पुरानी कथा है। चीन में एक विचारक की काफी धूम थी। लोग उससे बेहद प्रभावित थे। राजा ने उसकी तारीफ सुन उसे न्यायाधीश बना दिया। उन्हीं दिनों नगर के सबसे धनवान सेठ के घर में चोरी हो गई। सब जानते थे कि सेठ ने इतनी अकूत संपत्ति बेईमानी व लोगों का शोषण करके इकट्ठा की है। किंतु चोरी तो चोरी थी इसलिए चोर को पकड़ने के लिए अभियान छेड़ा गया। चोर पकड़ा गया। उसने अपनी गलती स्वीकार कर ली। न्यायाधीश ने उसे चोरी के जुर्म में एक साल की सजा सुना दी।
चोर को सजा सुनाने के बाद न्यायाधीश ने सेठ की संपत्ति की जांच शुरू करवा दी लेकिन सेठ की दलील थी कि उसने सारी कमाई तिजारत से हासिल की है। उसने किसी का शोषण कर या गलत तरीके से धन अर्जित नहीं किया है। लेकिन न्यायाधीश ने इस बात को नहीं माना। उसने फैसला सुनाते हुए कहा, 'इस संपत्ति का कुछ हिस्सा चुराने वाले चोर को तो एक वर्ष की सजा दी गई है मगर इस संपत्ति के मालिक को दो वर्ष की सजा दी जाती है।' सेठ ने फैसले पर सवाल उठाया तो न्यायाधीश ने कहा, 'चोर ने तो चोरी की बात मान ली। उसके हृदय परिवर्तन की गुंजाइश है। लेकिन तुमने तो झूठ बोलकर सही रास्ते पर आने के सारे रास्ते बंद कर लिए हैं। चोर को सजा जरूर मिलनी चाहिए किंतु जब तक केवल चोरों को सजा मिलती रहेगी और आम आदमी का शोषण करने वाले खुलेआम घूमते रहेंगे तब तक चोरी बंद नहीं होगी। इसलिए तुम्हें सजा सुनाई गई है।'
Friday, November 4, 2011
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