एक राजा को शिकार का नशा था। वह राजकाज छोड़कर हर समय शिकार में लगा रहता था। वह जिससे मिलता उससे शिकार के किसी प्रसंग पर ही बात करता। एक बार जब वह शिकार करने पहुंचा तो एक हिरन उसके सामने आ खड़ा हुआ। राजा उसे देखकर चकित रह गया। तभी कोमल वाणी में हिरन ने कहा, 'राजन, आप प्रतिदिन वन में जाकर जीवों का शिकार करते हैं। कुछ जीव आपके हाथी-घोड़ों द्वारा कुचल दिए जाते हैं। मेरे शरीर के भीतर कस्तूरी का भंडार है। आपसे प्रार्थना है कि आप इस भंडार को ले लें और वन के प्राणियों का शिकार करना छोड़ दें।'
हिरन की बात सुन राजा विस्मय से बोला, 'क्या तुम उन्हें बचाने के लिए अपने प्राण देना चाहते हो? तुम जानते हो कस्तूरी पाने के लिए मुझे तुम्हारा वध करना होगा।' हिरन बोला, 'राजन, आप मुझे मारकर कस्तूरी का भंडार ले लीजिए, पर निरापराध जीवों को मारना छोड़ दीजिए।' राजा ने पुन: कहा, 'तुम्हारा शरीर बहुत सुंदर है। तुम्हारे भीतर कस्तूरी का भंडार है।' हिरन ने जवाब दिया, 'राजन यह शरीर तो नश्वर है। मैं दूसरों के प्राण बचाने के लिए मर जाऊं इससे अच्छी बात क्या हो सकती है।'
मृग की ज्ञान भरी वाणी ने राजा के मन में प्रकाश पैदा कर दिया। वह सोचने लगा, यह जानवर होकर दूसरों के लिए अपने प्राण दे रहा है और मैं मनुष्य होकर रोज जीवों को मारता हूं। धिक्कार है मुझ पर। तभी उसकी नींद टूट गई। इस सपने ने उसकी आंखें खोल दी थीं। उस दिन से राजा हिंसा छोड़कर सब पर दया करने लगा।
Friday, November 4, 2011
राजा का चुनाव
एक राजा था। वह बेहद न्यायप्रिय, दयालु और विनम्र था। उसके तीन बेटे थे। जब राजा बूढ़ा हुआ तो उसने किसी एक बेटे को राजगद्दी सौंपने का निर्णय किया। इसके लिए उसने तीनों की परीक्षा लेनी चाही। उसने तीनों राजकुमारों को अपने पास बुलाया और कहा, 'मैं आप तीनों को एक छोटा सा काम सौंप रहा हूं। उम्मीद करता हूं कि आप सभी इस काम को अपने सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने की कोशिश करेंगे।'
राजा के कहने पर राजकुमारों ने हाथ जोड़कर कहा, 'पिताजी, आप आदेश दीजिए। हम अपनी ओर से कार्य को सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने का भरपूर प्रयास करेंगे।' राजा ने प्रसन्न होकर उन तीनों को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दीं और कहा कि इन मुद्राओं से कोई ऐसी चीज खरीद कर लाओ जिससे कि पूरा कमरा भर जाए और वह वस्तु काम में आने वाली भी हो। यह सुनकर तीनों राजकुमार स्वर्ण मुद्राएं लेकर अलग-अलग दिशाओं में चल पड़े। बड़ा राजकुमार बड़ी देर तक माथापच्ची करता रहा। उसने सोचा कि इसके लिए रूई उपयुक्त रहेगी। उसने उन स्वर्ण मुद्राओं से काफी सारी रूई खरीद कर कमरे में भर दी और सोचा कि इससे कमरा भी भर गया और रूई बाद में रजाई भरने के काम आ जाएगी। मंझले राजकुमार ने ढेर सारी घास से कमरा भर दिया।
