असमंजस में पड़ गए। एक संत ने बुद्ध से कहा, 'इन्हें निकालने के पहले क्या आप ने यह सोचा कि यहां से जाने के बाद ये लोग क्या करेंगे। किस रास्ते पर जाएंगे। यदि इन्होंने गलत रास्ता पकड़ लिया तो किस पर दोष जाएगा। बौद्घ धर्म तो गलत रास्ते पर चलने वालों को सही मार्ग दिखाता है। इन्हें सुधरने का एक मौका तो मिलना ही चाहिए।' बुद्ध को अपनी गलती का अहसास हो गया। वह सभी भिक्षुओं से अपनी भूल के लिए माफी मांगने लगे। बुद्ध को ऐसा करते देख कर भिक्षु सकते में आ गए। एक ने कहा, 'प्रभु आप से कोई भूल नहीं हुई। गलती तो हमारी थी।' बुद्ध ने कहा, 'नहीं, आपकी गलती नहीं थी। गलत मैं था। गलती किसी से भी हो सकती है। अपनी भूल को स्वीकार करना ही भूल का सुधार है।'
Thursday, November 3, 2011
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