उसे लगा कि बाद में घास गाय व घोड़ों के खाने के काम आ जाएगी। उधर छोटे राजकुमार ने तीन दीये खरीदे। पहला दीया उसने कमरे में जलाकर रख दिया। इससे पूरे कमरे में रोशनी भर गई। दूसरा दीया उसने अंधेरे चौराहे पर रख दिया जिससे वहां भी रोशनी हो गई और तीसरा दीया उसने अंधेरी चौखट पर रख दिया जिससे वह हिस्सा भी जगमगा उठा। बची हुई स्वर्ण मुद्राओं से उसने गरीबों को भोजन करा दिया। राजा ने तीनों राजकुमारों की वस्तुओं का निरीक्षण किया। अंत में छोटे राजकुमार के सूझबूझ भरे निर्णय को देखकर वह बेहद प्रभावित हुआ और उसे ही राजगद्दी सौंप दी।
राजा के कहने पर राजकुमारों ने हाथ जोड़कर कहा, 'पिताजी, आप आदेश दीजिए। हम अपनी ओर से कार्य को सर्वश्रेष्ठ तरीके से करने का भरपूर प्रयास करेंगे।' राजा ने प्रसन्न होकर उन तीनों को कुछ स्वर्ण मुद्राएं दीं और कहा कि इन मुद्राओं से कोई ऐसी चीज खरीद कर लाओ जिससे कि पूरा कमरा भर जाए और वह वस्तु काम में आने वाली भी हो। यह सुनकर तीनों राजकुमार स्वर्ण मुद्राएं लेकर अलग-अलग दिशाओं में चल पड़े। बड़ा राजकुमार बड़ी देर तक माथापच्ची करता रहा। उसने सोचा कि इसके लिए रूई उपयुक्त रहेगी। उसने उन स्वर्ण मुद्राओं से काफी सारी रूई खरीद कर कमरे में भर दी और सोचा कि इससे कमरा भी भर गया और रूई बाद में रजाई भरने के काम आ जाएगी। मंझले राजकुमार ने ढेर सारी घास से कमरा भर दिया।
उसे लगा कि बाद में घास गाय व घोड़ों के खाने के काम आ जाएगी। उधर छोटे राजकुमार ने तीन दीये खरीदे। पहला दीया उसने कमरे में जलाकर रख दिया। इससे पूरे कमरे में रोशनी भर गई। दूसरा दीया उसने अंधेरे चौराहे पर रख दिया जिससे वहां भी रोशनी हो गई और तीसरा दीया उसने अंधेरी चौखट पर रख दिया जिससे वह हिस्सा भी जगमगा उठा। बची हुई स्वर्ण मुद्राओं से उसने गरीबों को भोजन करा दिया। राजा ने तीनों राजकुमारों की वस्तुओं का निरीक्षण किया। अंत में छोटे राजकुमार के सूझबूझ भरे निर्णय को देखकर वह बेहद प्रभावित हुआ और उसे ही राजगद्दी सौंप दी।
विनम्रता का पाठ
एक राजा बहुत अहंकारी था। एक दिन उसके मंत्री ने उसे बताया कि नगर में बुद्ध पधारे हैं, चलकर उनका स्वागत किया जाए। राजा ने कहा, 'मैं बुद्ध का स्वागत करने क्यों जाऊं? मैं राजा हूं और सभी मुझसे मिलने मेरे महल में आते है। बुद्ध को यदि मुझसे मिलना होगा, तो वह स्वयं मेरे महल में आएंगे।' राजा की बात सुनकर मंत्री बोला, 'आप राजा हैं इसलिए सभी आपसे मिलने आते है लेकिन संत पुरुष राजा से भी ऊपर होते है। चूंकि प्रजा के लिए भी वे श्रद्धा के पात्र होते है, इसलिए उनका आदर करके आप प्रजा के भी प्रियपात्र बनेंगे।'
राजा कुतर्की था। उसने पलटकर कहा, 'क्या मैं प्रजा का दास हूं कि जो वह करे और चाहे, वही मैं करूं? मैं राजा हूं, इसलिए मैं जो चाहूंगा, वही करूंगा।' मंत्री को राजा का व्यवहार उचित नहीं लगा। उसने अपना त्यागपत्र राजा को दे दिया और कहा, 'मैं आपकी सेवा में नहीं रह सकता। आप में तनिक भी बड़प्पन नहीं है।' राजा ने कहा, 'मैं अपने बड़प्पन के कारण ही बुद्ध के स्वागत हेतु नहीं जा रहा हूं।' मंत्री ने कहा, 'अपने घमंड को बड़प्पन मत समझिए। बुद्ध भी कभी महान सम्राट के पुत्र थे। उन्होंने राज्य का त्याग कर भिक्षु बनना स्वीकार किया। इसका अर्थ है कि राज्य के मुकाबले उनका त्याग अधिक बड़ा है। विनम्रता ही व्यक्ति को बड़ा बनाती है। इसके अभाव में व्यक्ति किसी लायक नहीं रह जाता। राजा बात का मर्म समझ गया और न केवल बुद्ध का स्वागत करने गया, बल्कि उनसे दीक्षा भी ग्रहण की।
राजा कुतर्की था। उसने पलटकर कहा, 'क्या मैं प्रजा का दास हूं कि जो वह करे और चाहे, वही मैं करूं? मैं राजा हूं, इसलिए मैं जो चाहूंगा, वही करूंगा।' मंत्री को राजा का व्यवहार उचित नहीं लगा। उसने अपना त्यागपत्र राजा को दे दिया और कहा, 'मैं आपकी सेवा में नहीं रह सकता। आप में तनिक भी बड़प्पन नहीं है।' राजा ने कहा, 'मैं अपने बड़प्पन के कारण ही बुद्ध के स्वागत हेतु नहीं जा रहा हूं।' मंत्री ने कहा, 'अपने घमंड को बड़प्पन मत समझिए। बुद्ध भी कभी महान सम्राट के पुत्र थे। उन्होंने राज्य का त्याग कर भिक्षु बनना स्वीकार किया। इसका अर्थ है कि राज्य के मुकाबले उनका त्याग अधिक बड़ा है। विनम्रता ही व्यक्ति को बड़ा बनाती है। इसके अभाव में व्यक्ति किसी लायक नहीं रह जाता। राजा बात का मर्म समझ गया और न केवल बुद्ध का स्वागत करने गया, बल्कि उनसे दीक्षा भी ग्रहण की।
प्रतिभा का सम्मान
एक राजा को चित्रकारी का बहुत शौक था। वह अपने राज्य के योग्य चित्रकारों को समय-समय पर सम्मानित भी करता रहता था। एक बार राजा ने एक चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन रखा और दूर-दूर से मशहूर चित्रकारों को आमंत्रित किया। अनेक चित्रकार निर्धारित स्थल पर पहुंचने लगे। राजा ने सभी चित्रकारों को यथोचित सम्मान व स्थान देकर उन्हें ठहराया। एक चित्रकार बेहद गरीब सा दिख रहा था। वह फटे-पुराने मगर स्वच्छ वस्त्र पहने था। राजा ने उसे एक नजर देखा, फिर अनदेखा कर दिया। नियत समय पर प्रतियोगिता आरंभ हो गई। निर्णय करते समय तीन श्रेष्ठ चित्रों को चुना गया। अंत में निर्णायकों द्वारा उन तीन में से सर्वश्रेष्ठ चित्र को पुरस्कार देने की घोषणा की गई।
पुरस्कृत चित्र के चित्रकार का नाम पुकारे जाने पर वही गरीब चित्रकार मंच पर आया। उसे देखकर राजा ने पुरस्कार दिया और कुछ दिन के लिए राजमहल में ठहरने का निवेदन किया। कुछ दिन राजमहल में बिता कर जब चित्रकार लौटने लगा तो राजा ने उसे बहुमूल्य उपहार दिए और उससे बहुत ही विनम्रता से पेश आया। यह देखकर चित्रकार बोला, 'महाराज, जब मैं प्रारंभ में आपके पास आया था तो आपने मुझे देखकर भी अनदेखा कर दिया था, किंतु आज आप मेरे साथ बहुत ही सम्मानपूर्वक पेश आ रहे हैं। आखिर आपके व्यवहार में यह बदलाव क्यों?'
उसकी बात पर राजा मुस्कुराया फिर बोला, 'जब आप प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आए थे तो आप मेरे लिए अनजान थे और साथ ही मैं आपकी प्रतिभा से भी अनजान था। तो आपकी वेश-भूषा और रूप -रंग के आधार पर ही अपना व्यवहार तय किया। अब मुझे आपकी प्रतिभा की भी जानकारी हो गई, इसलिए मेरे व्यवहार में आपके साथ आपकी प्रतिभा के प्रति भी सम्मान झलक रहा है। व्यक्ति की पहचान उसके काम से ही होती है। मेरे लिए उस समय भी आपकी आर्थिक स्थिति का कोई महत्व नहीं था और आज भी नहीं है। मैं आपकी प्रतिभा को तराशकर उसे चोटी पर पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं।' सुनकर चित्रकार संतुष्ट हो गया।
पुरस्कृत चित्र के चित्रकार का नाम पुकारे जाने पर वही गरीब चित्रकार मंच पर आया। उसे देखकर राजा ने पुरस्कार दिया और कुछ दिन के लिए राजमहल में ठहरने का निवेदन किया। कुछ दिन राजमहल में बिता कर जब चित्रकार लौटने लगा तो राजा ने उसे बहुमूल्य उपहार दिए और उससे बहुत ही विनम्रता से पेश आया। यह देखकर चित्रकार बोला, 'महाराज, जब मैं प्रारंभ में आपके पास आया था तो आपने मुझे देखकर भी अनदेखा कर दिया था, किंतु आज आप मेरे साथ बहुत ही सम्मानपूर्वक पेश आ रहे हैं। आखिर आपके व्यवहार में यह बदलाव क्यों?'
उसकी बात पर राजा मुस्कुराया फिर बोला, 'जब आप प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए आए थे तो आप मेरे लिए अनजान थे और साथ ही मैं आपकी प्रतिभा से भी अनजान था। तो आपकी वेश-भूषा और रूप -रंग के आधार पर ही अपना व्यवहार तय किया। अब मुझे आपकी प्रतिभा की भी जानकारी हो गई, इसलिए मेरे व्यवहार में आपके साथ आपकी प्रतिभा के प्रति भी सम्मान झलक रहा है। व्यक्ति की पहचान उसके काम से ही होती है। मेरे लिए उस समय भी आपकी आर्थिक स्थिति का कोई महत्व नहीं था और आज भी नहीं है। मैं आपकी प्रतिभा को तराशकर उसे चोटी पर पहुंचाने का प्रयास कर रहा हूं।' सुनकर चित्रकार संतुष्ट हो गया।
नेपोलियन की उदारता
नेपोलियन बोनापार्ट के आदेश से फ्रांसीसी तट पर अंग्रेजों के जहाज पकड़ लिए गए। जहाज पर सभी लोगों को बंदी बना लिया गया। उनमें एक 17 वर्ष का लड़का लेनार्ड भी था। उसे भी जेल में डाल दिया गया। कुछ दिनों बाद उसे समाचार मिला कि उसकी मां बहुत बीमार है। बचने की आशा नहीं थी। मां की आखिरी इच्छा लेनार्ड को देखने की थी। वह उसी रात मां को याद करता हुआ जेल से भाग निकला, लेकिन थोड़ी ही दूर जा पाया था कि पकड़ा गया। अगले दिन उसने दोबारा भागने का प्रयास किया, पर फिर से पकड़ लिया गया। इस बार उस पर बहुत सख्ती की गई, पांवों में बेड़ियां डाल दी गईं और नेपोलियन को शिकायत की गई।
लेनार्ड को नेपोलियन के सामने पेश किया गया। नेपोलियन ने लड़के से पूछा, 'ऐसी कौन सी वजह है कि तुम बार-बार यहां से भागने का दुस्साहस करते हो?' लेनार्ड ने रोते हुए कहा, 'मेरी मां मर रही है, मरने से पहले मुझे देखना चाहती है।' नेपोलियन ने जेलर को बुलाकर कहा, 'इस लड़के के घर जाने का इंतजाम करवाओ।' जेलर चौंक गया। नेपोलियन ने कहा, 'हैरान होने की बात नहीं है। इसके चेहरे से साफ लग रहा है कि इसे मां की ममता अपनी ओर खींच रही है। नेपोलियन इतना कठोर नहीं कि मां की ममता की कद्र न कर सके। इसे जाने दो।' नेपोलियन की उदारता देखकर वह लड़का उसके आगे नतमस्तक हो गया। नेपोलियन खुद मां के स्नेह के लिए हमेशा बेचैन रहा। यह उसी का परिणाम था।
लेनार्ड को नेपोलियन के सामने पेश किया गया। नेपोलियन ने लड़के से पूछा, 'ऐसी कौन सी वजह है कि तुम बार-बार यहां से भागने का दुस्साहस करते हो?' लेनार्ड ने रोते हुए कहा, 'मेरी मां मर रही है, मरने से पहले मुझे देखना चाहती है।' नेपोलियन ने जेलर को बुलाकर कहा, 'इस लड़के के घर जाने का इंतजाम करवाओ।' जेलर चौंक गया। नेपोलियन ने कहा, 'हैरान होने की बात नहीं है। इसके चेहरे से साफ लग रहा है कि इसे मां की ममता अपनी ओर खींच रही है। नेपोलियन इतना कठोर नहीं कि मां की ममता की कद्र न कर सके। इसे जाने दो।' नेपोलियन की उदारता देखकर वह लड़का उसके आगे नतमस्तक हो गया। नेपोलियन खुद मां के स्नेह के लिए हमेशा बेचैन रहा। यह उसी का परिणाम था।
सुख का सार
एक व्यक्ति अपने जीवन से बहुत परेशान था। हारकर वह एक संत के पास पहुंचा और उन्हें अपनी समस्या बताई। युवक की बात सुनकर संत ने एक कांच का जार मंगवाया और उसमें ढेर सारी खूबसूरत रंग-बिरंगी गेंदे भर दीं फिर युवक से पूछा, 'क्या यह जार भर गया है?' युवक बोला, 'हां महाराज, जार तो गेंदों से भर गया है।' युवक की बात सुनकर संत मुस्कराए और उन्होंने उस जार में छोटे-छोटे मोती भरने शुरू कर दिए। मोती जार में उस जगह पर समा गए जहां पर गेंदों के बीच रिक्त स्थान बचा हुआ था।
इसके बाद उन्होंने युवक से फिर पूछा, 'क्या अब जार भर गया है?' युवक जार को भलीभांति देखकर बोला, 'हां, अब तो इसमें कहीं भी जगह शेष नहीं है।' फिर संत ने जार में रेत डालना शुरू किया। रेत भी जार में मोती के साथ बचे रिक्त स्थान में समा गई। यह देखकर युवक बहुत हैरान हुआ। संत बोले, 'बेटा, इस कांच के जार को तुम अपना जीवन समझो। इसमें जो रंग-बिरंगी गेंदे हैं वो तुम्हारे जीवन का आधार यानी परिवार हैं। इसमें जो अनेक मोती हैं वे तुम्हारा रोजगार, आवास, शिक्षा आदि हैं। और जो रेत है वह जीवन में होने वाले झगड़े, मनमुटाव, तनाव, क्लेश आदि हैं। जीवन ऐसा ही होना चाहिए। अब यदि तुम जार में पहले रेत ही रेत भर दो, तो उसमें गेंदों व मोती के लिए जगह ही नहीं बचेगी। इसलिए पहले अपने जीवन को रंग-बिरंगी गेंदों व मोतियों से भरो।' युवक को सुख का सार समझ में आ गया।
इसके बाद उन्होंने युवक से फिर पूछा, 'क्या अब जार भर गया है?' युवक जार को भलीभांति देखकर बोला, 'हां, अब तो इसमें कहीं भी जगह शेष नहीं है।' फिर संत ने जार में रेत डालना शुरू किया। रेत भी जार में मोती के साथ बचे रिक्त स्थान में समा गई। यह देखकर युवक बहुत हैरान हुआ। संत बोले, 'बेटा, इस कांच के जार को तुम अपना जीवन समझो। इसमें जो रंग-बिरंगी गेंदे हैं वो तुम्हारे जीवन का आधार यानी परिवार हैं। इसमें जो अनेक मोती हैं वे तुम्हारा रोजगार, आवास, शिक्षा आदि हैं। और जो रेत है वह जीवन में होने वाले झगड़े, मनमुटाव, तनाव, क्लेश आदि हैं। जीवन ऐसा ही होना चाहिए। अब यदि तुम जार में पहले रेत ही रेत भर दो, तो उसमें गेंदों व मोती के लिए जगह ही नहीं बचेगी। इसलिए पहले अपने जीवन को रंग-बिरंगी गेंदों व मोतियों से भरो।' युवक को सुख का सार समझ में आ गया।
संकल्प
एक बार नानक काशी के पास एक गांव में प्रवचन कर रहे थे। प्रवचन के बीच में उन्होंने कहा , सफलता के लिए प्रत्येक व्यक्ति को आशावादी होना चाहिए। प्रवचन खत्म होने के बाद एक भक्त ने पूछा , गुरु जी , क्या किसी चीज की आशा करना ही सफलता की कुंजी है। नानक ने कहा , नहीं , केवल आशा करने से कुछ नहीं मिलता। मगर आशा रखने वाला मनुष्य ही कर्मशील होता है। लेकिन उस आदमी की समझ में ये बातें नहीं आ रही थी। उसने कहा , गुरु जी , आप की गूढ़ बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं। उस समय खेतों में गेहूं की कटाई हो रही थी। तेज गर्मी पड़ रही थी। नानक ने कहा , चलो मेरे साथ। तुम्हारे प्रश्न का जवाब वहीं दूंगा।
नानक उस आदमी को अपने साथ लेकर खेतों की तरफ चले गए। उन्होंने देखा कि एक खेत में दो भाई गेहूं की कटाई कर रहे थे। बड़ा भाई तेजी से कटाई करता आगे था दूसरा भाई पीछे था। नानक उस आदमी के साथ वहीं एक आम के पेड़ के नीचे बैठ गए। दोपहर हो गई थी। छोटा भाई बोला , भइया , आज तो पूरी कटाई हो नहीं पाएगी। अभी बहुत बाकी है , कल सुबह आकर काट लेंगे। बड़े भाई ने कहा , अब ज्यादा कहां बचा है। देखता नहीं , थोड़ा ही तो रह गया है। इन दो कतारों को काट लेंगे तो बाकी बारह कतारें रह जाएगी। इतना तो आराम से काट लेंगे। कल पर क्यों टालता है। बड़े भाई की बात सुन कर छोटा भाई जोश में आ गया और उसका हाथ भी तेजी से चलने लगा। थोड़ी देर में पूरा खेत कट गया। खेत कटने के बाद नानक वहां से चलने लगे तो भक्त ने कहा , मेरे प्रश्न का उत्तर तो शेष है। नानक ने कहा , तुम्हारे प्रश्न का जवाब तो उन दोनों भाइयों ने दे दिया जो खेत में गेहूं काट रहे थे। बड़ा भाई आशावादी था , तभी तो कटाई पूरी हुई। भक्त को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया।
नानक उस आदमी को अपने साथ लेकर खेतों की तरफ चले गए। उन्होंने देखा कि एक खेत में दो भाई गेहूं की कटाई कर रहे थे। बड़ा भाई तेजी से कटाई करता आगे था दूसरा भाई पीछे था। नानक उस आदमी के साथ वहीं एक आम के पेड़ के नीचे बैठ गए। दोपहर हो गई थी। छोटा भाई बोला , भइया , आज तो पूरी कटाई हो नहीं पाएगी। अभी बहुत बाकी है , कल सुबह आकर काट लेंगे। बड़े भाई ने कहा , अब ज्यादा कहां बचा है। देखता नहीं , थोड़ा ही तो रह गया है। इन दो कतारों को काट लेंगे तो बाकी बारह कतारें रह जाएगी। इतना तो आराम से काट लेंगे। कल पर क्यों टालता है। बड़े भाई की बात सुन कर छोटा भाई जोश में आ गया और उसका हाथ भी तेजी से चलने लगा। थोड़ी देर में पूरा खेत कट गया। खेत कटने के बाद नानक वहां से चलने लगे तो भक्त ने कहा , मेरे प्रश्न का उत्तर तो शेष है। नानक ने कहा , तुम्हारे प्रश्न का जवाब तो उन दोनों भाइयों ने दे दिया जो खेत में गेहूं काट रहे थे। बड़ा भाई आशावादी था , तभी तो कटाई पूरी हुई। भक्त को अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया।
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